सम्पादकीय

अनाथ बच्चोंकी सुधि


देशमें ऐसे बच्चोंकी बड़ी संख्या है, जो कोरोना महामारीके दंशसे अनाथ हो गये हैं। ऐसे बच्चोंके माता या पिता अथवा दोनोंकी कोरोनासे मृत्यु हो गयी है। इनकी देखभाल और परवरिश करनेके लिए परिवारमें कोई नहीं बचा है। भूखे-प्यासे इन बच्चोंका कोई पुरसाहाल नहीं है। इस सन्दर्भमें सर्वोच्च न्यायालयने अनाथ बच्चोंकी सुधि लेते हुए केन्द्र और राज्य सरकारोंको सख्त आदेशसे उन्हें दायित्व बोधसे भी अवगत करा दिया है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोसकी पीठने गौरव अग्रवालकी याचिकापर आदेश देते हुए कहा है कि हम कल्पना नहीं कर सकते कि इतनी बड़ी आबादीवाले देशमें भयानक महामारीसे कितने बच्चे अनाथ हुए होंगे। हमारे पास इसका कोई आंकड़ा भी नहीं है। राज्य सरकारें ऐसे अनाथ बच्चोंकी तत्काल सहायता करें। राज्योंसे यह उम्मीद की जाती है कि वे सड़कोंपर भूखे घूमते इन बच्चोंकी मुश्किलोंको समझेंगे और जिलोंके अधिकारियोंको भी निर्देश दिया गया है कि वे अदालतोंके आदेशोंका इन्तजार किये बिना तत्काल प्रभावसे उनकी मूलभूत आवश्यकताओंको पूरा करेंगे। मार्च २०२० के बाद अनाथ हुए बच्चोंकी तत्काल पहचान की जाय और उन्हें संरक्षा तथा सहायता उपलब्ध करायी जाय। राज्य सरकारें ऐसे बच्चोंकी जानकारी बाल आयोगके पोर्टलपर भी अपलोड करें। बच्चोंके हित संरक्षणसे सम्बन्धित याचिकापर न्यायालयने अनाथ बच्चोंकी स्थितिपर गम्भीर चिन्ता जतायी है। याचिकामें यह भी कहा गया है कि विशेष रूपसे बालिकाएं अधिक असुरक्षित हैं, क्योंकि इनकी तस्करी भी की जा सकती है। वस्तुत: कोरोना महामारीके चलते अनाथ हुए अनगिनत बच्चोंकी समस्या अत्यन्त ही गम्भीर और चिन्ताजनक है। शीर्ष न्यायालयने इन बच्चोंकी सुधि ली है लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारोंके साथ ही समाजकी भी बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अनाथ बच्चोंकी परवरिश और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत आवश्यकताओंकी पूर्तिके लिए आगे आयें। हर क्षेत्रमें सक्रिय गैर-सरकारी समस्याओंको भी आगे आनेकी जरूरत है। बच्चें ही देशके भविष्य हैं लेकिन इन अनाथ बच्चोंका वर्तमान अनिश्चित और संकटमय हो गया है। बाल हितोंके संरक्षणकी दिशामें पूरे समाजको जागरूक और सक्रिय होना पड़ेगा। ऐसे बच्चोंकी सुरक्षा और उनका विकास राष्टï्रके लिए आवश्यक है। औद्योगिक संस्थाओंको भी अपने सामाजिक दायित्व निधिका उपयोग अनाथ बच्चोंकी परवरिशमें करना चाहिए। यह उनका राष्टï्र धर्म है, जिसके निर्वहनका समय आ गया है। सरकारोंके साथ सामाजिक सेवासे जुड़े लोगोंका भी दायित्व है कि वे अनाथ बच्चोंकी परवरिशके लिए तत्काल सक्रिय हों।

भारतका उचित कदम

कोरोना वायरसकी उत्पत्तिपर एक बार फिर चीन घिरता नजर आ रहा है। वैसे भी वायरसके प्रसारके शुरुआती दौरसे ही चीनकी भूमिका संदिग्ध रही है। अमेरिकाके पूर्व राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्पने भी सन्देह जताया था कि कोरोना वायरसकी उत्पत्ति किसी चीनी लैबसे हुई है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीटके खुलासेने उन दावोंको हवा दे दी है कि कोरोना वायरस चीनके परीक्षण लैबसे ही फैला है। इसकी विस्तृत जांचकी मांग शुरूसे ही उठती रही है और आज भी उठ रही है जो होनी ही चाहिए ताकि दुनियाके सामने सचाई लायी जा सके। इस दिशामें विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) के नेतृत्वमें शुरू किया गया वैश्विक अध्ययन महत्वपूर्ण कदम है जिसे विश्वके अधिकतर देशोंका समर्थन प्राप्त है। भारतने भी चीनके विरोधको दरकिनार करते हुए पहली बार अधिकारिक रूपसे कोरोना स्रोतकी वैश्विक जांचका समर्थन किया है, जो उचित और सराहनीय है। कोरोना वायरसका साल २०१९के उत्तरार्धमें पहली बार चीनके वुहान शहरमें पता चला था और आरोप है कि यह वुहानकी एक प्रयोगशालासे फैला। डब्ल्यूएचओने मार्चमें इसकी जांच की और रिपोर्ट प्रस्तुतकी उसपर अमेरिका समेत कई देशोंने असहमति जतायी थी। विशेषज्ञोंने भी चीनमें वुहान सहित अन्य स्थानोंपर जांचमें पर्याप्त सहयोग न मिलनेपर चिन्ता जतायी थी। डब्ल्यूएचओका वैश्विक अध्ययन इस बारेमें ठोस निष्कर्षतक पहुंचनेके लिए अगले चरणके अध्ययनको रेखांकित करता है। इसे एक तरहसे अमेरिकी पहलका समर्थन माना जा रहा है। अमेरिकी राष्टï्रपति जो बाइडेनने देशकी खुफिया एजेंसियोंको वायरसका स्रोत खंगालने और ९० दिनमें विस्तृत रिपोर्ट सौंपनेका निर्देश दिया है। कोरोना वायरसपर चीनकी घेराबंदी बेहद जरूरी है, क्योंकि यह मानवके अस्तित्वके लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। सच सामने आना ही चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संघटनकी रिपोर्टपर आगेकी काररवाईमें विश्वके सभी देशोंका सहयोग अहम और अपेक्षित है।