सम्पादकीय

‘ताउते’ के बाद ‘यश’ की आफत


प्रभुनाथ शुक्ल

तूफान शब्दकी आशंका और उसकी कल्पना मात्रसे इनसान भय और डरसे सिहर उठता है। इतनी बड़ी आबादी जब कभी तूफानोंका सामना करती है तो उसपर क्या गुजरती होगी। समुद्र तटीय इलाकोंमें यह खतरा अक्सर बना रहता है। भारतमें अरब सागर और बंगालकी खाड़ीमें कम दबाबका क्षेत्र अक्सर बनता है। जिसकी वजहसे समुद्र तटीय राज्योंको तूफानसे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। केरलसे उठे तूफान तौकते वजहसे तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थानको काफी नुकसान हुआ है। सबसे अधिक गुजरातको क्षति उठानी पड़ी है। वहां ४५ से अधिक लोगोंकी मौत हुई है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीको प्रभावित इलाकोंका हवाई दौरा भी करना पड़ा है। अभी देशमें आये ताउते जैसे चक्रवातीय तूफानसे उबर नहीं पाया था कि अब बंगालकी खाड़ीमें कम दबाब बननेकी वजहसे एक और तूफान यशका खतरा बढ़ गया है। जिसका व्यापक असर पश्चिम बंगाल, ओडिसा, मेघालय और असममें दिख सकता है। देश अभी कोरोना जैसे महामारीसे जूझ रहा है। इसी बीच इन तूफानोंकी दस्तक समुद्र तटीय इलाकोंके लोगोंकी पीड़ाको और बढ़ा रहे हैं। पश्चिम बंगाल सरकारने यशसे निबटनेके लिए तैयारियां शुरू कर दी है।

मुख्य मंत्री ममता बनर्जीने राज्यके अधिकारियोंके साथ मीटिंग कर इस संबंधमें दक्षिण बंगालके इलाकोंसे राज्यकी जनताको सुरक्षित स्थानपर ले जानेको कहा है। राज्य आपदा प्रबंधन विभागको सतर्क कर दिया गया है। पिछली बार अम्फानकी वजहसे हुई बांधोंकी क्षतिको देखते हुए मुख्य मंत्रीने बांधोंकी सुरक्षाको विशेष निर्देश दिया है। मौसम विभागकी चेतावनीके बादसे सरकार सतर्क हो गयी। २५ से २६ मईतक राज्यमें चक्रवातीय तूफानका असर दिख सकता है। ताउतेका प्रभाव देशके दूसरे हिस्सोंमें भी देखा गया है। तूफानोंकी वजहसे जन और धनकी भारी हानि होती है। सुनामी, अम्फान, निसर्ग, हुदहुद, तौकतेके बाद अब यश भी पूर्वी राज्योंमें तबाही मचानेको बेताब है। मौसम विभागकी चेतावनीमें कहा गया है कि इसका सबसे अधिक असर पश्चिम बंगालके दक्षिणी इलाके, मेघालय और मिजोरम एवं असममें होगा। तूफान जहां आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं इनसानोंके लिए बेहद घातक होते हैं। समुद्रमें मछुवारोंकी जान चली जाती है और नावें डूब जाती है। पेड़ोंके साथ इमारतोंको भारी नुकसान होता है।

ताउतेकी वजहसे कई मछुवारोंकी नावें डूबनेसे काफी संख्यामें लोग लापता हैं। तूफानोंको लेकर एक बात लोगोंके दिमागमें घर करती है कि आखिर तूफानोंके नाम इतने अजब-गजब कैसे होते हैं। तूफानोंका नाम कैसे रखा जाता है। तूफानोंके नामकरणकी वजहके पीछे कारण क्या है। इस तरहके सवाल आम आदमीके जेहनमें उठते रहते हैं। हालमें ताउते तूफान आया था जिसका नामकरण म्यामांरने किया था। स्थानीय भाषामें जिसका अर्थ छिपकलीसे था। २०१७ में आये ओखी तूफानका नाम बंगलादेशने रखा था जिसका मतलब आंख होता है। फोनी नाम भी बंगलादेशने दिया था। अम्फान नाम थाइलैंडने दिया था। निर्सग तूफानका नामकरण भारतने किया था। इसके अलावा गाजा, तितली, वरदा, हुदहुद, बुलबुल और क्यार, लहरके अलावा आनेवाले तूफानका नाम सागर भारतने ही रखा है। अमेरिकाने डोरियन, बोम्ब, फ्लोरेंस जैसे तूफानोंका नाम रखा। जबकि ऑस्ट्रेलियाने वेरोनिका, चीनने एम्पिल, जापानने ट्रोमी, जेबी, लैन तूफानोंके नाम दिये।

