सम्पादकीय

टीकोंकी बर्बादी


कोरोना महामारीके खिलाफ जंगमें टीकाकरणको मजबूत हथियारके रूपमें इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके लिए विश्वका सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलानेका श्रेय भारतको जाता है। इस सन्दर्भमें भारतने अमेरिका और चीनको पीछे छोड़कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है लेकिन देशकी बड़ी आबादीको देखते हुए टीकाकरणके अभियानमें कुछ बाधाएं और चुनौतियां भी सामने आयी हैं। टीकेकी कमी और उसकी बर्बादी टीकाकरण अभियानमें सबसे बड़ी बाधा है। इससे टीकाकरणकी गतिपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने गुरुवारको एक बार फिर देशके विभिन्न क्षेत्रोंके जिलाधिकारियोंसे वीडियो कान्फ्रेंसिंगके माध्यमसे वार्ताके दौरान टीकेकी बर्बादीपर गम्भीर चिन्ता जतायी और कहा कि इसे रोकना बेहद जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि एक खुराक टीका बर्बाद होनेका मतलब है एक जीवनको जरूरी सुरक्षा कवच नहीं दे पाना, इसलिए टीकेकी बर्बादीको रोकना बहुत ही जरूरी है। प्रधान मंत्रीने जिलाधिकारियोंसे कहा कि आप जिलोंमें सबसे बड़े योद्धा हैं। हमें गांव-गांव यही सन्देश पहुंचाना है कि हमें अपने गांवको कोरोनासे मुक्त रखना है। वस्तुत: देशमें कोरोना टीकोंकी कमी बनी हुई है जिसके कारण लोग टीका लगवानेसे वंचित हो जा रहे हैं और इसके लिए उन्हें लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। टीकेका उत्पादन बढ़ाया जा रहा है लेकिन टीकोंकी बर्बादी रोकना भी आवश्यक है। भारतमें ११ अप्रैलतक ४४.७८ लाख टीके बर्बाद हुए हैं। इनमें सर्वाधिक बर्बादी तमिलनाडुमें हुई, जहां सौमें १२ टीके बर्बाद हुए। इसी प्रकार हरियाणामें सौमेंसे नौ, पंजाब, मणिपुर, तेलंगानामें सौमें आठ खुराक टीके बर्बाद हुए जबकि केरल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, गोवा, दमन, दीव, अण्डमान, निकोबार और लक्षद्वीपमें टीकोंकी बिल्कुल ही बर्बादी नहीं हुई। टीकोंकी बर्बादीमें महाराष्टï्र, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं रहे। टीकोंकी बर्बादी रोकनेके लिए हमें केरल सहित उन राज्योंसे सबक लेनी होगी जहां टीकोंकी बर्बादी बिल्कुल नहीं हुई। इसे रोककर हम अन्य लागोंको सुरक्षा कवच प्रदान कर सकते हैं। यह भी सत्य है कि कोरोना संक्रमणकी रफ्तारमें काफी कमी आयी है लेकिन मृतकोंकी संख्या बढ़ी है। दूसरी लहर कमजोर पड़ गयी है लेकिन तीसरी लहरकी चुनौती भी सामने है। आईआईटी हैदराबादके वैज्ञानिक एम. विद्यासागरका मानना है कि गणित माडलके अनुसार आगामी छहसे आठ माहमें तीसरी लहर आनेकी आशंका है। इसलिए टीकाकरणकी गति तेज करनी होगी तभी तीसरी लहरसे मुकाबला किया जा सकता है।

किसानोंको राहत

कोरोना महासंकटके बीच केन्द्र सरकारने उर्वरकपर दी जानेवाली सब्सिडीमें वृद्धि कर किसानोंको बड़ी राहत देनेका काम किया है। सरकारने किसानोंके हितमें बड़ा फैसला करते हुए डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) पर प्रति बोरी सब्सिडी पांच सौसे बढ़ाकर १२ सौ रुपये कर दिया है। इससे अन्तरराष्टï्रीय बाजारमें कच्चे मालकी कीमतोंमें ६० में ७० प्रतिशततक की गयी वृद्धिका असर किसानोंपर नहीं पड़ेगा। अन्तरराष्टï्रीय कीमतोंमें वृद्धिके बावजूद किसानोंको पुरानी दरोंपर खाद मिलेगी। केन्द्र सरकार हर साल रासायनिक खादोंपर सब्सिडीपर ८० हजार करोड़ रुपये खर्च करती है। डीएपीमें सब्सिडी बढ़ानेसे सरकारको १४,७७५ करोड़का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी अध्यक्षतामें हुई बैठकमें डीएपी खादके लिए सब्सिडी १४० प्रतिशत बढ़ानेका ऐतिहासिक निर्णय किया गया है। यह पहला मौका है जब प्रति बोरी सब्सिडीकी राशि इतनी बढ़ायी गयी है। कोरोना संकट कालमें किसानोंने जो रेकार्ड उत्पादन किया है उसके ईनामके रूपमें इसे देखा जाना गलत नहीं होगा। सरकारको यह कदम किसानोंको रेकार्ड उत्पादन करनेके लिए प्रोत्साहित तो करेगा ही साथ ही अनाजके निर्यातकी सम्भावनाओंको भी प्रबल बनायेगा। कोरोना महासंकटके कारण अर्थव्यवस्थामें आयी मंदीको भी दूर करनेमें यह सहायक होगा। यह भी अच्छी बात है कि इस बार मानसून सामान्य रहेगा जिससे सूखेकी आशंका समाप्त हो जायगी जिसका लाभ कृषिको मिलेगा। कोरोनाके इस चुनौतीपूर्ण कालमें भी डीएपी खादपर किया गया निर्णय किसानोंको बड़ी राहत देनेवाला है। लागत मूल्य न बढऩेसे किसानोंके साथ उपभोक्ता भी लाभान्वित होंगे। सरकारका यह राहतकारी निर्णय है। नि:सन्देह इसका लाभ किसानोंको मिलेगा, लेकिन क्षेत्रीय स्तरपर जो किसानोंकी समस्याएं हैं, उन्हें भी दूर करनेके लिए सरकारको कदम उठाना चाहिए जिससे वह अधिक उत्पादन कर सकें। खादके साथ उन्नत किस्मके बीज भी सस्ते दरपर उपलब्घ कराना होगा तभी उनकी लागत मूल्यमें कमी आयेगी और उसका लाभ उपभोक्ताओंतक पहुंचेगा।