सम्पादकीय

एक-दूसरेके पूरक


जग्गी वासुदेव
आदि शंकराचार्यकी मंडन मिश्रके साथ बहस हो गयी और शंकराचार्य जीत गये। फिर मण्डन मिश्रकी पत्नी बीचमें आ गयी और बोली आपने मेरे पतिको हरा दिया, परन्तु वह अपने आपमें पूरे नहीं हैं। हम दोनों एक-दूसरेके पूरक हैं। इसलिए आपको मुझसे भी बहस करनी होगी। मण्डन मिश्रकी पत्नीने देखा कि वह हार रही है तो उसने जीवनकी व्यावपारिकतापर प्रश्न पूछने शुरू किये। उन्होंने पूछां आप अपने अनुभवसे क्या जानते हैं। परन्तु शंकराचार्य ब्रह्मïचारी थे। वह समझ गये कि यह उन्हें हरानेकी तरकीब है तो वह बोले, मुझे एक महीनेका समय चाहिए। हम एक महीनेके बाद इस बहसको यहींसे आगे बढ़ायंगे। फिर वह एक गुफामें गये और अपने शिष्योंसे बोले, चाहे जो हो जाय, किसीको भी इस गुफामें आने मत देना, क्योंकि मैं अपना शरीर छोड़कर कुछ समयके लिए अन्य संभावनाओंकी तलाशपर जा रहा हूं। जीवन ऊर्जा या प्राण पांच आयामोंमें व्यक्त होता है। प्राण वायु, समान, अपान, उदान और व्यान। प्राणकी इन पांच अभिव्यक्तियोंके अलग-अलग कार्य होते हैं। प्राण वायुका काम सांसोंको चलाना, विचारोंको चलाना और स्पर्शका अहसास कराना होता है। कोई जीवित है या मर गया, ये कैसे देखा जाता है। यदि उसकी सांसें रुक गयी हैं तो आप कहते हैं, वह मर गया। सांसें इसलिए रुक जाती हैं, क्योंकि प्राण वायु बाहर आने लगती है। डेढ़ घंटेतकके समयमें प्राण वायु पूरी तरहसे बाहर आ जाती है। इसीलिए हमारी परंपरामें यह तय किया गया था कि सांसोंके रुकनेके बाद, कमसे कम डेढ़ घंटेके बाद ही शवको जलाना चाहिए क्योंकि वह कई अन्य तरीकोंसे अब भी जीवित है। हम डेढ़ घंटेतक इंतजार करते हैं, ताकि उसकी विचार प्रक्रिया, सांसें और स्पर्श संवेदनाएं चली जायं, ताकि उसे जलन महसूस न हो। प्राणका बचा हुआ हिस्सा वहां तब भी मौजूद रहेगा। प्राणका आखिरी आयाम, व्यान, बारहसे चौदह दिनोंतक बना रह सकता है। शरीरका संरक्षण और संपूर्णता मुख्य रूपसे व्यान प्राणकी वजहसे होती है तो जब शंकराचार्यने अपना शरीर छोड़ा, उन्होंने अपना व्यान प्राण शरीरमें ही रहने दिया, ताकि शरीर पोषित होता रहे। फिर ऐसा हुआ कि एक राजाको एक कोबराने काट लिया और वह मर गये। जब शरीरमें कोबराका विष घुस जाता है तो खून गाढ़ा होना शुरू हो जाता है, जिससे रक्तसंचार मुश्किल हो जाता है, जिसकी वजहसे सांस लेनेमें कठिनाई होती है। क्योंकि रक्तसंचारके मुश्किल हो जानेपर, सांसें लेनेमें परेशानी होती है। आपकी सांसें, प्राण वायुके बाहर जानेसे काफी पहले ही रुक जायंगी। कई तरीकोंसे, यह उस शरीरमें प्रवेश पानेके लिए आदर्श स्थिति है। आम तौरपर, आपके पास सिर्फ डेढ़ घंटेका समय होता है। परन्तु जब किसीके शरीरमें कोबराका विष हो तो आपके पास साढ़े चार घंटेका समय होता है। तो शंकराचार्यको यह अवसर मिला और उन्होंने बहुत आसानीसे उनके शरीरमें प्रवेश कर लिया और वह उस प्रक्रियासे गुजरे, ताकि वह अनुभवके आधारपर उन प्रश्नोंके उत्तर दे सकें।