सम्पादकीय

उम्मीद और चुनौती


कोरोनासे प्रभावित देशकी अर्थव्यवस्थाके सन्दर्भमें वित्त मंत्रालयने भी स्वीकार किया है कि दूसरी लहरसे चालू वित्त वर्षकी पहली तिमाही (अप्रैलसे जून २०२१) में आर्थिक विकास दरमें गिरावटकी आशंका है। मंत्रालयकी मासिक रिपोर्टमें कहा गया है कि दूसरी लहरका आर्थिक विकास दर असर दिख सकता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि पहली लहरके मुकाबले दूसरी लहरका प्रभाव सीमित ही रहेगा। इसे अच्छा संकेत माना जा सकता है और इसे ध्यानमें रखते हुए कृषि क्षेत्रसे अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आर्थिक गतिविधियोंको समर्थन मिलनेकी उम्मीद बढ़ेगी। स्थानीय पाबन्दियोंसे पहली तिमाहीमें विकास दर गिरनेका जोखिम भी बना हुआ है। अनाजके रिकार्ड उत्पादन और मानसून सामान्य रहनेसे अर्थव्यवस्थाके लिए कृषि क्षेत्र काफी सहायक साबित होगा। रिपोर्टमें यह भी कहा गया है कि जीएसटी संग्रहमें तेज सुधारके संकेत अर्थव्यवस्थाके हितमें है। पिछले छह महीनोंमें जीएसटीका मासिक संग्रह एक लाख करोड़ रुपयेसे अधिक है। अप्रैलमें १.४१ लाख करोड़के राजस्वने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। अर्थव्यवस्थाको गति देनेमें ग्रामीण क्षेत्रका विशेष योगदान रहता है लेकिन कोरोना महामारीसे गरीबोंकी आबादी भी बढ़ गयी है। एक प्रतिष्ठिïत निजी विश्वविद्यालयकी अध्ययन रिपोर्टमें कहा गया है कि पहली लहर और लाकडाउनके बाद पिछले एक सालमें २३ करोड़ भारतीय गरीब हो गये हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों प्रभावित हुए हैं। २३ करोड़ ऐसे लोग हैं जो राष्टï्रीय न्यूनतम मजदूरी सीमासे नीचे आ गये हैं और इन्हें अनूप सत्पथी कमेटीकी ३७५ रुपये प्रतिदिन मजदूरी नहीं मिलती है। गरीब परिवारोंपर कहरका दुष्प्रभाव अधिक पड़ा है। डेढ़ करोड़से अधिक श्रमिक ऐसे हैं, जिन्हें पिछले सालके अन्ततक कोई काम नहीं मिला है। महिलाओंके रोजगारपर अधिक असर पड़ा है। यह चुनौतीपूर्ण स्थिति है, जिसका सीधा सम्बन्ध अर्थव्यवस्थासे है। इस मुद्देपर सरकारको विशेष रणनीति बनानेकी जरूरत है। रोजगारके अवसर जबतक नहीं बढ़ेंगे तबतक बाजारमें भी मांग नहीं बढ़ेगी। मांगमें कमी अर्थव्यवस्थाके लिए हितकर नहीं है। इसलिए शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रोंमें रोजगारके अवसरोंको विकसित करना अत्यन्त आवश्यक है। २३ करोड़ गरीबोंको आर्थिक दृष्टिïसे ऊपर लानेकी जरूरत है। दूसरी लहरमें नये गरीबोंकी संख्या और भी बढ़ सकती है। ऐसे लोगोंको स्वरोजगारके लिए भी सहयोग और समर्थन देनेकी जरूरत है। इससे गरीबोंकी स्थिति सुधरेगी और अर्थव्यवस्थाको भी गति मिलेगी।

मनरेगा भी प्रभावित

कोरोना संक्रमणकी जानलेवा दूसरी लहरका दुष्प्रभाव अब ग्रामीणांचलोंमें भी दिखने लगा है। कोरोनाको लेकर शहरोंमें जो खौफका माहौल है उससे तनिक भी कम भयावह स्थिति गांवोंमें नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रोंमें जांच और इलाजकी समुचित व्यवस्था न होनेसे हालात और भी खराब है। दिनों-दिन बढ़ती संक्रमितोंकी संख्या और मौतके आंकड़ोंसे ग्रामीण दहशतमें हैं। जानकी चिन्तामें रोजी-रोटीकी परवाह न करते हुए ग्रामीणोंने खुदको घरोंमें कैद कर लिया है। पिछले एक पखवारेसे मजदूरोंके कामपर नहीं आनेसे मनरेगाके तहत हो रहे काम बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और अब वे एक-एक कर बंद होनेके कगारपर पहुंच चुके हैं। मजदूरोंकी उपस्थिति पूर्वकी अपेक्षा घटकर मात्र २० से २५ प्रतिशततक सिमट जाना कार्यकी प्रगतिकी धीमी गतिको बयां करती है। पहले जहां मनरेगाके तहत नौ लाख मजदूर काम कर रहे थे वहीं अब इनकी संख्या घटकर चार लाखसे भी कम हो गयी है। लाकडाउन और कारोबारी गतिविधियां प्रभावित होनेसे दूसरे राज्योंमें काम करनेवाले बड़ी संख्यामें प्रवासी मजदूरोंके अपने गांव लौट आनेसे माना जा रहा था कि पिछले सालकी तरह गांवोंमें मनरेगाके तहत हो रहे काममें वृद्धि होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जहां मजदूरोंकी संख्या बढऩेका अनुमान लगाया गया था, वहीं इसके विपरीत जो मजदूर कामपर लगे थे वह भी काम छोड़ रहे हैं। यह गम्भीर चिन्ताका विषय है। इससे परियोजनाओंके पूरा होनेमें विलम्ब तो होगा ही साथ ही धन भी अधिक खर्च होगा। कमोबेश यही स्थिति अन्य राज्योंकी भी है। उत्तर प्रदेश सरकारको मौजूदा स्थितिपर गम्भीरतापूर्वक मंथन करना चाहिए जिससे विकासपरक गतिविधियां चलती रहें। यह सभी राज्योंकी जिम्मेदारी बनती है कि वे आर्थिक गतिविधियां प्रभावित न होने दें और गांवोंमें कामके अवसर बने रहें। यह समय भयभीत होनेका नहीं, बल्कि एकजुट होकर परिस्थितिका मुकाबला करनेका है। इसके लिए सरकार और जिला प्रशासन ही नहीं, हर नागरिकका सहयोग अपेक्षित है।