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ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सत्‍ताधारी के साथ विपक्ष भी चिंतित, नेता जी कर रहे ‘चौकीदारी’


होर्डिंग में नजर आए चिरपरिचित चेहरे

चुनावी मौसम भी गजब है, इस मौसम में ऐसे-ऐसे चेहरे नजर आ जाते हैं, जो पिछले पांच साल से ओझल रहे। ये चेहरे बिजली के पोल पर लटके होर्डिंग में नजर आए, दीवारों पर चस्पा पोस्टरों में दिखाई दिए। आने-जाने वाले लोग इन चेहरों को पहचान कर चर्चा किए बिना नहीं रहे। स्वाभिक है, पांच साल बाद जो इन्हें देखा था। गांव-गलियों में जब ये चेहरे साक्षात प्रकट हुए तो टोके बिना नहीं रहा गया। लोग बोले, लंबे अरसे से गायब रहे, अब क्यों हमारी याद आ गई? हालांकि, पूछने वाले भी जानते थे कि उन्हें क्यों याद किया जा रहा था। मगर, आपत्ति की, करनी ही चाहिए। कुछ जगह तो ये कहा गया कि इस बार भी सहयोग किया तो फिर गायब हो जाओगे, अच्छा है समर्थन न दिया जाए, आते-जाते तो रहोगे। दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला, जवाब था भी नहीं।

‘इंजीनियर साहब’ की मंजूर हुईं छुट्टियां

चार महकमों में उलझे रहे ‘इंजीनियर साहब’ की छुट्टियां मंजूर हो गई हैं। शासन ने भी खर्चे की संस्तुिति कर लंबी यात्रा पर मुहर लगा दी। अब अगले महीने ही इनसे मुलाकात हो सकेगी। सुना है कि छुट्टियां समंदर के किनारे बिताने का विचार है। जगह का चयन भी सोच समझकर किया लगता है। मुखिया को अवगत करा दिया है। कह दिया है कि उनकी गैरहाजिरी में ‘छोटे साहब’ ही सबकुछ देखेंगे। ‘नगर’ के वही प्रभारी होंगे। अब तक जो व्यवस्थाएं वे ‘नगर’ में करते आए हैं, अगले 12 दिन उन व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी ‘छोटे साहब’ पर ही रहेगी। चहेते कह रहे हैं कि ‘इंजीनियर साहब’ की छुट्टियां मंजूर होनी ही चाहिए थीं। लंबे समय से स्वजन के साथ कहीं गए भी नहीं। यहां काफी कुछ झेला भी। ‘छोटे साहब’ को छुट्टियां न मिलने का मलाल चहेतों को है। बीमारी में भी जिम्मेदारियां निभाईं थीं। मगर, छुट्टी नहीं मिल सकी।

अब तो सुन लीजिए साहब

डाक्टर साहब ने जब से ‘सर्विस बिल्डिंग’ में कार्यभार संभाला है, तेवर ही बदल गए। पहले तो स्टाफ की राजी खुशी पूछ लिया करते थे, अब किसी की सुनते ही नहीं। जबकि, शहर में स्वच्छता की बड़ी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। सड़कों पर निकल कर उन्हें व्यवस्थाएं देखनी चाहिए, बेहतर करानी चाहिए। लेकिन, वे विभागीय बैठकों में ही नजर आते हैं। बदहाल इलाकों में लोग डाक्टर साहब से गुहार लगा रहे हैं। कह रहे हैं, व्यवस्थाएं पहले ही ठीक थीं। कम से कम हफ्ते में एक बार तो साफ-सफाई हो जाती थी। अब तो महीना गुजर जाता है, कोई सफाई करने नहीं पहुंचता। हेल्पलाइन भी दिलासा देने भर के लिए है। विशेष अभियान का हवाला देकर झाड़ू लगाते कर्मियों के फोटो सोशल साइट्स पर वायरल किए जाते हैं। अगले दिन उन्हीं इलाकों में गंदगी के ढेर नजर आते हैं। शहर में ये कैसा अभियान चला रहे हैं डाक्टर साहब?