सम्पादकीय

ईरानसे सीखे भारत


आर.के. सिन्हा

आतंकी संघटन जैश अल-अदलके २०१९ के हमलेमें २७ ईरानी नागरिक मारे गये थे। गौर करें कि पुलवामा हमलेसे ठीक एक दिन पहले ही यह हमला भी हुआ था ईरानकी सीमामें। पुलवामा हमलेमें सीआरपीएफके ४० जवान शहीद हो गये थे। ईरानपर हुए हमलेमें २७ ईरानी नागरिक मारे गये थे। भारत और ईरानका यह दुर्भाग्य है कि उन्हें पाकिस्तान जैसा धूर्त देश पड़ोसीके रूपमें मिला है। पाकिस्तान भारतसे इसलिए जला-भुना रहता है क्योंकि भारत मूलत: हिन्दू देश है हालांकि यहांके संविधानमें सभी नागरिकोंको समान अधिकार भी दिये गये हैं। इसी तरह ईरानसे पाकिस्तान इसलिए दोस्ती नहीं करता, क्योंकि ईरान शियाबहुल देश है। पाकिस्तानमें शियाओंको दोयम दर्जेका नागरिक मानते हैं। जनसंख्यामें बहुल सुन्नी हैं। शियाओंका वहांपर लगातार कत्लेआम होता रहता है। इसके साथ ही पाकिस्तानकी सऊदी अरबसे नजदीकियां भी ईरानको रास नहीं आती है।

भारत-ईरान दोनों ही पाकिस्तानकी हरकतोंसे परेशान हैं। पाकिस्तानके  आतंकियोंकी फैक्टरीके रूपमें उभरनेसे ईरानी जूझ रहे हैं। अब सवाल यह है कि दोनों देशोंके पास विकल्प क्या है जिससे वे पाकिस्तानको घुटनोंपर ला सकें। दरअसल यदि भारत-ईरान मिलकर पाकिस्तानके साथ हर स्तरपर लड़ें तो उसे होश ठिकाने आ सकता है। वक्तका तकाजा है कि यह दोनों देश मिलकर पाकिस्तानके खिलाफ संयुक्त रणनीति तैयार करें। भारत-ईरानका पाकिस्तानके खिलाफ लामबंद होना, वक्तकी मांग है। पाकिस्तानमें हाफिज सईद और मौलाना अजहर महमूद जैसे कुख्यात आतंकी सक्रिय हैं। यह भारत और ईरानके ऊपर आतंकी हमले करवानेकी रणनीति बनाते रहते हैं। यदि प्रधान मंत्री मोदी और ईरानके राष्ट्रपति डा. हसन रूहानी पाकिस्तानके खिलाफ रणनीति बनानेपर विस्तारसे चर्चा करें तो स्थितियां काफी हदतक आतंकी संघटनोंके खिलाफ हो जायेंगी। वैसे भी दोनों नेताओंके बेहद मधुर संबंध भी हैं। उल्लेखनीय है कि पुलमावा हमलेके जवाबमें भारतीय सेनाने जब आजाद कश्मीरमें आतंकी शिविरोंपर सर्जिकल स्ट्राइक किया, उसी दिन ईरानने भी पाकिस्तानपर हमला किया था। भारतीय सैनिकोंने आजाद कश्मीरमें घुसकर ३८ आतंकी मार गिराये थे। तभी पाकिस्तानकी पश्चिमी सीमापर ईरानने मोर्टार दागे थे। ईरानके बॉर्डर गाड्र्सने सरहद पारसे बलूचिस्तानमें तीन मोर्टार दागे थे। यदि यह एक्शन मिलकर होता तो पाकिस्तानको शिकस्त दिया जा सकता था।

अब पाकिस्तान भारतसे बातचीत करना चाह रहा है। पाकिस्तानके सेनाप्रमुख कमर जावेद बाजवाने हालमें कहा कि उनका देश भारतके साथ शांति कायम करना  चाहता है। परन्तु भारतने स्पष्ट कर दिया कि जबतक पाकिस्तान आतंक और शत्रुतासे मुक्त माहौल नहीं बनायगा, तबतक कोई बातचीत नहीं होगी। दुनियाभरमें आतंक फैलानेवाले मुल्कसे बातचीत करनेका कोई मतलब ही नहीं है। एक तरफ पाकिस्तान भारतसे वार्ता करनेकी बात कर रहा है, दूसरी तरफ पाकिस्तान सीमा पारसे कभी घुसपैठियोंको भेजता है तो कभी कश्मीरमें आग लगानेकी कोशिश करता है। पाकिस्तान जैसे गैर-जिम्मेदार जेशसे बातचीत करनेका कोई मतलब भी नहीं है। उसके कई नेता भारतपर परमाणु बम गिरानेकी चेतावनी देते रहते हैं। पाकिस्तान और ईरानके बीच ९०० किलोमीटरकी सीमा है। इन दोनों देशोंके बीच संबंधोंमें बदलाव तब आया जब दिसंबर, २०१५ में सऊदी अरबने आतंकवादसे लडऩेके लिए ३४ देशोंका एक इस्लामी सैन्य गठबंधन बनानेका फैसला किया। परन्तु इस गठबंधनमें शियाबहुल ईरानको शामिल नहीं किया गया। इसमें सऊदी अरबने पाकिस्तानको प्रमुखताके साथ जोड़ा।

इससे ईरान काफी नाराज हुआ था पाकिस्तानसे। पाकिस्तानके स्वीडनमें बस गये राजनीतिक चिंतक डा. इश्तिक अहमदने अपनी किताबमें लिखा है कि पाकिस्तानकी बुनियाद ही नफरतपर रखी गयी थी और जिन्नाके बाद उसपर सेनाका असर पूरी तरहसे हो गया। इसलिए उससे कभी भी बेहतर आचरणकी अपेक्षा नहीं कर सकते। यह बात तो बार-बार साबित हो चुकी है। वहांपर कथित रूपसे निर्वाचित सरकारें भी सेना द्वारा संचालित होती हैं। इसलिए अब जरूरी है कि अधिकसे अधिक देश साथ मिल जायं। पाकिस्तानके खिलाफ मोर्चेमें भारत और ईरानको चाहिए कि बंगलादेशको भी शामिल कर लें। पाकिस्तान बंगलादेशके भी आन्तरिक मामलोंमें भी दखल देता है। बंगलादेशने १९७१ के कत्लेआमके गुनाहगार और जमात-ए-इस्लामीके नेता कासिम अलीको जब फांसीपर लटकाया तो पाकिस्तानने आपत्ति जतायी। हालांकि बंगलादेशने पाकिस्तानकी एक नहीं सुनी। दोनों देशोंमें १९७१ के कत्लेआमके सवालपर रिश्ते लगातार खराब बिगड़ते ही रहे हैं। कुछ समय पहले बंगलादेशने पाकिस्तानके एक राजनयिकको देशसे निकलनेके आदेश दिये। इससे पहले शेख हसीनाने साल २००० में पाकिस्तानके एक राजनयिकको तुरन्त ढाका छोड़कर जानेको कहा था। उसपर आरोप था वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआईका एजेंट है और बंगलादेशके चरमपंथी समूहोंकी मदद कर रहा है। अब यह देखनेवाली बात है कि कब भारत और ईरान पाकिस्तानके खिलाफ मिलकर लड़ते हैं और उसमें बंगलादेशको भी शामिल कर लेते हैं।