सम्पादकीय

अपनोंकी बगावतसे जूझती कांग्रेस


रमेश सर्राफ धमोरा

कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने ही असंतुष्ठ नेताओंकी बगावतसे जूझ रही है। देशमें लगातार कांग्रेसका प्रभाव कम होता जा रहा है। कुछ दिन पूर्व पुडुचेरीमें कांग्रेसकी सरकार गिर गयी थी। ऐसेमें गिरते जनाधारको रोकनेमें नाकाम रही कांग्रेसमें व्याप्त आंतरिक संकट पार्टीको और अधिक कमजोर करेगा। कांग्रेसके २३ वरिष्ठ नेताओंने गुलाम नबी आजादके अध्यक्षतामें जी-२३ नामसे एक मोर्चेका गठन किया है। जिसमें शामिल नेता कांग्रेसके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधीकी कार्य प्रणालीसे सहमत नहीं है। ये सभी नेता खुलकर कांग्रेसमें आंतरिक लोकतंत्र स्थापित करनेकी मांग कर रहे हैं। जी-२३ के नेताओंका कहना है कि कांग्रेस पार्टीमें संघटनके चुनाव होने चाहिए। जिससे पार्टीमें व्याप्त मनोनयन करनेकी प्रवृत्ति समाप्त हो, ताकि आंतरिक पारदर्शिता बहाल हो सके। जी-२३ में देशके विभिन्न प्रदेशोंके वह वरिष्ठ नेता है जो कभी कांग्रेस पार्टीके कर्ताधर्ता होते थे। परन्तु अब पार्टीमें अपना अस्तित्व बचानेकी लड़ाई लड़ रहे हैं। गुलाब नबी आजादका हालमें राज्यसभाका कार्यकाल पूरा होनेके कारण उनको राज्यसभामें नेता प्रतिपक्षके पदसे भी हटना पड़ा। जिसका उन्हें गहरा मलाल है। उनका मानना है कि कांग्रेसको उनकी सेवाओंके बदले समय रहते किसी दूसरे प्रांतसे उन्हे राज्यसभामें भेजा जाना चाहिए था। परन्तु पार्टी नेतृत्वने पहले तो उनको उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यके प्रभारी महासचिव पदसे हटाकर हरियाणा जैसे छोटे प्रदेशका प्रभारी बनाया था। उसके बाद पिछले दिनों कांग्रेस संघटनमें किये गये पुनर्गठनमें उन्हे पार्टी महासचिव पदसे भी हटा दिया गया था। आज वह कांग्रेसमें किसी बड़े पदपर नहीं है।

