सम्पादकीय

ध्यान और विचार


श्रीश्री रविशंकर

ध्यानमें आप पायंगे कि मन स्वयंकी अंतर्तम गहराईमें पहुंच जाता है, परन्तु उसी समय कुछ ऐसा भी है जो आपके भीतरसे बाहरकी ओर आ जाता है। चिर कालसे मनमें पड़ी हुई कोई गहरी छाप और अनेकों विचार बाहर आ जाते हैं और मनकी गहराई खो जाती है। समयके साथ आप इस प्रक्रियाको यदि बार-बार दोहराते हैं तो आप पायंगे कि आपका पूरा स्वभाव ही बदल गया है। आप उस समय ध्यानकी स्थितिमें पहुंचते हैं जब आपके मनमें उठ रहे विचार समाप्त हो जाते हैं। विचार कई तरीकोंसे मनमें उत्पन्न होते हैं और आपको भ्रमणके लिए ले जाते हैं। क्या आप पहचान सकते हैं कि इनमेंसे कौनसे विचार आपको घेरकर रखते हैं, इच्छाएं, महत्वाकांक्षा, उम्मीदें, संदेह, अप्रिय यादें, तृष्णा, चिंता या परेशानी। आप जिस वस्तुकी कामना करते हैं उसके होनेपर भी और उसके न होनेपर भी आप व्यथित रहते हैं। उदाहरणके लिए यदि आपके पास पैसा है तो वह भी परेशानीका कारण बन जाता है। आपको डर और चिंता लगी रहती है कि इस पैसेका निवेश करें या न करें। यदि आप उसका निवेश करते हैं तो आपको चिंता होती है कि वह बढ़ रहा है या कम हो रहा है अन्यथा आपको शेयर बाजारके उतार-चढ़ावके बारेमें चिंता हो जाती है। यदि आपके पास पैसे नहीं है, तब तो आप चिंतित होते ही हैं। वह संपूर्ण स्वतंत्रता जिसमें चीजोंके होने या न होनेसे आप विचलित नहीं होते हैं मुक्ति कहलाती है। एक ऐसे बीते हुए समयके बारेमें सोचें, जब आप चिंताग्रस्त थे। पांच वर्ष पूर्व एक दिन आप किन चिंताओंमें घिरे थे, उसकी कल्पना करें। यह उस समयके लिए एक बड़ी बात रही होगी, लेकिन आज आप अपनी उस पुरानी चिंताको याद भी नहीं करते हैं। हर बार जब आप चिंता करते हो तो वह आपको ताजी और नयी लगती है। जब आप उन चिंताओंको याद करते हैं, जो आज पुरानी हो चुकी हैं और अब चिंताका कारण नहीं रही हैं तो फिर यह भी मान कर चलिये कि आपकी आजकी चिंता भी वास्तवमें पुरानी और बासी है। चिंता द्वारा घिरे रहनेका कारण एक ही है। आपका भ्रम कि आप सदैव जीवित रहेंगे। इच्छाका अर्थ है कि आपको वर्तमानका समय ठीक नहीं लग रहा है। इच्छाएं मनमें तनावोंको जन्म देती हैं। प्रत्येक इच्छा तृष्णा उत्पन्न होनेका कारण बन जाती है। इस स्थितिमें ध्यानका लगना संभव नहीं है।