आर.के. सिन्हा
असम विधानसभा चुनावोंमें सभी दल जनतासे तरह-तरहके लुभावने वादे करके वोट मांग रहे हैं। यह उनके राजनीतिक अभियानका हिस्सा भी है। नेताओंकी नजरें हिन्दीभाषियोंके वोटपर भी है। सीमावर्ती राज्य असममें हिन्दीभाषी मतदाताओंका आंकड़ा बहुत ही अधिक है। यह राज्यके तिनसुकिया और गुवाहाटीमें मुख्य रूपसे बसे हैं। वैसे तो यह लगभग सभी शहरोंमें ही मजबूतीसे बसे हैं। इनके वोट राज्यकी कई दर्जन सीटोंमें अहम होंगे। यह मेहनती और शारीरिक दृष्टिसे मजबूत भी हैं। छोटी-मोटी शरारत या व्यवधानोंसे घबराकर घर बैठनेवाले तो नहीं हैं। कुछ वर्ष पहलेतक इन हिंदीभाषी बंधुओंपर आतंकी संघटन उल्फाका कहर टूटता था। परन्तु राज्यमें भाजपाकी सरकारने श्रेष्ठ प्रशासन दिया जिसके बाद वहांपर हिन्दीभाषी अपनेको सुरक्षित महसूस करने लगे। भाजपाके राज्यमें सत्तासीन होनेके बाद हिन्दीभाषियोंपर उगाहीके लिए या किसी भी अन्य कारणसे हमले बंद हो गये हैं। पिछले राज्य विधानसभा चुनावकी तरहसे इस बार भी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाह राज्यकी जनताको पूरा भरोसा दे रहे हैं कि राज्यमें विकासके साथ दृसाथ अमन-चैनको सर्वाधिक महत्व दिया जायगा।
उल्फाके आतंकी मेहनतकश हिन्दीभाषियोंसे लेकर कारोबारियोंपर पहले सुनियोजित हमले करते ही रहते थे। उल्फा उग्रवादियोंने ही अरुणाचल प्रदेशसे सटे तिनसुकिया जिलेके बरडुमसा इलाकेमें लघु चाय बागानके मालिक मुनींद्र नाथ आचार्यके घरपर ग्रेनेड फेंका था। लेकिन वह घरके बाहर ही फट गया, इसलिए कोई खास नुकसान नहीं हुआ। दरअसल उल्फाको जब भी केंद्र सरकारके सामने अपनी ताकत दिखानी होती थी, तब उसके आतंकी निर्दोष हिंदीभाषियोंको निशाना बनाने लगते थे क्योंकि वह ही उनके सॉफ्ट टारगेट होते थे। उल्फाने ही पूर्व माजुली द्वीपके हिंदीभाषी व्यापारी शिवाजी प्रसादकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। परन्तु अब यह सब तो गुजरे दौरकी बातें हो गयी हैं। मुख्य मंत्री सर्बानंद सोनोवालने नरेन्द्र मोदीके नेतृत्ववाली केन्द्र सरकारके सहयोगसे उल्फा जैसे देशविरोधी संघटनकी कमर ही पूरी तरह तोड़कर रख दी है। यह वैसे तो कांग्रेसके शासनकालमें भी हो सकता था। परन्तु कांग्रेसकी पूर्व सरकारें तो राज्यमें उल्फा और बोडो जैसे संघटनोंके सामने घुटने टेकनेकी मुद्रामें आ गयी थीं। देखिये चुनाव तो आते-जाते ही रहते हैं, परन्तु देशको सोचना होगा कि क्या वह उन चंद सिरफिरे लोगोंको धूलमें मिलाये या उनके सामने समर्पण कर दे, जो किसीको बस इसलिए मार देते हैं कि वह हिन्दीभाषी हैं। यह देश तो सभी नागरिकोंका है। यहांके संसाधनोंपर तो सबका अधिकार है। इसलिए असममें हिन्दीभाषियोंको या हिन्दीभाषी प्रदेशमें पूर्वोत्तरके लोगोंका अपमान या मारा जाना देश स्वीकार नहीं करेगा। हिंदीभाषियोंका आखिरकार पूर्वोत्तर राज्योंके विकासमें बहुत बड़ा योगदान रहा है। हिन्दीभाषी पूर्वोत्तरमें कई दशकोंसे बसे हुए हैं। उन क्षेत्रोंके विकासमें लगातार लगे हुए है। उन्हें मारा जानाए सिर्फ इसलिए कि वह हिन्दीभाषी है, यह उसी तरहसे बेहद गंभीर मसला है, जैसे देशके दूसरे भागोंमें पूर्वोत्तरके लोगोंके साथ भेदभाव होता है।
