डा. रमेश ठाकुर
कश्मीरमें बड़ा करनेसे पहले घाटीके नेताओंके साथ प्रधान मंत्री द्वारा बैठक करना एक प्रयोग मात्र था, फिलहाल हाई प्रोफाइल इस बैठकसे दो बातें स्पष्ट हुईं। बैठकके जरिये प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने घाटीके विभिन्न दलोंके प्रमुख नेताओंका मन टटोला और यह जाना कि ३७० के बाद जम्मू-कश्मीरके विकास और आवामकी खुशहालीके लिए वह कितने संजीदा हैं या फिर अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षीओंके लिए वैसे ही तड़प रहे हैं जैसे नजरबंदीके पूर्व थे। दूसरा, बैठकमें प्रधान मंत्री और उनके मंत्री ज्यादा कुछ नहीं बोले, बोलनेका मौका कश्मीरी नेताओंको ही दिया गया। गुपकारोंने जो पांच मांगे बैठकमें रखीं, कमोबेश वही थी जिसपर कभी सहमति बननी ही नहीं थी। गुपकार नेता इस भ्रममें रहे कि शायद केंद्र सरकार अब उनके दबावमें आ गयी है। तभी कोरोना संकटके बीच उनको दिल्ली तलब किया गया। परन्तु शायद उन्हें पता नहीं था उनके भीतरका भेद मुलाकातके माध्यमसे जानना था। उनका मन भी टटोलना था कि कश्मीरी नेताओंकी सियासी महात्वाकांक्षाएं कम हुई या नहीं।
प्रधान मंत्रीके साथ कश्मीरी नेताओंकी करीब चार घंटे बैठक चली। कश्मीरी नेताओंमें कन्फ्यूजन जबरदस्त दिखा। बैठकमें एकजुटता नहीं दिखी। सब अलग-अलग ढपली बजाते दिखे। सामूहिक मांगपर कोई भी टिकता नहीं दिखा। बैठकमें आठ दलोंके कुल १४ नेता दिल्ली बुलाये गये थे जिनमेंसे कुछ तो इसलिए खुश थे, उनको प्रधान मंत्रीके साथ बैठक करनेका मौका मिल रहा था। बाकी एकाध टूटकर कुछ समय बाद मोदीके पक्षमें आ जायंगे, चुनावसे पहले, इसकी संभावनाएं दिखती हैं। प्रधान मंत्रीने गुपकार नेताओं और देशके लोगोंपर मनोवैज्ञानिक दबाव डालनेके लिए एक बेहतरीन प्रयोग किया। दरअसल बैठकसे पूर्व जारी एक ग्रुप तस्वीरको सोशल मीडियापर सभी देशवासियोंने देखा, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके साथ सभी गुपकार अलाएंसके नेता खड़े दिखे, वह भी बिना मास्कके, फोटो खिचवानेके वक्त मास्क हटानेके पीछे भी कई राज छिपे थे। फोटोंमें अधिकांश नेताओंके चेहरोंपर हल्की मुस्कान थी, बस एकाधके चेहरे मुरझाये हुए थे। इसी तस्वीरको प्रधान मंत्रीने तुरंत अपने अधिकृत ट्विटर हैंडलपर शेयर किया है। इस थ्योरीको समझनेकी जरूरत है। तस्वीरके जरिये उन्होंने यह बताना चाहा कि दोनों पक्षोंमें मीटिंग सौहार्दपूर्ण माहौलमें हुई। गुपकार पक्ष प्रधान मंत्रीसे खुश है।
