सम्पादकीय

प्रतिबद्धता 


श्रीश्री रविशंकर

जीवनको देखनेके दो तरीके हैं। वह आपकी जिम्मेदारियोंको पूरा करनेके महत्वके बारेमें हैं। चाहे वह धन, शक्ति या कुछ और हो, आप खुशीकी खातिर इसमें जुट जाते हैं। कुछ लोग दुखका भी आनन्द लेते हैं, क्योंकि इससे उन्हें खुशी मिलती है। किसीका सारा जीवन भविष्यमें या किसी दिन खुश रहनेकी तैयारीमें बीता है। हमने कितने मिनट, घंटे और दिन बिताये हैं। वह ही वह क्षण हैं, जिनमें आपने वास्तवमें जीवन जिया है। जीवनको देखनेके दो तरीके हैं। एक सोच है, मैं एक निश्चित उद्देश्यको प्राप्त करनेके बाद खुश रहूंगा। दूसरा, मैं खुश हूं कि मैं क्या कर सकता हूं। हमारा जीवन एक नदीकी तरह है। एक नदीका तट एक दिशामें अपने प्रवाहको निर्देशित करता है, लेकिन बाढ़के दौरान पानी बिखर जाता है और दिशा खो देता है। इसी प्रकार हमारे जीवनमें ऊर्जाको प्रवाहित करनेके लिए कुछ दिशाकी आवश्यकता होती है। एक दिशाके बिना, यह सब बेकार है। आज अधिकांश लोग असमंजसकी स्थितिमें हैं, क्योंकि उनके जीवनमें दिशाका अभाव है। जब आप खुश होते हैं तो आपमें जीवन ऊर्जा बहुत होती है, लेकिन जब यह जीवन ऊर्जा नहीं जानती है कि कहां जाना है, कैसे जाना है, यह अटक जाती है। जब यह स्थिर हो जाता है तो यह घूमता है। नदीकी तरह ही जीवनको गतिमान रखना है। जीवन ऊर्जाको एक दिशामें ले जानेके लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है। जीवन प्रतिबद्धतापर चलता है। एक छात्र एक प्रतिबद्धताके साथ स्कूल या कालेजमें प्रवेश लेता है। आप एक डाक्टरके पास प्रतिबद्धताके साथ जाते हैं। एक परिवार प्रतिबद्धतापर चलता है। चाहे वह प्यार, व्यवसाय, दोस्ती, काम या जीवनका कोई भी क्षेत्र हो, प्रतिबद्धता है। आप किसी ऐसे व्यक्तिके साथ खड़े नहीं हो सकते जो प्रतिबद्ध नहीं है, लेकिन आपने अपने जीवनमें कितनी प्रतिबद्धता ली है। बेशक हमारी प्रतिबद्धता हमारी शक्ति या क्षमताके अनुपातमें है। यदि आप अपने परिवारकी देखभाल करनेके लिए प्रतिबद्ध हैं तो आप उस क्षमता या शक्तिको प्राप्त करते हैं। यदि आपकी प्रतिबद्धता समुदायके लिए है तो आपको बहुत अधिक ऊर्जा, आनंद, उतनी शक्ति मिलेगी। स्वयंसे पूछें, मैं और क्या कर सकता हूं, तब देखेंगे कि आनंद है। जितनी जिम्मेदारी आप लेंगे, उतनी ही ताकत पास आयगी। प्रतिबद्धता जितनी अधिक होती है, उतनी ही अधिक शक्ति होती है।