सम्पादकीय

वर्षा जल संचयनकी आवश्यकता


 डा. अम्बुज

विश्व दो-तिहाई जलके बावजूद भी भयंकर जल संकटसे जूझ रहा है, जबकि ‘पृथिव्याम्ï त्रीनि रत्नानि जल मन्नाम्ï सुभाषितम्ïÓ का उल्लेख सदियों पहले शास्त्रों द्वारा किया गया जिसके अनुसार जलको पृथ्वीके त्रिरत्नोंमेंसे एक माना गया है। जल पंचतत्वोंमें एक है जो जीव निर्माण एवं जीवनमें सहायक है। जलके बिना जीवनकी कल्पना ही नहीं की जा सकती, फिर भी लगातार संकुचित एवं प्रदूषित होते जा रहे हैं। जीनेके आधार तालाबों, बावडिय़ों एवं कुंओंकी संख्या कम होती जा रही है। गंगा, यमुना, वरुणा-असिसे लेकर कृष्णा-कावेरीतकको कहानी एक-सी ही है। जल प्रदूषित हो रहा है, पानीमें और जीवनमें भी जहर घुल रहा है और शासन तंत्र आंकड़ा प्रस्तुतिको ही दायित्व निर्वहन समझ रहा है, जबकि जनस्वास्थ्य और समृद्धिकी संजीवनकी जल सामरिक कुंजी है। जलकी उपलब्धता और खाद्यान्नके बीच गहरा नाता है, क्योंकि सूखेका प्रत्यक्ष असर भोजनकी उपलब्धतापर पड़ता है। पृथ्वीके दो-तिहाई हिस्सेमें जल ही जल है जिसमें कई सागर और महासागर हैं लेकिन यह जल लवणयुक्त अत्यधिक खारा होता है जिससे इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। दुनियाके जलका २.५ फीसदी ही पीने योग्य है लेकिन दो-तिहाई हिस्सा धु्रवीय हिमशिखरों और हिमनन्दके रूपमें स्थित है। भूगर्भमें जल भण्डारके रूपमें इस प्रकार दुनियामें उपलब्ध कुल जलका लगभग एक फीसदीसे कम हिस्सा यानी .६ फीसदी ही मनुष्य एवं जीव-जन्तुके लिए उपलब्ध है। चराचर जगमें जलकी सर्वव्यापकता मनुष्यको ज्ञात है। यह विज्ञान सिद्ध है मानव जल नहीं रहता लेकिन जल उसमें विद्यमान रहता है। शरीमें लगभग ७० प्रतिशत पानी होता है एवं दिमागमें ७५ फीसदी जल होता है। जल ऐसा पदार्थ है जो ठोस तरल और वाष्प तीनों रूपोंमें है, वह ब्रह्मïाण्डके तीनों घटकोंका समन्वयक है। हिमसे जल होना जलसे वायु वाष्पके रूपमें होना पुन: जल होकर मिलना प्रकृतिका चक्र ही जीवन चक्रको विश्लेषित करती है कि ऊर्जा अक्षय है सिर्फ रूप परिवर्तित करती है।

