योगेश कुमार गोयल
मुख्य चुनाव आयुक्त पदसे सुनील अरोड़ाके सेवानिवृत्त होनेके बाद ६३ वर्षीय चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा देशके नये मुख्य चुनाव आयुक्त बन गये हैं। केन्द्र सरकार द्वारा निर्वाचन आयोगके सबसे बड़े पदके लिए उनके नामको स्वीकृति दी गयी थी, जिसके बाद केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचनाके अनुसार महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा उन्हें भारतका मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। अभीतककी परम्पराके अनुसार देशके तीन निर्वाचन आयुक्तोंमेंसे सबसे वरिष्ठ आयुक्तको ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जाता है और उसी आधारपर चंद्राकी नियुक्ति इस पदपर हुई है। देशके २४वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) का पदभार संभालते हुए सुशील चंद्राने सुनील अरोड़ाका स्थान लिया लेकिन इसीके साथ उनके लिए चुनौतियोंका दौर शुरू हो गया है। बतौर मुख्य चुनाव आयुक्त वर्तमान समयमें उनकी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ गयी है क्योंकि देशमें पांच विधानसभा चुनावोंके मौजूदा दौरमें आये दिन चुनाव आयोगकी भूमिकापर गंभीर सवालिया निशान लगते रहे हैं। चंद्रा १४ मई २०२२ तक इस पद आसीन रहेंगे लेकिन यह तय है कि उनका करीब एक वर्षका यह कार्यकाल चुनौतियोंसे भरा रहेगा। निर्वाचन आयुक्तसे मुख्य चुनाव आयुक्त बने चंद्राकी इस पदपर नियुक्ति और सुनील अरोड़ाकी सेवानिवृत्तिके बाद चुनाव आयोगमें अब केवल दो ही सदस्य रह गये हैं, सुशील चंद्रा तथा चुनाव आयुक्त राजीव कुमार। भारतीय राजस्व सेवा (आयकर कैडर) के १९८० बैचके अधिकारी रहे चंद्रा देशके दूसरे ऐसे आईआरएस अधिकारी हैं, जो भारतीय निर्वाचन आयोगके इस सर्वोच्च पदपर आसीन हुए हैं। उनसे पहले आईआरएस अधिकारी टीएस कृष्णमूर्ति भारतके पहले ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे। तबतक यह पद प्राय: आईएएस अधिकारियोंके पास ही रहा था। कृष्णमूर्तिने फरवरी २००४ से मई २००५ तक चुनाव आयोगके शीर्ष पदपर अहम जिम्मेदारी निभायी थी।
उत्तर प्रदेशमें जन्मे सुशील चंद्रा आईआईटी रूड़कीसे बी-टेक और डीएवी देहरादूनसे एलएलबी करनेके बाद भारतीय इंजीनियिरिंग सेवामें आये और १९८० में भारतीय राजस्व सेवामें चयनित हुए। आईआरएस अधिकारी रहते वह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली सहित कई राज्योंमें विभिन्न महत्वपूर्ण पदोंपर तैनात रहे। इंटरनेशनल टैक्सेशनका अच्छा जानकार माने जाते रहे सुशील चंद्रा गुजरातमें महानिदेशक (इन्वेस्टिगेशन) तथा महाराष्ट्रमें डायरेक्टर पदपर तैनात रहे। करीब ३९ वर्षोंतक आयकर विभागमें विभिन्न पदोंपर रहे चंद्रा १ नवम्बर २०१६ को करकी सर्वोच्च नियामक संस्था केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन बने। अपने उस कार्यकालके दौरान उन्होंने कालेधनकी रोकथामके लिए प्रभावी कदम उठाये थे। उनके नेतृत्वमें २०१७ में सीबीडीटीने ऑपरेशन क्लीन मनी अभियान शुरू किया था। वह १८ फरवरी २०२० से परिसीमन आयोगके पदेन सदस्य भी हैं और केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीरमें