सम्पादकीय

अलगाववादपर लोकतंत्रकी जीत


प्रणय कुमार

गत वर्ष ५ अगस्तको धारा ३७० और अनुच्छेद ३५ए के हटनेके पश्चात हुए जम्मू-कश्मीर विकास परिषदके चुनाव और उसके नतीजोंपर केवल शेष भारत ही नहीं, अपितु पूरी दुनियाकी निगाहें टिकी थीं। स्वतंत्रताके लगभग सात दशकों बाद वहा पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली (ग्राम-ब्लॉक-जिला) लागू की गयी है। उसके बादसे ही वहांके आवाममें इस चुनावको लेकर उत्साह एवं उत्सुकताका माहौल था। दरअसल जम्मू-कश्मीरमें लोकतंत्र महज कुछ राजनीतिक घरानों एवं रसूखदार लोगोंतक सीमित था। त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू होनेके बाद वहां जमीनी स्तरपर लोकतंत्रको मजबूती मिलनेकी संभावना प्रबल हुई है। पहले तो निष्पक्ष, अहिंसक एवं शांतिपूर्ण चुनाव करानेको लेकर ही तरह-तरहकी आशंकाएं और चिंताएं व्यक्त की जा रही थीं। उधर सात दलोंको मिलाकर बने गुपकार-गठबंधन (पीएजीडी) के दावों और बड़बोले बयानोंने भी सियासी सरगर्मियोंको परवान चढ़ाया था। जहां नेशनल कांफ्रेंसके सबसे बड़े नेता फारूख अब्दुल्ला धारा ३७० और अनुच्छेद ३५-ए को पुन: बहाल करानेको लेकर चीनतकसे मदद लेनेकी सार्वजनिक वकालत कर चुके थे, वहीं महबूबा यहांतक बोल गयीं कि यदि इन धाराओंके हटनेसे पूर्वकी स्थिति बहाल नहीं हुई तो घाटीमें कोई तिरंगेको थामनेवालातक नहीं बचेगा। परन्तु कश्मीरके आवामने ही उनके बड़बोले एवं धमकीभरे बयानोंका माकूल जवाब दे दिया। तमाम मुश्किलों और आतंकवादियोंके खौफको धता बताते हुए आठ चरणोंमें २८० सीटोंपर हुए मतदानमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए ५१.४२ प्रतिशत मतदानके साथ वहांके अवामने  लोकतंत्रके इस महापर्वको सफल बनाया, बल्कि चुनावके दौरान कुछ भाजपा उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओंकी हत्या एवं उनपर हुए जानलेवा हमलोंसे भी लोग नहीं डरे और उन्होंने गोली-बंदूककी बजाय विकास और लोकतंत्रमें अपना विश्वास जताया।

धारा ३७० और अनुच्छेद ३५-ए के हटनेके बाद व्यवस्था और सरकार लोगोंका दु:ख-दर्द सुननेके लिए स्वयं उनके द्वारतक पहुंच रही है। अधिकारी अपने-अपने वातानुकूलित कक्षोंसे निकल दूर-दराजके क्षेत्रोंमें जनता दरबार लगाकर समस्याओंका सीधा समाधान देनेका प्रयास कर रहे हैं। वहांकी आम जनताको उन योजनाओंका सीधा लाभ प्रदान कर उन्हें मुख्यधारामें सम्मिलित किया जा रहा है। ब्लॉक विकास परिषदोंका गठन किया गया है। आम लोगोंकी लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ानेपर बल दिया जा रहा है। भ्रष्टïाचारपर प्रभावी अंकुश लगाया जा रहा है। रोशनी योजना जैसे भ्रष्टïाचारको बढ़ावा देनेवाले कानूनोंको निरस्त कर दिया गया है। सरकारी सुविधाओ-संसाधनों-योजनाओंकीं बंदरबांटमें लगे राजनीतिक घरानों एवं रसूखदारोंपर नकेल कसा जा रहा है।

वहां संचार और आधारभूत संसाधनोंके विकासपर लगातार जोर दिया जा रहा है। सरकारी नौकरियोंसे लेकर वहां रोजगारके नये-नये अवसर सृजित किये जा रहे हैं। व्यापारिक जगतको १३०० करोड़ रुपयेका आर्थिक पैकेज मिला है, वह भी बिचौलियोंके बिना। बेरोजगारी दूर करने, निजी उद्योगों एवं स्वउद्यमिताको प्रोत्साहित करनेके लिए अगले तीन वर्षोंमें २५००० करोड़ रुपयेका निवेश जुटानेका लक्ष्य रखा गया है। उल्लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षोंके दौरान जम्मू-कश्मीरमें हस्तकला एवं हथकरघासे जुड़ी वस्तुओंका निर्यात लगभग पांच हजार करोड़ रुपयेतक पहुंच गया है। इस क्षेत्रमें अपार संभावनाओंको देखते हुए ही घाटीके हस्तशिल्पियों एवं बुनकरों द्वारा बनाये सामानको दुनियाभरमें ऑनलाइन उपलब्ध करानेके लिए फ्लिपकार्टके साथ सरकारने एक समझौतेपर हस्ताक्षर किया है।

बीते एक वर्षमें सरकारने अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकी गतिविधियोंपर उल्लेखनीय अंकुश लगाया है। इससे क्षेत्रमें अमन और भाईचाराका माहौल बना है और विकासको तीव्र गति मिली है। कश्मीरी युवाओंका आतंकवादके प्रति रुझान पहलेसे बहुत कम हुआ है। वहांकी ६५ फीसदी आबादी ३५ सालसे कम उम्रकी है। चूंकि पूर्वकी सरकारोंने उनके रोजगारके लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया, इसलिए वहां बेरोजगारी दर भी सर्वाधिक रही है। स्वाभाविक है कि देश विरोधी ताकतों एवं अराजक तत्वोंके लिए इन युवाओंको बरगलाना आसान था। जो बहकावेमें आकर भटक गये थे, वे भी आतंककी राह छोड़ मुख्यधारामें शामिल हो रहे हैं। आतंकवादियोंके जनाजेमें जुटनेवाली भीड़, पत्थरबाजी अब घाटीके लिए बीते दिनोंकी बात हो गयी है। लगभग दससे भी अधिक जिले आतंकवादमुक्त घोषित किये जा चुके हैं।

इन धाराओंके हटनेका सर्वाधिक लाभ जम्मू-कश्मीरकी बेटियोंको प्राप्त हुआ है। वह आतंक और भयके सायेसे मुक्त शिक्षा एवं रोजगारके लिए निडरतासे आगे आ रही हैं। ४९० से भी अधिक महिला उम्मीदवारोंका डीडीसी चुनाव लडऩा लोकतांत्रिक प्रक्रियामें उनकी सक्रिय भागीदारी एवं अधिकारोंके प्रति सजगताका उदाहरण है। आत्मनिर्भरताके लिए उन्हें हस्तकलासे लेकर तमाम परम्परागत एवं नवीन कौशलोंका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियोंमें उनकी बढ़ती भागीदारी महिला सशक्तीकरणकी दिशामें एक ठोस कदम है। निश्चित ही यह वहांके अवामकी आशाओं-आकांक्षाओंकी मुखर अभिव्यक्ति एवं लोकतंत्रके प्रति उनकी आस्थाको प्रतिध्वनित करता है।