सम्पादकीय

क्षमा


अनुराग

हमें हमेशासे बताया गया है कि क्षमा करना मनुष्यकी एक महान विशेषता है। हमें किसीके प्रति वैर भाव न रखते हुए उस व्यक्तिको भी क्षमा कर देना चाहिए जिसने हमें हानि पहुंचानेकी कोशिश की हो। क्षमा करनेवाला व्यक्ति गलती करनेवालेसे बड़ा होता है। प्रश्न है कि क्या क्षमा करनेवाले व्यक्तिको बड़ा बताना उसके अहंकारको बढ़ावा देना नहीं हुआ। क्या उसके भीतर यह अहसास पैदा नहीं होता कि वह तो श्रेष्ठ है कि उसने क्षमा किया और गलती करनेवाला व्यक्ति तो उसके सामने तुच्छ है। यदि इस सोचसे हमारे भीतर क्षमा करनेका भाव आता है तो यह सरासर बेईमानी है और घमंडका ही छद्म रूप है। प्राय: वह लोग भी क्षमा करते हैं जो गलती करनेवाले व्यक्तिको सजा देनेमें असमर्थ होते हैं और विवशतामें यह कहते हुए माफ कर देते हैं कि ईश्वर उन्हें उनके दुष्कर्मोंका फल देगा। लेकिन एक तरहसे देखें तो यह भी सच्ची क्षमा नहीं हुई क्योंकि क्षमा करते हुए भी सजा देने या नुकसान पहुंचानेका भाव अब भी हमारे अन्दर है और यदि हम सजा देनेमें सक्षम होते तो क्षमा करनेका सवाल ही नहीं उठता। सच्ची क्षमा वह होती है, जो स्वत: और स्वाभाविक हो और सबके लिए हो। एक प्रसंगसे इसे समझनेका प्रयास करते हैं। एक शिष्यने अपने गुरुसे नाराज होकर उनपर थूक दिया। गुरुने कपड़ेसे थूक पोंछा और मुस्कराकर अपने शिष्यकी ओर देखते हुए अपने कार्यमें व्यस्त हो गये। गुरुसे कोई प्रतिक्रिया न पाकर शिष्य वहांसे चला गया। रातको अपने व्यवहारके बारेमें सोचते हुए शिष्यको ग्लानि हुई और वह अगले दिन गुरुके सामने नत्मस्तक होकर क्षमा याचना करने लगा। गुरुने प्यारसे शिष्यका सिर सहलाते हए कहा, ‘मैं तो केवल प्यार देना जानता हूं और तुम्हें वहीं दे सकता हूं। प्रेम करना मेरा स्वभाव है और मुझसे वही हो सकेगा।Ó ऐसे गुरुका स्नेह और सान्निध्य पाकर शिष्यने अपनेको धन्य महसूस किया। उसे लगा कि उसका जीवन सार्थक हो गया है। यह सच है कि प्रेमसे परिपूर्ण हृदयमें क्रोध नहीं उत्पन्न होगा और उसमें बदला लेनेका भाव भी नहीं पैदा होगा। गलती करनेवाले व्यक्तिके प्रति भी प्रेम भाव होना ही क्षमा है। क्षमा यदि हमारे स्वभावसे उत्पन्न हो तो वही सच्ची क्षमा है अन्यथा वह हमारे अहंकारका ही रूप होगी। हृदयमें प्रेम हो तो ऐसी क्षमा स्वत: आ जाती है। क्षमा करना हमारी अनिवार्यता या विवशता नहीं होनी चाहिए अपितु एक प्रेमसे परिपूर्ण हृदयकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होनी चाहिए। क्षमा करनेसे सबसे पहला लाभ, क्षमा करनेवालेको ही होता है क्योंकि उसके हृदयमें घृणाके बीज पनपनेकी आशंका नही होती। क्षमा करनेवाला व्यक्ति स्वयंको उतना ही हल्का और आनंदमय महसूस करता है जैसा पिंजरेसे छूटा हुआ पक्षी।