सम्पादकीय

कृषि उपजकी बर्बादी


कृषिप्रधान देश भारतमें प्रति वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये मूल्यके कृषि उपजका नष्टï होना न केवल गम्भीर चिन्ताका विषय है, बल्कि यह भण्डारण प्रबन्धनकी विफलताका भी प्रमाण है। अनाजोंके नष्टï होनेका सिलसिला लम्बे समयसे जारी है। यह क्रम कबतक चलेगा, यह भी अनिश्चित है। यह भारतीय कृषि अर्थव्यवस्थाके लिए अशुभ संकेत है, क्योंकि कृषि ही हमारे देशकी अर्थव्यवस्थाका मूल आधार है। केन्द्रीय उपभोक्ता मामले और खाद्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबेने लोकसभामें बताया कि इस क्षतिको रोकना सरकारकी उच्च प्राथमिकता है। फसल कटनेके बाद कृषि उपजको बाजारतक पहुंचानेके तंत्रमें सुधारके लिए सरकारने कई योजनाएं बनायी हैं और उसे लागू भी किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि लुधियाना स्थित इंस्टीट्यूट आफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंगने वर्ष २०१५ में एक अध्ययन किया था, जिसके अनुसार राष्टï्रीय स्तरपर पोस्ट हार्वेस्टके दौरान लगभग एक लाख करोड़ रुपये मूल्यके खाद्यान्न नष्टï हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त लगभग १७ हजार करोड़ रुपये मूल्यका फल और १५ हजार करोड़ रुपये मूल्यकी सब्जियां सड़ जाती हैं। इस क्षतिको रोकनेके लिए आधुनिक टेक्रालाजीवाली मशीनोंका उपयोग प्रारम्भ किया गया है। देशमें कृषि और किसानोंकी बेहतरीके लिए सरकारने वैसे तो अनेक योजनाएं शुरू की हैं और इसका लाभ भी किसानोंको एक सीमातक  मिल रहा है। लेकिन इसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता। जब प्रति वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये मूल्यके कृषि उपज नष्टï हो रहे हैं तब हम किसानोंकी बेहतरी और उनकी आमदनी दोगुनी करनेकी बातको अमलीजामा कैसे पहना सकते हैं। कृषि उत्पादोंके भण्डारणकी पर्याप्त व्यवस्था आवश्यक है। देशमें कृषि पैदावारकी रिकार्ड वृद्धि हो रही है, यह अच्छी बात है लेकिन कृषि उपजका खेतसे खलिहानतक पहुंचनेकी सुरक्षित व्यवस्था जबतक  नहीं होगी तबतक किसानोंका आर्थिक लाभ नहीं होनेवाला है। कृषि उपजके नष्टï होनेसे किसानोंको प्रति वर्ष आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। इसके चलते किसानोंकी दिक्कतें बढऩा स्वाभाविक है। भण्डारणकी समुचित व्यवस्था नहीं होनेसे बड़ी मात्रामें अनाज वर्षाके मौसममें खुलेमें सड़ कर नष्टï हो जाते हैं। इसलिए देशमें कृषि उत्पादनमें वृद्धिके प्रयासोंके साथ ही कृषि उपजकी समुचित सुरक्षा भी बहुत जरूरी है। इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारोंको मिलकर ठोस कार्य करना होगा, जिससे कि अनाज, फल और सब्जियोंकी बर्बादी रोकी  जा सके।

विकृत मानसिकता

इक्कीसवीं सदीमें भी रूढि़वादिताकी विकृत मानसिकता समाजके लिए अभिशाप बनी हुई है। बेटी और बेटेमें भेदभावका नजरिया तो आम है लेकिन सबसे ज्यादा पीड़ा तब होती है जब स्वजन ही बेटे और बेटियोंमें भेदभाव कर उसकी क्षमताका ह्रïास करते हैं। आज भी बेटा और बेटीके पहनावे और पढ़ाई-लिखाईपर दो नजरिया रखा जाता है। देवरियाके मण्डुआडीह थाना क्षेत्रके सवरेजी खर्गमें हुई घटना इसका जीताजागता उदाहरण है। किशोरीकी सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गयी, क्योंकि उसने जींस और टी-शर्ट पहन लिया था। यह जघन्य और विकृत मानसिकताका प्रतीक है। यह कोई पहली और नयी घटना नहीं है। उत्तर प्रदेशके अलीगढ़में भी बेटीके जींस पहननेसे नाराज पड़ोसियोंने उसकी मांसे मारपीट की, जिससे उसकी मौत हो गयी। यह घटना उस समय हुई जब कमलेश नामक महिलाने अपनी बेटी गुंजनके पहनावेको लेकर अपने पड़ोसीके तानोंका विरोध किया जिससे पड़ोसियोंने उसकी जमकर पिटाई की जिससे उसकी मौत हो गयी। हालांकि इस मामलेमें पड़ोसी परिवारके तीन सदस्योंको गिरफ्तार कर लिया गया है। पंजाबके लुधियानामें मजदूरी करनेवाले अमरनाथ पासवानका परिवार गांवमें ही रहता है। गत सोमवारकी रात जींस पहननेपर अमरनाथकी बेटी नेहाकी अपने ही दादासे बहस हो गयी। इस दौरान चाचा और परिवारके अन्य सदस्योंने नेहाकी बेरहमीसे पिटाई कर दी। उसकी बड़ी बहनने इसका विरोध किया लेकिन उसका कोई असर उनपर नहीं हुआ और उन्होंने बड़ी बहनको भी पीट दिया। पिटाईसे नेहाकी मौत होनेके बाद उसके रिश्तेदारोंने उसके शवको पटनवा पुलसे नीचे फेंक दिया। यह तो संयोग ही था कि शव रेलिंगपर लटक गया और पूरा मामला खुल गया और शवकी शिनाख्त होनेके बाद आरोपियोंकी गिरफ्तारीमें पुलिस जहां जुट गयी, वहीं आरोपी फरार हो गये हैं। यह घटना समाजको शर्मसार और कलंकित करनेवाली है।