सम्पादकीय

उम्मीदोंसे भरा होगा नया वर्ष


निरंकार सिंह
देशमें दलगत राजनीतिके पतनसे क्षोभ और निराशाका वातावरण भी बना है। विखंडनकारी शक्तियोंने देशके आर्थिक विकासमें बाधाएं पैदा की हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि देशकी जनता अब जागरूक हो रही है। इसलिए ऐसे नेता और चेहरे भी बेनकाब हो रहे हैं। कुल मिलाकर २०२१ में हमारी व्यवस्थामें बड़े बदलाव देखनेको मिलेंगे जो देशको प्रगतिकी ओर ले जायंगे। हालांकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश और हमारे ही कुछ असंतुष्ट नेता अपनी हरकतोंसे बाज नहीं आयंगे। लेकिन उनकी कोशिश उसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा। देश ऐसी चुनौतियोंसे निबट लेगा। २०२१ में विज्ञान और तकनीकमें नवाचारोंसे गांव और शहरोंके बीचका अंतर कम होगा। जीवन आरामदायक बनेगा। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती होंगी। नये रोजगार विकल्प मिलेगें तथा अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। बीते सालमें जहां सिर्फ कोरोना महामारी ही सबसे बड़ी चुनौती रही। वहीं नये सालमें भी यह हमें कसौटीपर परखेगी। इसका गहरा प्रभाव अर्थव्यवस्था, शिक्षण एवं परिवहनके क्षेत्रपर पड़ा। विज्ञान एवं तकनीककी दुनियामें विकास बदस्तूर जारी रहा। इस बीच नये शोध एवं अनुसंधानका दौर शुरू हुआ जो नये वर्षमें भी जारी रहेगा। इनोवेशनका दायरा भी बढ़ा है। अंतरिक्ष विज्ञान हो अथवा मिसाइल विज्ञान जो पूर्व नियोजित कार्यक्रम थे वह सभी पूरे हुए। हालांकि इसमें कुछ विलम्ब हुआ लेकिन लक्ष्य पूरा हो गया। इस साल देशमें कुछ अच्छी प्रवृत्तियां विकसित हुई। सतत विकास लक्ष्यके १७ निर्धारित लक्ष्योंकी बात करें तो उनमेंसे १३ का संबंध शिक्षा और साक्षरतासे है। नयी तकनीकसे दूर बैठा बच्चा अब परम्परागत और तकनीक मिश्रित शिक्षण व्यवस्थाको अपनायेगा। इससे सस्ती शिक्षा एवं विदेशोंमें उच्च शिक्षा अध्ययनकी राह आसान होगी। साक्षरता बढ़ेगी, रोजगारके नये अवसर सामने आयंगे। शोध एवं अनुसंधान परवानपर रहा, वहीं विश्वभरमें पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता सेहत तथा मितव्यता जैसे महत्वपूर्ण पहलुआोंकी ओर लोगोंका ध्यान बढ़ा। नवाचारोंके चलते चिकित्सा और शिक्षाके क्षेत्रमें भी बड़ा परिवर्तन आया है। देशमें ऑनलाइन शिक्षण और चिकित्सामें वियरेबल और शिक्षणके क्षेत्रमें फोल्डेबल उपकरण नये साथी होंगे।
वर्ष २०२१ सही मायनेमें उम्मीदों, परिणामों और बदलावोंका साल है या यूं कहिये कि वर्ष २०२० में कोरोनाने जो परीक्षा ली है, वर्ष २०२१ में उसका परिणाम घोषित होगा। निश्चित रूपसे परिणाम बेहतर आयंगे क्योंकि हमने एक सालमें वह कर दिखाया है, जिसकी आनेवाले दशकोंतक कल्पना नहीं की थी। दरअसल वर्ष २०२० में कोरोनाने जो सबक सिखाया, उससे भारत सहित दुनियाभरकी स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक ताने-बानेमें जो बदलाव आया, वह इस साल साफ तौरपर नजर आयगा। एक तरहसे पुरानी व्यवस्थाकी जगह नयी व्यवस्था कायम हो जायगी। सरकारकी भी प्राथमिकताएं बदल जायंगी। भारत जैसे विकासशील देशोंमें अबतक स्वास्थ्य सेवाएं पहली प्राथमिकता नहीं रहीं, लेकिन कोरोनाकी वजहसे हमने यह पूरा साल सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओंको सुधारने और बेहतर करनेमें बिताया है। छोटेसे गांवकी आंगनबाड़ी कार्यकर्तासे लेकर बड़े-बड़े अनुसंधान केंद्रोंने एकजुट होकर जो काम किया, उसकी कल्पना हम कभी नहीं कर सकते थे। भारत जैसे देशमें अबतक मैन्युअल चेन सिस्टम ही सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आता रहा है। हमेशा एक अविश्वास रहता था कि पता नहीं आखिरी व्यक्तितक सेवाएं पहुंचेंगी या नहीं? परन्तु इस महामारीने हमें अहसास करवाया कि यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
