सम्पादकीय

कोरोना कालमें शिक्षा व्यवस्था


राजेश माहेश्वरी

एक वर्षमें देशवासियोंने कोरोनासे बचनेकी कला तो सीखी है और स्वदेशी वैक्सीनसे देशभरमें टीकाकरण अभियान जारी है। उद्योग जगत, सामाजिक आर्थिक क्षेत्रके साथ एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र इस वायरससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है वह है शिक्षाका। इसमें दो राय नहीं कि सरकार, शिक्षण संस्थानों और तमाम दूसरी संस्थाओंने कोरोना संकटके बीच भी शिक्षा व्यवस्थाको पटरीपर लानेके लिए बड़ी मशक्कत की है। कोरोनाकी नयी लहरके दस्तक देते ही विभिन्न राज्योंने शिक्षण संस्थानोंको बंद करनेके निर्देश दिये हैं। ऐसेमें छात्रों और अभिभावकोंके लिए नये सिरेसे परेशानी शुरू हो गयी है। भारतमें स्कूलमें पढऩेवाले बच्चोंकी तादाद ३३ करोड़ है। भारतकी कुल जनसंख्याका १९.२९ फीसदी हिस्सा ६-१४ की उम्रके बीचके बच्चे हैं जो शिक्षाके अधिकारके तहत कानूनी रूपसे शिक्षाके हकदार हैं। लेकिन कोरोनाकी नयी लहरसे माहौलमें चिंता घुल गयी है। अभिभावक भी बच्चोंको स्कूल भेजना तो चाहते हैं, लेकिन बदले हालातमें ऐसा संभव नहीं दिख रहा। वहीं कई परिवारोंके लिए स्कूल सिर्फ पढ़़ाई करनेकी जगह नहीं हैं, वे उससे कुछ ज्यादा हैं। कई सरकारी स्कूल बच्चोंको खाना खिलाते हैं और उनकी सुरक्षा समेत उनतक सरकारी सुविधाओंके पहुंचनेका माध्यम हैं। स्कूल बंद होनेके लगभग ९.१२ करोड़ भारतीय बच्चोंको मिड-डेकी सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। इस महामारीके कारण पूरी दुनियामें ७३ प्रतिशत युवाओंकी पढ़ाईमें बाधा आयी है। कोरोना वायरस फैलनेके बाद डिजिटल साधनोंतक पहुंचमें बड़ी असमानता भारतमें शिक्षाके लिए बड़ी चुनौती बनी है। प्राथमिक, माध्यमिक या उच्च शिक्षा, छात्रोंका पठन-पाठन बुरी तरह प्रभावित है। विभिन्न शिक्षण संस्थान ऑनलाइन ही छात्रोंको नोट्स, असाइनमेंट आदि उपलब्ध करा रहे हैं। साथ ही अभिवावकोंसे भी बात की जा रही है जिससे छात्रोंको किसी प्रकारकी कोई असुविधा न हो। कुछ अन्य सरकारी यूनिवर्सिटीजने भी ऑनलाइन पढ़ाईके लिए जरूरी इन्तजाम किये हैं। फिर भी छोटे शहरोंमें स्थित संस्थानोंका बुरा हाल है। चुनिंदा शहरी स्कूलोंके ऑनलाइन क्लासेज कराने और इनकी पहुंच सीमित होनेके चलते शिक्षाविदोंको हर तरहके आर्थिक-सामाजिक पृष्ठïभूमिवाले बच्चोंके लिए पढ़ाईके इनोवेटिव तरीकोंको ढूंढऩेकी चुनौती पैदा हो गयी है।

भारत जैसे युवा देश जिसमें छात्रोंकी संख्या इतनी अधिक हो यह स्थिति चिंताजनक हैं। उच्च शिक्षापर इसके प्रभावको लगभग हर हिस्सेमें देखा जा सकता है। कोरोना कालमें ऑनलाइन शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके सहारे बच्चोंकी पढ़ाई सुचारु रही। कुछ बड़े संस्थान जैसे आईआईटी, आईआईएम, प्रतिष्ठिïत शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयोंने ऑनलाइन शिक्षा प्रणालीका इस्तेमाल कर अपने छात्रोंको सहयोग करनेकी पूरी कोशिश की, परन्तु ऐसे संस्थान गिनतीभरके ही हैं। शिक्षकोंने इस प्रणालीको सफल बनानेमें बहुत मेहनत की। बच्चोंके लिए वीडियो तैयार करना उसे ग्रुपपर शेयर करना आदि बहुतसे कार्य किये। अब शैक्षणिक संस्थानोंके आगे जो चुनौती है उसमें ऑनलाइन स्वाभाविक विकल्प है। ऐसे समयमें विद्यार्थियोंसे जुडऩा समयकी जरूरत है, लेकिन इस व्यवस्थाको कक्षाओंमें आमने-सामने दी जानेवाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षाका विकल्प बताना भारतके भविष्यके लिए अन्यायपूर्ण है।