दुनियाभरमें तूफानोंके अध्ययनके लिए संबंधित देशके चेतावनी केंद्र स्थापित किये हैं। जिसकी वजहसे तूफान एंव चक्रवातके बारेमें पूरी जानकारी संबंधित देशको मिल पाती है। संबंधित केंद्रोंमें मौसम विज्ञानियोंकी तैनातीके बाद आधुनिक मशीनें भी रखी गयी हैं जिनकी वजहसे तूफानका केंद्र, उसकी गति और दूसरी बातोंका आकलन संभव होता है। वैज्ञानिक प्रगतिके चलते ही यह संभव हो सकता है कि तूफानोंके आनेसे पूर्व सारी सूचनाएं जुटा ली जाती हैं जिसकी वजहसे लोगोंको सुरक्षित स्थानपर भेजकर जनकी हानिको काफी हदतक रोक लिया जाता है। जबकि पूर्वमें ऐसा नहीं हो पाता था। जिसकी वजहसे प्राकृतिक तूफानोंमें काफी लोगोंकी जान चली जाती थी। भारतमें आनेवाले चक्रवातीय तूफान बंगालकी खाड़ी और अरब सागरसे उठते हैं। एक आंकड़ेके अनुसार १२० सालोंमें अभीतक जो तूफान आये हैं उसमें केवल १४ फीसदी अरब सागरसे उठे हैं जबकि अन्य ८६ फीसदी बंगालकी खाड़ीसे उठते हैं। वैज्ञानिकोंके अनुसार बंगालकी खाड़ीसे उठनेवाले तूफान अधिक प्रभावशाली और खतनाक होते हैं अरबसागरमें उठनेवाले तूफानोंकी अपेक्षा। जिन तूफानोंकी गति सीमा ३५ किमीसे कम होती है उन्हें कोई विशेष नाम नहीं दिया जाता है। लेकिन इससे अधिककी गति सीमावाले तूफानोंका नामकरण किया जाता है। यदि इसकी गति ७४ से अधिक हो जाती है तो इसका चक्रवात और तूफानमें वर्गीकरण किया जाता है।

तूफानोंके नामकरणके पीछे उसके अध्ययनकी बात होती है। मौसम वैज्ञानिक अध्ययनकी सुविधा और तबाहीके आकलनके लिहाजसे तूफानोंका नाम रखते हैं। क्योंकि तूफानोंके नामसे ही आपदा प्रबंधन किया जाता है और चेतावनी जारी की जाती हैं। दूसरी बात कौन-सा तूफान कितना अधिक प्रभावशाली रहा और कब आया इस अध्ययनके लिए भी नाम रखना आवश्यक होता है। चक्रवातोंके अध्ययन क्षेत्रीय स्तरपर होते हैं इसलिए भी सुविधाके अनुसार ऐसा किया जाता है। जिसकी वजहसे तमाम देश तूफानोंका नाम रखते हैं। दुनियामें तूफानोंके नामकरणकी शुरुआत २००४ से हुई। तूफानोंका नामकरण एक साथ ६४ देश मिलकर करते हैं। आठ देशोंकी तरफसे सुझाये गये नामोंके क्रमके अनुसार तूफानोंका सहज और सरल नाम रखा जाता है। भारत इस समय कोरोना महामारीसे जूझ रहा है इसीमें ताउतेके बाद अब यशने बड़ी चुनौती खड़ी कर दिया है। फिर भी हमें संयम और धौर्यसे काम लेना होगा। देशके लिए यह परीक्षाकी घड़ी है।