कांग्रेसमें बनाये गये जी-२३ ग्रुपमें हरियाणाके पूर्व मुख्य मंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डाके अलावा कोई जनाधारवाला नेता नहीं है। इसमें शामिल अधिकांश पूर्व मुख्य मंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व सांसद एवं अन्य वरिष्ठ नेताओंकी मतदाताओंपर पकड़ नहीं रही है। स्वयं गुलाम नबी आजाद १९८० एवं १९८४ में महाराष्ट्रके वाशिमके अलावा कहींसे भी चुनाव नहीं जीत सके। ऐसेमें उनको पार्टी लगातार लम्बे समयतक राज्यसभाके जरिये संसदमें भेजती रही। जब भी केंद्रमें कांग्रेसकी सरकार बनी तो उनको मंत्री बनाया। इसके अलावा पार्टीने उनको जम्मू-कश्मीरका मुख्य मंत्री भी बनाया। परन्तु उन सब बातोंको भुलाकर आजाद आज आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीकी खुलकर तारीफ कर अपनी पार्टी लाईनका उल्लंघन कर रहे हैं। कांग्रेसके राष्ट्रीय महासचिव मुकुल वासनिकको भी चुनाव जीते बरसों बीत चुके हैं। रेणुका चैधरीका तो अपना कोई जनाधार ही नहीं है। वह पहले तेलुगू देशममें फिर कांग्रेसमें आकर सांसद एवं मंत्री बनती रही। अब लगातार चुनाव हार जानेके बाद उनको पार्टीकी चिंता सताने लगी है। जबकि उनके कार्यक्षेत्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेशमें कांग्रेस समाप्त-सी हो गयी है। एम वीरप्पा मोइली कभी कर्नाटकमें मुख्य मंत्री एवं केंद्रमें मंत्री हुआ करते थे परन्तु अब वह प्रभावहीन हो गये हैं। राजेंद्र कौर भ_लका पंजाब एवं पृथ्वीराज चैहानका महाराष्ट्रके मतदाताओंपर प्रभाव नहीं रहा है। आनन्द शर्मा अभी राज्यसभामें पार्टीके उपनेता है। वह मनमोहन सिंहकी दोनों सरकारोंमें प्रभावशाली मंत्री रह चुके हैं। पार्टीने उनको कई बार राज्यसभामें भेजा। कांग्रेसने पिछली बार तो उनका राजस्थानसे राज्यसभाका छह महीनेका कार्यकाल बाकी रहनेके बावजूद भी उनको राजस्थानकी सीटसे इस्तीफा दिलवाकर हिमाचल प्रदेशसे राज्यसभा सदस्य बनवाया गया था। क्योंकि उनके राजस्थानसे पुन: निर्वाचित होनेकी संभावना नहीं थी। आनन्द शर्माने अपने जीवनमें कभी कहींसे वार्ड मेंबरका भी चुनाव नहीं लड़ा है। इसके बावजूद भी वह कांग्रेसमें राष्ट्रीय नेता बने हुए हैं। लगातार विवादोंमें घिरे रहनेके बावजूद भी शशि थरूरको पार्टी लोकसभाका टिकट भी देती है और सरकार बननेपर मंत्री भी बनाती है। इसके बावजूद भी वह पार्टीसे असंतुष्ट हो रहे हैं। पंजाबके मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंहके प्रयासोंसे मनीष तिवारी लोकसभाका चुनाव जीत पाये थे। मनमोहन सिंहकी सरकारमें उनको सूचना प्रसारणमंत्री भी बनाया बनाया गया था। कपिल सिब्बलके लोकसभा चुनाव हार जानेके बावजूद उनको उत्तर प्रदेशसे राज्यसभामें भेजा गया था। माना कि वह देशके एक बड़े वकील है परन्तु उनके बयानोंसे पार्टीको खासा नुकसान भी उठाना पड़ता है। मध्यप्रदेशके विवेक तंखाको भी पार्टीने पिछले दिनों राज्यसभामें भेजा था। आज वही पार्टीसे असंतुष्ट हो रहे हैं।

शीला दीक्षितके पुत्र होनेके कारण संदीप दीक्षित एक बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। अब उनका कोई राजनीतिक वजूद नहीं बचा है। अरविंदर सिंह लवली दिल्लीमें शीला दीक्षितकी सरकारमें मंत्री एवं दिल्ली प्रदेश कांग्रेसके अध्यक्ष रहे हैं। दल-बदलकर वह भाजपामें शामिल हो गये थे। परन्तु वहां तवज्जो नहीं मिलनेके कारण फिरसे कांग्रेसमें शामिल हो गये। परन्तु यहां आकर असंतुष्ट गुटके साथ जुड़े हुए हैं। जितिन प्रसादके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेसके बड़े नेता थे। पिताके नामके सहारे ही कांग्रेसमें उनको आगे बढऩेका मौका मिला था। परन्तु दो बार लोकसभा चुनाव हार जानेके बाद उनका जनाधार खत्म हो गया है। उत्तर प्रदेशमें प्रियंका गांधीके सक्रिय होनेके बाद वह खुदको कांग्रेसकी राजनीतिमें अनफिट महसूस कर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावसे पूर्व उनके पार्टी छोडऩेकी चर्चा भी चली थी। परन्तु अभीतक वह पार्टीमें बने हुए हैं। मिलिंद देवड़ा महाराष्ट्रसे एकमात्र राज्य सभा सीटसे सांसद बनना चाहते थे। परन्तु राहुल गांधीने अपने निकटस्थ राजीव सातवको राज्यसभामें भेज दिया। उसके बाद मिलिंद देवड़ा पार्टीसे नाराज चल रहे हैं। ग्रुप २३ के सभी नेताओंने हालमें जम्मूमें एक दो दिवसीय कार्यक्रमका आयोजन किया था। जिसमें ग्रुपके सभी २३ नेता शामिल हुए थे। वहां उन्होंने मीडियाके सामने खुलकर कांग्रेसकी कार्यप्रणालीपर सवाल उठाते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टीमें मौजूदा कार्यप्रणालीमें बदलाव किया जाये ताकि पार्टी फिरसे मजबूत हो और जनतामें खोया अपना जनाधार हासिल कर सकें। कुल मिलाकर कांग्रेसके बागी नेता कांग्रेसके केन्द्रीय नेतृत्वपर दवाब बनाकर अपना प्रभाव बनाये रखना चाहते हैं।