एक और महत्वपूर्ण विषय है कि जो छात्र पहले खुलकर रहते थे, विभिन्न गतिविधियों जैसे खेल आदि मनोरंजनमें अपने सहपाठियोंके साथ खुलकर भाग लेते थे, आज वह अपने घरोंमें कैद है, सामाजिक दूरी बना रहे हैं। वहीं टीवी लैपटॉप, मोबाइलका अधिक उपयोग भी उनकी मानसिक स्थितिपर बुरा प्रभाव डाल रहा है। मानसिक अवसादकी ऐसी अवस्थासे छात्रोंको बचानेके लिए मनोवैज्ञानिकोंको आगे आना चाहिए एवं उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। छोटे बच्चोंको कंप्यूटर और लैपटॉपके सामने देरतक बैठनेमें बहुत दिक्कत हो रही है। बच्चे बोरियतसे भर जाते हैं। विशेषज्ञोंके मुताबिक कोरोना संक्रमणका प्रभाव कम होते ही स्कूलोंमें बच्चोंकी पढ़ाई करायी जाय क्योंकि ज्यादा दिनतक ऑनलाइन शिक्षासे मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवनपर भी व्यापक असर पड़ेगा। ज्यादा दिनतक छात्र एवं शिक्षककी दूरीसे जो गुरु-शिष्यके मधुर संबंध होते हैं वह प्रभावित होंगे। पिछले कुछ महीनोंमें शिक्षण संस्थान शर्तोंके साथ खुले भी थे, लेकिन कोरोनाकी नयी लहरके चलते फिर एक बार शिक्षण संस्थानोंके दरवाजे छात्रोंके लिए बंद होते दिख रहे हैं।

भारत सरकारके प्रोग्राम स्वयंको भी रौशनी मिली। यहां कक्षा नौवींसे लेकर स्नातकोत्तरतक पढऩेके लिए सामग्री है। कोई भी मुफ्तमें इसका लाभ उठा सकता है। एमएचआरडीने ऐसे १९ अलग-अलग मंच तैयार किये हैं जहां सीखा-पढ़ा जा सकता है। यह अच्छी कोशिश है। परन्तु हमारे देशमें डिजिटल लर्निंगकी आधारिक संरचनाके स्तरको सुधारनेके लिए बहुत काम करना होगा। इस ऑनलाइन पढ़ाईसे उन अभिभावकोंपर असर पड़ा जिनके पास संसाधनोंकी कमी है, जो उच्च तकनीकका मोबाइल नहीं खरीद पा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र जहां बिजली एवं नेटवर्ककी कमी कमी रही वहांके बच्चोंको पढऩेमें परेशानीका सामना करना पड़ा। चूंकि देशमें कोरोना नये सिरेसे सिर उठाने लगा है, ऐसेमें छात्र और अभिभावक भविष्यको चिंतित दिखाई देते हैं। आज जरूरत है कि सरकार, संस्थान एवं स्वयं छात्रोंको मिल-जुलकर सभी छात्रोंकी समस्याओंको दूर करनेके लिए एकजुट प्रयास करना होगा, परीक्षाओंका विकल्प तलाशने होंगे, ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स, असाइनमेंट्स अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं। इंडस्ट्रीजको आगे आना चाहिए एवं छात्रोंको प्लेसमेंट, प्रोजेक्ट्स इंटर्नशिप आदि देकर उन्हें तनावसे बाहर ला सकते हैं। शिक्षण संस्थान एक-न-एक दिन दुबारासे नार्मल रूटीनमें आ ही जायंगे। बच्चोंका सीखना-पढऩा वगैरह जो भी है, सब शुरू हो जायगा। तबतक परेशान न हों। घबराहटमें अक्सर हम सकारात्मक दृष्टिï खो देते हैं और सबसे बुरी स्थितिपर सारा ध्यान केन्द्रित हो जाता है। फिर हम मूर्खतापूर्ण कदम उठा लेते हैं। कई बार यह विनाशकारी भी हो सकता है। वहीं शैक्षिक संस्थानोंको यूरोप, दक्षिण कोरिया और चीनके अनुभवोंसे सीखना चाहिए। सबकी समझदारी और सर्तकतासे ही कोरोनापर नियंत्रण हो पायगा।