Latest News अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका को तालिबान से समझौते के लिए क्‍यों होना पड़ा मजबूर,


  • वाशिंगटन (एएनआई)। अफगानिस्‍तान शांति वार्ता के लिए अमेरिका के पूर्व विशेष प्रतिनिधि जाल्‍मे खलीलजाद ने कहा है कि अमेरिका तालिाबान के हाथों हार रहा था। इसकी भरपाई के लिए उसने तालिबान से समझौते को एक अंतिम विकल्‍प के रूप में चुना था। उन्‍होंने ये बात सीबीएस न्‍यूज के साथ हुई बातचीत के दौरान कही है। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सेना ने कई बार युद्ध के मैदान में खुद को मजबूत स्थिति में लाने की कोशिश की, लेकिन हर बार वो नाकाम ही रही।

टोलो न्‍यूज के मुताबिक खलीलजाद सिर्फ यहीं पर नहीं रुके, उन्‍होंने कहा कि तालिबान के साथ हुआ समझौता केवल इस बात पर आ‍धारित था कि अमेरिका वहां पर उनसे नहीं जीत सकता था। वक्‍त भी वहां पर हमारा साथ नहीं दे रहा था इससे बेहतर था कि अब या बाद में तालिबान के साथ समझौता कर लिया जाए। इस बातचीत में उन्‍होंने अफगानिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति अशरफ गनी पर भी जमकर अपनी भड़ास निकाली है। उन्‍होंने कहा कि वो रक्षा क्षेत्र को इतने समय में भी एक साथ नहीं ला सके। उन्‍होंने ये भी कहा कि उनके काबुल से मुंह मोड़कर भागने से हालात अधिक खराब हुए।

अफगानिस्‍तान से अपनी सेना की वापसी को लेकर अमेरिका केवल कलेंडर पर मौजूद दिनों के अनुसार चल रहा था, जबकि वो जमीनी हकीकत से पूरी तरह से बेपरवाह था। उसको जमीनी हकीकत का अंदाजा ही नहीं था। वहां की चुनौतियों और पूर्व में मिली नाकामियों को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका अपने यहां पर केवल अफगानिस्‍तान से होने वाले आतंकी खतरों को रोकने तक ही सीमित था। पूर्व राजदूत ने माना कि अफगानिस्‍तान में दो दशक की अमेरिकी सेना की मौजूदगी के बावजूद वहां पर वो लोकतंत्र लाने में असफल साबित हुए।