सम्पादकीय

भयावह वायु प्रदूषण


वायु प्रदूषण पूरे विश्वमें मानव जीवनके लिए गम्भीर खतरा बना हुआ है। जानलेवा बीमारियोंके बाद पूरी दुनियामें वायु प्रदूषण अकाल मृत्युका सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। भारतमें इसकी स्थिति और भी बदतर है जो आर्थिक बोझ बढ़ानेके साथ ही घातक और जानलेवा साबित हो रही है। विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्रका दावा चौंकानेवाला है जिसमें कहा गया है कि देशमें वर्ष २०१९ में १७ लाख मौतोंका कारण वायु प्रदूषण रहा। इनमें ५० प्रतिशत मौतें सिर्फ पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्टï्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थानमें हुई। वायु प्रदूषणके कारण सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश और बिहारमें होती हैं। वायु प्रदूषणसे सर्वाधिक प्रभावित ये पांच राज्य न सिर्फ बड़ी आबादीवाले हैं, बल्कि इन राज्योंमें प्रति व्यक्ति आय भी बहुत कम है जिससे अकाल मृत्यु और रुग्णता बढ़ी है। वायु प्रदूषणके यह नतीजे नये नहीं हैं, बल्कि पिछले कुछ वर्षोंसे यह प्रवृत्ति जारी है। इसके लिए सरकार उद्योग और जनता सभी कमोबेश जिम्मेदार हैं। मनुष्यके जीवनशैलीमें बदलावसे पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है जो पूरी दुनियाके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दिनों-दिन बढ़ते वायु प्रदूषणसे मानव जीवन ही नहीं, थलचरके सभी जीवधारियों और वनस्पतियोंका अस्तित्व समाप्त होनेकी ओर तेजीसे अग्रसर होता दिख रहा है, फिर भी इसकी रोकथामके लिए वैश्विक स्तरपर अपेक्षित प्रभावी कदमका नहीं उठया जाना कई सवाल खड़ा करता है। वायु प्रदूषणका सबसे बड़ा कारण वायुमें अनवरत अत्यधिक मात्रामें कार्बनका घुलना है जिससे जलवायु परिवर्तनकी बड़ी चुनौती उत्पन्न हुई है। विकासशील देशोंकी अपेक्षा विश्वके विकसित देश सर्वाधिक कार्बनका उत्सर्जन करते हैं। इसे कम करनेके लिए सार्थक कदम उठानेकी आवश्यकता है। चीन सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जनवाला देश है। कार्बन उत्सर्जनपर अंकुश लगानेके लिए सभी देशोंको आगे आना होगा। प्रदूषणको नियंत्रित करनेका गुरुतर दायित्व सबपर है। सिर्फ सरकारपर निर्भरता उचित नहीं है। इस प्राणघातक स्थितिसे उबरनेके लिए यथाशीघ्र कदम नहीं उठाये गये तो इसके गम्भीरतम परिणाम सामने आयंगे। जीवन रक्षाके लिए प्रदूषणको दूर करना जरूरी है। इसके लिए सरकार, उद्योगजगत और जनताको स्वयं जागरूक होना पड़ेगा।

बच्चोंका टीकाकरण

देशमें कोरोना संक्रमणकी दूसरी लहरका असर अभी पूरी तरह थमा भी नहीं है कि तीसरी लहरकी आहटने देशकी चिन्ता बढ़ा दी है। तीसरी लहरको लेकर पहले ही आशंका जतायी गयी है कि यह बच्चोंके लिए खतरनाक साबित हो सकती है, लेकिन कोरोनाके आंकड़ोंको देखा जाय तो मात्र दो राज्योंमें ९० हजारसे अधिक बच्चे कोरोनाकी चपेटमें आ गये हैं। दो राज्योंमें यदि यह हाल है तो पूरे देशका क्या हाल होगा। कोरोनाका हमला नवजातसे लेकर १८ सालतकके बच्चोंपर होता दिखायी दे रहा है। ऐसेमें यह कहना गलत नहीं होगा कि क्या देशमें तीसरी लहरने दस्तक दे दी है, जबकि सितम्बरमें तीसरी लहरका संकेत वैज्ञानिकोंने दिया है। तीसरी लहरमें बच्चोंके साथ दिव्यांग भी प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि आम लोगोंकी अपेक्षा उनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होती है इसलिए दिव्यागोंका टीकाकरण आवश्यक है। बच्चोंको लेकर अभिभावकोंमें चिन्ता स्वाभाविक है। ऐसेमें बच्चोंके लिए स्वदेशी वैक्सीनके आनेकी खबर राहत देनेवाली है। जायडस-कैडिलाकी स्वदेशी वैक्सीनके तीसरे चरणका परीक्षण पूरा हो चुका है। उम्मीद की जा रही है कि बच्चोंके लिए स्वदेशी वैक्सीन इस महीनेके अंततक उपलब्ध हो जायगी। जबतक वैक्सीन नहीं आ जाती और सभी बच्चोंको टीका नहीं लग जाता तबतक अभिभावकोंकी जिम्मेदारी है कि वे बच्चोंकी रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ानेके उपाय करें, क्योंकि किसी भी वायरससे बचनेके लिए रोग प्रतिरोधक क्षमताका मजबूत होना जरूरी है। यदि शरीरमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी तो बीमारियां कम होंगी। ऐसेमें बच्चोंको हेल्दी खाना खिलायें, धूपका सेवन करायें। बच्चोंमें यदि खाने-पीनेकी आदत अच्छी है तो बीमारियां और कोरोना वायरस ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता है, लेकिन कमजोर और कुपोषित बच्चोंमें संक्रमणका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए बच्चोंकी रोग प्रतिरोधक क्षमताको बढ़ानेकी जरूरत है। वैक्सीन कोरोनापर विजयका कारगर हथियार है, इसमें सन्देह नहीं है लेकिन यह तभी सम्भव है जब भारतकी १३० करोड़ जनताका टीकाकरण हो जायगा। तबतक हमें कोरोनासे बचनेके सारे उपाये करने होंगे।