फिलहाल तस्वीर खुशनुमा वातावरण जरूर बयां कर रही थी। लेकिन कहानी उसके कहीं विपरीत थी। जब मीटिंग आरंभ हुई तो सबसे पहले प्रधान मंत्रीने सभी नेताओंसे अपने चिरपरिचित अंदाजमें हालचाल पूछा, घर-परिवारकी खैरियत जानी। उसके बाद उन्होंने कहा जी बतायें, कश्मीरके लिए क्या कुछ करना चाहिए। बस फिर क्या था, कश्मीरी नेताओंने लगा दी मांगोंकी बौछारें, मांगोंमें ज्यादातर उनकी सियासी महात्वाकांक्षाएं जुड़ी थी। कश्मीरियोंके लिए अपने निजी स्वार्थकी बातें ज्यादा शामिल थीं। उनकी मांगोंको केंद्रीय नेतृत्व चुपचाप सुनता रहा। दरअसल प्रधान मंत्रीने माहौल कुछ ऐसा बना दिया था, ताकि वह खुलकर अपनी इच्छा जाहिर कर सकें। मांगोंका पिटारा जब घाटीके नेताओंने खोला तो सबने अलग-अलग इच्छाएं रखीं। जम्मू-कश्मीरके पूर्व मुख्य मंत्री फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटेने खुलकर धारा ३७०, आर्टिकल ३५ए की बहालीकी मांग रखी। वह दोनों पहले भी इसी मांगपर जोर देते आये थे। साथ ही उन्होंने धमकीनुमा यह भी कहा कि कोर्टमें इस मसलेको लेकर उनकी लड़ाई जारी रहेगी। फारूक अब्दुल्लाकी धारा ३७० की बहालीकी मांगके बाद बैठकमें सन्नाटा छा गया। सन्नाटा छाना स्वाभाविक भी था। क्योंकि बैठकमें कश्मीरके भविष्यका ताना-बाना बुनना था, न कि अतीतके पन्नोंको कुरेदना था। वहीं, पूर्व मुख्य मंत्री महबूबा मुफ्तीने भी फिरसे पाकिस्तानके साथ बातचीत करनेपर प्रधान मंत्रीपर जोर डाला। इससे बैठकमें कुछ तल्खीका माहौल बना। कुल मिलाकर बैठकके जरिये प्रधान मंत्री कश्मीरी नेताओंकी टोह लेना चाह रहे थे। वह यह जानना चाहते थे कि बीते दो वर्षोंसे रुकी बातचीत और नजरबंदीके बाद घाटीके नेताओंके हृदयमें कुछ परिवर्तन हुआ या नहीं या फिर पुरानी जहरीली सोचसे ग्रसित हैं, जिसका उन्हें ठीकसे आभास हो गया। मीटिंगसे पता चल गया कि उनकी सोच वैसीकी वैसी ही है। सच यह है कि जम्मू-कश्मीरको लेकर प्रधान मंत्रीकी रणनीति और ब्लू प्रिंट पहलेसे तैयार है। प्रधान मंत्रीका मानना था कि यदि उनकी रणनीतिमें कश्मीरी नेताओंके विचार मेल खाते हैं तो उनका स्वागत है। लेकिन बैठकके जरिये इतना स्पष्ट हो गया कि उनकी सोचसे कश्मीरी नेता फिट नहीं बैठते। इसी बातकी नब्ज टटोलनेके लिए पीएमने सभीको दिल्ली बुलाया था।
फिलहाल जम्मू-कश्मीरके लिए जो भी करना होगा, प्रधान मंत्री आजाद होकर फैसला करेंगे, भविष्यमें किसी भी फैसलेमें वह उनकी राय नहीं जानेंगे। क्योंकि राय जाननेमें सिर्फ समय बर्बाद करना होगा। बैठकसे इतना पता चल गया है कि कश्मीरी नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओंसे बाहर नहीं निकल पायंगे। दूसरे बात यह, जब दिल्लीमें बैठक चल रही थी। तभी पाकिस्तानमें इमरान खान बैठक कर रहे थे, उनकी नजर भी प्रधान मंत्रीके फैसलेपर टिकी थी। हो सकता है महबूबा पूर्व मुख्य मंत्री महबूबा मुफ्ती बादमें इमरान खानको बैठकके संबंधमें बताया भी हो। कश्मीरी नेताओंमें महबूबा मुफ्ती ही एक ऐसी नेता है जो पाकिस्तानके सबसे ज्यादा करीब हैं। बैठकमें उन्होंने प्रधान मंत्रीसे दोनों देशोंके बीच जम्मूसे पाकिस्तानके लिए रेलगाड़ी चलानेका भी आग्रह किया।