असमके हिन्दीभाषियोंमें ज्यादातर भोजपुरी भाषी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेशके लोग हैं लेकिन हिंदीभाषियोंमें मारवाड़ी समाज भी खासा है। यह अब असमिया ही बोलते हैं। वह पूरी तरहसे वहांके ही हो गये हैं। गुवाहाटीका मारवाड़ी युवा सम्मेलन राज्यमें चिकित्सालय, पुस्तकालय, विद्यालयों, धर्मशालाओं आदिका लगातार निर्माण कर रहा है। इन राज्योंमें बिहार, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा और पंजाबसे भी बहुतसे लोग जाकर बसे हुए हैं। यानी अब इनका अपने पुरखोंके सूबोंसे सिर्फ भावनात्मक संबंधभर ही रह गया है। असममें हिन्दीकी जड़ें बहुत ही गहरी हैं। इधर सेना, केन्द्रीय सुरक्षाबलोंसे जुड़े हुए जवान, हिन्दीभाषी राज्योंसे आकर यहां बस गये व्यापारियों, पूर्वी-उत्तर प्रदेश और बिहारसे कामके सिलसिलेमें आये मजदूरोंके कारण यहां हिन्दीभाषाका प्रचार प्रसार हुआ। अब आपको सारे असममें हिन्दी बोलने, जानने, समझनेवाले लोग मिलेंगे। असममें हिन्दीको स्थापित करनेमें गांधी जीने भी पहल की थी। गांधी जीने असमिया समाजको हिन्दीसे परिचित करानेके लिए बाबा राघवदासको हिन्दी प्रचारकके रूपमें नियुक्त करके असम भेजा था। असम तथा पूर्वोत्तरमें हिन्दी इसलिए भी आरामसे स्थापित हो गयी, क्योंकि माना जाता है कि जिन भाषाओंकी लिपि देवनागरी है, वह भाषा हिन्दी न होते हुए भी उस भाषाके जरिये हिन्दीका प्रचार हो जाता है। जैसे कि अरुणाचलमें मोनपा, मिशि और अका, असममें मिरि, मिसमि और बोडो, नगालैंडमें अडागी, सेमा, लोथा, रेग्मा, चाखे, तांग, फोम तथा नेपाली, सिक्किममें नेपाली लेपचा, भड़पाली, लिम्बू आदि भाषाओंके लिए देवनागरी लिपि ही है। देवनागरी लिपि अधिकांश भारतीय लिपियोंकी मां रही है। अत: इसके प्रचार-प्रसारसे पूर्वोत्तरमें हिन्दी शिक्षा और प्रसारका मार्ग सुगम हो गया। एक बात और! असममें हिन्दीके प्रचार एवं प्रसारमें केन्द्रीय हिन्दी संस्थानका योगदान भी उल्लेखनीय रहा है।
यदि बात असम और हिन्दीभाषियोंसे जरा हटकर करें तो हिन्दी प्रदेशोंके लिए भी असमके महान संगीतज्ञ डा. भूपेन हजारिका बेहद आदरणीय और जाना-पहचाना नाम है। भूपेन हजारिकाके गीतोंने लाखों दिलोंको छुआ। उनके गीत ‘दिल हूम हूम करे और ओ गंगा तू बहती है क्योंÓ सुना वह इससे इनकार नहीं कर सकता कि उसके दिलपर उनका जादू नहीं चला। वह गीतकार, संगीतकार, गायक, कवि, पत्रकार, अभिनेता, फिल्म-निर्देशक, पटकथा, लेखक, चित्रकार तथा राजनेता थे। असमकी संगीत-संस्कृति और फिल्मोंको दुनियाभरमें पहचान दिलानेवाले सबसे पुराने और शायद इकलौते कलाकार। यह सारे परिचय असमकी मिट्टीसे निकले भूपेन हजारिकाके हैं। जो हिन्दी फिल्मोंमें असमिया खुशबू बिखेर गये। भूपेन हजारियाने हिन्दी फिल्मों असमियाकी महक घोली। रुदाली फिल्मका प्रसिद्ध गीत दिल हूम-हूम करे लोकप्रिय असमिया गीत बूकु हूम-हूम करेके तर्जपर बना था। आज भी भोजपुरीकी सर्वश्रेष्ठ गायिकाके रूपमें असमकी बेटी कल्पना याज्ञनिक वर्षोंसे प्रतिष्ठित हैं और लाखों भोजपुरी लोकगीत प्रेमियोंके दिलोंमें बसी हैं। फिलहाल देशको यकीन है कि असम विधानसभाके नतीजे प्रदेश, देश और असमके हिन्दीभाषियों हितमें आयंगे। असम हर साल आनेवाली बाढ़से मुक्त होगा और उल्फाके हिन्दीभाषियोंपर हमले गुजरे दौरकी बातोंके रूपमें ही याद की जायंगी।