सम्पादकीय

आत्मनिर्भरताकी ओर


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभामें आम बजटपर विपक्षके सवालोंका जवाब देते हुए आक्रामक रहीं। बजट सत्रके पहले चरणका कल आखिरी दिन था। वित्तमंत्रीने कहा, मौजूदा बजट भारतको आत्मनिर्भर बनानेकी दिशामें आगे बढ़ चला है। अब हम वैश्विक स्तरपर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। बजट नीतियोंपर आधारित है। कोरोना महामारी जैसी चुनौतीपूर्ण स्थिति भी सरकारको दीर्घकालिक परिस्थितियोंमें भी आवश्यक सुधार लानेसे रोक नहीं सकी। सबसे बड़ा मुद्दा इस बार जो उभरा वह किसानोंका था। इसपर भी वित्तमंत्रीने सरकारकी नीतियोंको स्पष्टï करते हुए कहा कि मोदी सरकार किसानोंको आत्मनिर्भर बनानेकी कोशिश कर रही है। किसानके लिए खेती महज कारोबार नहीं है, यह उसके लिए भावनात्मक विषय है। यही कारण है कि किसानोंका जज्बा हमेशा बुलन्द रहता है। परन्तु इस बार जिस प्रकारसे राष्टï्रीय एवं अन्तरराष्टï्रीय स्तरपर किसानोंको निशानेपर रखा गया, वह निन्दनीय है। वित्तमंत्रीने संसदमें विपक्ष, खासकर कांगे्रसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधीके वक्तव्यपर उन्हें घेरा। वित्तमंत्रीका कहना था कि राहुल गांधी प्रधान मंत्रीका सम्मान नहीं करते। चाहे वह पूर्व प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह हों या मौजूदा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी। अमर्यादित टिप्पणीसे लोग आहत हैं। यह चिन्ताका विषय है कि लोकतन्त्र एवं संवादके मौलिक अधिकारकी बातें कर लोग मर्यादाकी सीमाएं लांघते जा रहे हैं। जब हमारे नेता इस प्रकारका आचरण करेंगे तो आमजन भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेंगे। अत्यन्त चिन्ताका विषय है कि दोनों सदन, लोकसभा एवं राज्यसभाको जहां नीर-क्षीर, विवेकका मन्दिर कहा जाता रहा हो, जहां गरिमामय वक्तव्योंको सर्वदा उच्च श्रेणीमें रखा जाता रहा हो, वह आज निम्रस्तरीय आरोप-प्रत्यारोपोंका दौर भी देख रहा है। अब संसदमें गरिमामय पलोंको आहूत करनेके लिए सभी दल तत्पर दिखते हैं। अभी दो दिन पूर्व ही भावुक पलोंका गवाह बना था सदन, जब समस्त देशवासियोंने देखा कि गुलाम नबी आजादकी विदाईपर मोदी अत्यन्त भावुक दिखे। वहीं, बड़ी पार्टीके पूर्व अध्यक्षका प्रधान मंत्रीके लिए अमर्यादित टिप्पणी व्यथित करती है। निर्मला सीतारमण दस प्रश्नोंके माध्यमसे विपक्ष, खासकर कांग्रेसको घेरती नजर आयीं। बजट चर्चाके दौरान राहुल गांधी सहित कांग्रेसके सदस्यों द्वारा वाकआउटपर भी सीतारमणने कटाक्ष किया। अब हमारे राजनेताओंको भी अपनी भाषापर नियन्त्रण करनेका उपक्रम करना होगा। जिस प्रकारकी भाषाका प्रयोग किया जा रहा है, वह निन्दनीय है।

विरोधका अधिकार

नागरिक संशोधन कानूनके खिलाफ दिल्लीके शाहीनबागमें हुए प्रदर्शनको लेकर सुप्रीम कोर्टने अपने पुराने फैसलेपर पुनर्विचार करनेसे इनकार कर दिया है। याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारीने कहा कि विरोधका अधिकार ‘कभी भी और कहीं भीÓ नहीं हो सकता। सच है कि विरोध जतानेके लिए धरना-प्रदर्शन लोकतन्त्रका हिस्सा है, परन्तु उसकी भी एक समय-सीमा तय होनी चाहिए। आमजनको परेशानीमें डालकर किसी भी धरना-प्रदर्शनको उचित नहीं ठहराया जा सकता। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्टने अक्तूबर, २०२० में फैसला सुनाया था कि प्रदर्शनके लिए जगह चिह्निïत होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति या समूह चिह्निïत स्थानसे बाहर धरना-प्रदर्शन करता है तो नियमत: प्रदर्शनकारियोंको हटानेका अधिकार पुलिसके पास है। जिस प्रकार शाहीनबागमें सार्वजनिक स्थानपर प्रदर्शनकारियोंने कब्जा कर लिया था, उससे आम जनता अत्यन्त परेशान थी। लोगोंको लम्बा रास्ता तय करना पड़ रहा था। बच्चोंको स्कूल जानेमें दिक्कतें आ रही थीं। साथ ही एम्बुलेंसमें गम्भीर मरीजोंकी स्थिति जानलेवा साबित हुई। माननीय न्यायालयका कहना सर्वाधिक उपयुक्त है कि विरोधके अधिकारका यह आशय नहीं है कि आन्दोलनकारी अपनी ही सहूलियत देखें। अपनी मांगोंके आगे वह सामान्यजनकी उपेक्षा कर दें। शाहीनबागमें जिस प्रकारकी परिस्थितियां प्रतिदिन निर्मित हो रही थीं, उसमें विरोध कम और राजनीतिक साजिशें अधिक दृष्टिïगत हुर्ईं। आम तौरपर देखा गया है कि मुद्दाविहीन दलोंके लिए छोटे-छोटे मुद्दे भी सृजित करनेमें देर नहीं लगती और फिर उसपर इस प्रकारकी राजनीति गढ़ी जाने लगती है कि वह झूठ भी सच प्रतीत होने लगता है। कई बार राजनीतिकी आगमें छोटे मुद्देको झोंककर वातावरणको इस प्रकार विषाक्त बना दिया जाता है कि हिंसा, तोडफ़ोड़ या फिर सड़कोंपर लम्बे धरना-प्रदर्शन देखनेको मिलते हैं। नागरिकता संशोधन कानूनपर भी कुछ इसी प्रकारका माहौल बनाया गया। गलत धारणाएं बनाकर शाहीनबागमें धरना-प्रदर्शनको लम्बा खींचा गया और उसकी परिणति दंगोंमें तब्दील हुई, जिसमें आम निर्दोष नागरिकोंपर कुप्रभाव पड़ा, जबकि सचाई यह है कि  नागरिकता संशोधन कानून अबतक लागू ही नहीं हो पाया है। यदि कानूनकी सम्भावनाओं और आशंकाओंको लेकर इस प्रकार आन्दोलन और धरना-प्रदर्शन होने लगे तो फिर देशको कानूनोंसे चलाना मुश्किल हो जायगा। अत: सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त याचिका खारिज करना भविष्यमें धरना-प्रदर्शनपर एक प्रकारसे दिशा-निर्देश माना जायगा।