प्रक्रियाओंको देख रहे हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय टैक्सेशन और इन्वेस्टिगेशनके क्षेत्रमें बड़े पैमानेपर कार्य किया है। २०१९ में लोकसभा चुनावसे पहले १४ फरवरी २०१९ को उन्हें निर्वाचन आयुक्तके पदपर नियुक्त किया गया था और यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालनेसे पहले वह सीबीडीटीके अध्यक्ष थे। चुनाव आयुक्त बननेके बाद उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा तथा पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासाके साथ मिलकर सफलतापूर्वक लोकसभा चुनाव सम्पन्न कराये थे।
हालांकि पिछले दो सालसे चंद्रा बतौर चुनाव आयुक्त भारतीय निर्वाचन आयोगका महत्वपूर्ण हिस्सा हैं लेकिन इस समय पांच राज्योंमें हो रहे चुनावोंके दौरान जिस प्रकार चुनाव आयोगकी निष्पक्षता और कार्यप्रणालीपर कदम-कदमपर सवाल उठते रहे हैं, ऐसे माहौलमें निर्वाचन आयोगके मुखियाकी कुर्सीपर आसीन होनेके बाद आयोगकी निष्पक्षता बहाली उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दरअसल निर्वाचन आयोगको भले ही एक स्वतंत्र संस्था माना जाता रहा है लेकिन हकीकत यही है कि १९९० के दशकमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषनके कार्यकालको अपवादस्वरूप छोड़ दिया जाय तो इस स्वायत्त संस्थापर सदैव आरोप लगते रहे हैं कि यह केन्द्र सरकारके दबावमें काम करती है। वर्षोंसे देशकी जनता टीएन शेषन जैसे ही चुनाव आयुक्तका इन्तजार कर रही है, जो अपनी निष्पक्षता, ईमानदारी और कड़ाईको लेकर सत्तापक्ष सहित तमाम राजनीतिक दलोंके गलेकी हड्डी बन गये थे और चुनाव आयोगकी गरिमाको चार चांद लगाये थे। १२ दिसम्बर १९९० से ११ दिसम्बर १९९६ तक के शेषनके कार्यकालको चुनाव आयोगके इतिहासमें एक मिसालके तौरपर याद किया जाता है। दरअसल उन्होंने अपने कार्यकालमें निष्पक्ष और स्वच्छ चुनाव सम्पन्न करानेके लिए तमाम नियमोंका कड़ाईसे पालन कराया था, जिसे लेकर तत्कालीन केन्द्र सरकार और दूसरी पार्टियोंके कई नेताओंके साथ उनके कई विवाद भी हुए थे लेकिन उन्होंने राजनीतिक दबावोंके समक्ष झुकनेके बजाय चुनाव आयोगकी ऐसी गरिमामयी छवि बना दी थी, जिसकी उस समयतक केवल कल्पना ही की जाती थी। मौजूदा समयमें चुनाव आयोगकी प्रतिष्ठा बनाये रखनेके लिए देशको शेषन जैसे ही ऐसे कर्तव्यपरायण सख्त मिजाज चुनाव आयुक्तोंकी जरूरत है, जो किसी भी प्रकारके राजनीतिक दबावके समक्ष घुटने टेकते प्रतीत न हों और जनताके समक्ष अपने हर फैसलोंसे ऐसी मिसाल पेश करें, जिससे उनके किसी भी फैसलेपर किसी भी तरहकी अंगुली उठनेकी गुंजाइश ही न रहे और देशका प्रत्येक नागरिक आयोगके हर निर्णयपर आंख मूंदकर भरोसा जता सके। फिलहाल चल रहे पांच राज्योंके विधानसभा चुनावोंकी प्रक्रिया पूरी होनेके बाद सुनील चंद्राकी असली अग्निपरीक्षा अगले साल देशके सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा तथा मणिपुरमें होनेवाले विधानसभा चुनावोंको बेहतर ढंगसे बिना किसी विवादके सम्पन्न करानेकी होगी। देखना होगा, सुशील चंद्रा चुनाव आयोगकी छवि सुधारनेमें सफल होंगे या अपना छोटा-सा कार्यकाल पूरा कर पूर्ववर्ती आयुक्तोंकी भांति खामोशीके साथ विदा हो जायंगे।