सम्पादकीय

आसुरी प्रवृत्ति


श्रीराम शर्मा

असुरता इन दिनों अपने चरम उत्कर्षपर हैं। दीपककी लौ जब बुझनेको होती है तो अधिक तीव्र प्रकाश फेंकती और बुझ जाती है। असुरता भी जब मिटनेको होती है तो जाते-जाते कुछ न कुछ करके जानेकी ठान लेती है। इन दिनों भी यही सब हो रहा है। असुर तो अपने नये तेवर और नये हथियारके साथ आक्रमण करनेपर उतारू है। यह भ्रम, अश्रद्धा, लांछन, लोकापवाद फैलाने तथा कोई आक्रमण करने या दुर्घटना उत्पन्न करने जैसे किसी भी रूपमें हो सकता है। असुरता इस प्रकारके अपने षड्यंत्रोंको सफल बनानेमें पूरी तत्परताके साथ लगी हुई है। उसका पूतना और ताड़का जैसा विकराल रूप देखनेके लिए हममेंसे हरेकको तैयार रहना चाहिए। समुद्रमंथनके समय सबसे पहले विष निकला था बादमें वारुणी, फिर धीरे-धीरे क्रमश: उसमेंसे रत्न निकलते गये। अमृत सबसे पीछे निकला था। गायत्री महायज्ञकी धर्म अनुष्ठानमें भी पहले विष ही निकल रहा है ईष्यालु लोग विरोध और  विलगता करते हैं, आगे और भी अधिक करेंगे। यह इस बातकी परीक्षाके लिए है कि आयोजनके कार्यकर्ताओंमें किसकी निष्ठा सच्ची, किसकी झूठी है। जो दृढ़ निश्चय ही है वहीं अंततक ठहरे तो उन्हें लाभ मिलेगा। उथले स्वभाव और बालबुद्धिवाले सहयोगी यदि हट जायं तो कोई हर्ज भी नहीं है। इस छांटका काम निंदको द्वारा बड़ी सरलतासे पूरा हो जाता है। दुर्बल मनोभूमिवाले लोग तनिक थी संदेहास्पद बात सुनकर भाग खड़े होते हैं भीड़को हटानेकी दृष्टिसे यह पलायन उचित भी है। गायत्री आन्दोलनके प्रभावसे अब साधकोंकी भीड़ भी बहुत बड़ी हो गयी है इनमें उच्च श्रेणीकी सच्चे साधकोंकी परीक्षाके लिए यह उचित भी है कि झूठे-सच्चे लोकापवाद फैलें। विवेकवान लोग इन निंदाओंका वास्तविक कारण ढूंढेंग़े तो सचाई मालूम पड़ जायगी और उनकी श्रद्धा पहलेसे भी दूनी-चौगुनी बढ़ जायगी और जो लोग दुर्बल आत्माके है, वह तलाश करनेकी झगड़ेमें न पड़कर सुनने मात्रसे ही भाग खड़े होंगे। इस प्रकार दुर्बल आत्माओंकी भीड़ सहज ही छूट जायगी। असुरताके आक्रमणोंसे जहां यज्ञोंमें बड़ी सारी अड़चने पड़ती हैं, वहां संयोजकमें दृढ़ता पुरुषार्थका मुकाबला करनेकी शक्तिकी अभिवृद्धि, सच्चे धर्मप्रेमियोंकी सचाई जान लेनेपर श्रद्धाका और अधिक विकास और दुर्बल आत्माओंकी अनावश्यक भीड़की छंटनी यह लाभ भी है। इसलिए अपने लक्ष्यपर सदा अग्रसर रहें। मार्गमें कितनी भी बाधाएं आ जायं, अपने मार्गसे कभी पीछे न हटें, बल्कि पूरे जोश और पुरुषार्थके साथ अपनी मंजिलको हासिल करें। सच्चे साधक कभी भी किसी परीक्षासे घबराते नहीं हैं और हमेशा सबसे आगे निकल जाते हैं।