अबतक दो सरकारी विभागों में तालमेल बिठाना ही मुश्किल होता था, लेकिन कोरोनाने निर्वाचन आयोग और स्वास्थ्य विभागको एकसाथ सोचना सिखा दिया। मुसीबतमें ही इनसान नया रास्ता खोजता है। जैसे सौ फीसदी मतदानका लक्ष्य लेकर चलनेवाला निर्वाचन आयोग एक मतदाताके लिए भी मतदान केंद्र बनाता है तो वैक्सीन पहुंचानेके लिए भी उसी रास्तेका उपयोग हो सकता है। जब हम परेशान हुए तो ऐसा रास्ता ढूंढ़ निकाला, जिसके लिए हमें न कोई भारी-भरकम सिस्टम खड़ा करना पड़ा, न अलगसे बहुत ज्यादा पैसा खर्च हुआ और न ही योजनाएं बनानेमें अतिरिक्त समय लगा। यह सब हमारे सिस्टममें मौजूद था लेकिन इससे पहले हमने कभी इसके उपयोगके बारेमें नहीं सोचा था। नये सालमें जब यह सिस्टम काम करेगा तो सिर्फ भारतके लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनियाके लिए एक नया मॉडल प्रस्तुत होगा।
अब अनुसंधान केंद्रों और कंपनियोंके बीच तालमेलका भी बड़ा बदलाव देखनेको मिलेगा। कोरोनाके दौरान दोनोंने साथ मिलकर काम किया। एक तरफ अनुसंधान चल रहा था तो दूसरी तरफ कम्पनियोंने यह तैयारी कर ली कि अनुमति मिलते ही वह तुरन्त ही बड़े पैमानेपर वैक्सीन उपलब्ध करवा सकें। वर्ष २०२० के पहले हमारे देशमें पीपीई किट नहीं बनती थी लेकिन अब हम छोटीसे छोटी यूनिट और जिलोंमें इसे तैयार कर पा रहे हैं। वर्ष २०२१ इसी तरह स्वास्थ्यसे जुड़े विषयोंमें हमें आत्मनिर्भर बनायगा। अब तीसरा सबसे बड़ा बदलाव होगा, स्वास्थ्य सेवाओंके बजटमें दोसे तीन फीसदी वृद्धि। हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बजटमें स्वास्थ्य सेवाओंको बेहतर बनानेके लिए कई उपाय और उपक्रम होंगे। इस बदलावसे हमारी स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत हो जायेंगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के अनुसार कोरोना वायरससे बुरी तरीकेसे प्रभावित भारतकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरीपर लौट रही है।
भारतकी अर्थव्यवस्थामें सितंबर तिमाहीमें उम्मीदसे बेहतर सुधार हुआ। विनिर्माण क्षेत्रके बेहतर प्रदर्शनके कारण जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में गिरावट केवल ७.५ प्रतिशत रही। इससे पहले, चालू वित्त वर्षकी पहली तिमाही अप्रैल-जूनमें अर्थव्यवस्थामें २३.९ प्रतिशतकी गिरावट आयी थी। वित्तीय वर्षकी दूसरी तिमाहीमें जीडीपीके आंकड़ोंमें सुधारसे रेटिंग एजेंसियोंने भी सकारात्मक रुख दिखाया है। रेटिंग एजेंसी मूडीजने अपने आकलनमें कहा है कि लॉकडाउन समाप्त होनेके बाद भारतमें आर्थिक गतिविधियोंमें तेजी आयी है। उपभोक्ता मांगमें सुधारसे विभिन्न क्षेत्रोंमें कमाई बढ़ी है। वित्त वर्षकी दूसरी तिमाहीमें ७.५ फीसदीकी गिरावट रही है, जबकि विश्लेषकोंने जीडीपीमें -८.८ फीसदीकी गिरावटका अनुमान लगाया था। पहली तिमाहीमें जीडीपीमें -२३.९ फीसदीकी गिरावट रही थी। इससे अर्थव्यवस्थामें सुधारके संकेत मिल रहे हैं।
मूडीजकी विश्लेषक श्वेता पटौदियाके अनुसार ‘चालू वित्त वर्षमें सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब १०.६ प्रतिशतकी गिरावटके बाद व्यापक स्तरपर मांगमें सुधार और अगले वित्त वर्षमें जीडीपीमें १०.८ प्रतिशतका मजबूत उछाल दर्ज किया जा सकता है। २०२१ में भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्रके लिए हालात सुधरेंगे। आर्थिक गतिविधियोंमें लॉकडाउन हटनेके बाद तेजी आने और विभिन्न क्षेत्रोंमें मांगमें व्यापक सुधारका असर दिखाई देगा। कोरोनाने हमें यह भी सबक सिखाया कि संकटकेके समय स्थानीय संसाधन ही काम आते हैं। वैसे तो भारतके गांव सदियों पहले अपने आपमें आत्मनिर्भर थे। उनकी जो भी आवश्यकताएं होती थीं उनकी आपूर्ति स्थानीय संसाधनोंसे ही होती थी। ऐसी आत्मनिर्भरता दो बड़े उद्देश्योंकी आपूर्ति भी करती है जिसमें आर्थिक एवं पारिस्थितिकी भी जुड़ी है। पिछले दो-तीन दशकोंसे लगातार शहरोंमें भीड़की बाढ़से हवा प्रदूषित हो रही है। यदि गांवके लोग आत्मनिर्भर होंगे तो शहरोंपर दबाव कम पड़ेगा। इससे वहांका भी प्राकृतिक संसाधन संतुलित रहेगा। संसाधनोंपर आधारित खास तौरपर खेतीबाड़ीके नये प्रयोगोंसे हम भारतकी दिशा बदल देंगे। आनेवाले समयमें दुनियाका सबसे बड़ा उद्योग खेतीबाड़ी ही होनेवाला है।