जलके महत्वको मानवने आरम्भसे ही स्वीकार किया है यही कारण है कि दुनियाकी सभ्यता-संस्कृतिका विकास नदियोंके किनारेपर हुआ। गंगाके तटीय क्षेत्रमें देशकी ४० फीसदीसे ऊपरकी आबादी है। देशकी राजधानी दिल्ली क्षेत्रका बसाव यमुनाके किनारेपर है। भारतीय मानक ब्यूरोकी रिपोर्टके अनुसार दिल्लीमें पेयजलकी गुणवत्ता काफी कम हुई है जिससे जल जनित बीमारियोंका खतरा बढ़ गया है। इसी प्रकार वाराणसीके नामका अस्तित्व वरुण-असि नदीसे है। यहां नमामि गंगेके तहत गंगा सफाई अभियान चलाये जा रहे हैं। वहीं उसकी सहायक वरुणा और असि नदियां नाला बन गयी हैं, जबकि कभी वरुणा-असि नदीका अपना मौलिक जल गुण मात्रा और आवेग होता था जो नगरके भूमिगत जलस्तरको सन्तुलित करनेके साथ ही गंगाके कटान क्षेत्रमें बांधका काम करती थी। ऐसे ही मुम्बईके बीचोबीचसे मिठी नदी प्रावाहित होती थी जिसका अब अस्तित्व समाप्त हो चुका है। गंगा सफाई अभियानका हाल यह है कि सिर्फ वाराणसीमें ११ गन्दे नालोंका निकास सीधे गंगामें गिरता है। प्रवाह क्षेत्रमें स्थान-स्थानपर गंगाजलकी गुणवत्ता जांचके लिए मानीटरिंग केन्द्र स्थापित हैं, जिसमें ८० प्रतिशतसे ऊपर मानीटरिंग केन्द्रोंपर गंगाजल तय मानकोंसे ज्यादा प्रदूषित  है। गंगाजीकी सहायक नदी वरुणा जिसका उद्ïगम स्थल प्रयागराज स्थित मैल्हन झील है। आज कूड़े-गन्दगीके लिए प्रचलित है।

वनोंको उजडऩे, नदियोंके कुप्रबन्धन पर्यावरणके प्रतिकूल सिंचाई व्यवस्था, भूमिगत जलका अतिशय उपयोग और जलस्रोतोंमें प्रदूषण आदि कारणोंसे जल संकट बढ़ रहा है। भूमिगत जलके अत्यधिक दोहनसे जलस्तर नीचे गिर रहा है। भूमिगत जल भण्डार खत्म होनेसे कुंए, तालाब, झील सूख सकते हैं, क्योंकि यह भूमिगत जलस्रोतसे जुड़े होते हैं। नदियोंके प्रदूषित होने एवं प्रवाह प्रभावित होनेसे डेल्टावाले क्षेत्रके जलमें आर्सेनिककी मात्रा अधिक पायी जा रही है। ऐसेमें आर्सेनिक जलसे कई बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। देशकी अत्यधिक आबादी दूषित जलका उपयोग करती है, जबकि शुद्ध जलकी कमीके कारण लगभग अस्सी फीसदी बीमारियां होती हैं जो हर वर्ष लाखों लोगोंके मौतका कारण बनती है। वैश्विक बाजारने पानीकी आवश्यकता एवं उसके बाजारका अध्ययन कर कृत्रिम शुद्ध जलका बाजार खड़ा कर दिया है। जबकि इस पानीके बाजारमें जितना पानी बनता है उसके कई गुणा अधिक पानी बर्बाद होता है। आज शुद्ध जलतक पहुंच ही लोगोंको अमीर और गरीबमें विभाजित कर देता है। गरीब जहां जलकी बुनियादी जरूरत पूरा करने और दैनिक उपयोगके लिए जल हासिल करनेमें संघर्ष कर रहे हैं। वहीं अमीर बड़े पैमानेपर बोतलबंद जल एवं मशीनीकरणके जलका उपयोग कर रहे हैं। साथ ही दैनिक जीवनमें जलका उपयोग भोगके रूपमें बाथटव एवं स्वीमिंग पुलके रूपमें कर रहे हैं, जबकि साधारणत: उपलब्धि ताजे जलकी गुणवत्ता, शुद्धता वास्तवमें चुनौतियोंका एक महत्वपूर्ण घटक हो गया है। इसलिए आवश्यक है कि नदियों तालाबों एवं कुंएके जलको स्वच्छ रखा जाय, क्योंकि इनका प्रदूषित जल भूमिगत जलको प्रभावित करता है। साथ ही वर्षाके पानीको स्वच्छतासे संरक्षित करनेकी आवश्यकता है तभी पानीकी कमीको रोका जा सकता है। देशकी संस्कृतिमें वर्षाके पानीके संचयनकी कला थी वह जानते थे कि केवल जीव एवं जीवन ही नहीं चलता है। जल भी चलता है रिसता है, बस जरूरत होती है, जलसे रिश्ता बनानेकी।

आज इक्कीसवीं सदीके दौरमें १२.१७ करोड़ ग्रामीण परिवार जलके नलकी पहुंचसे अभी दूर हैं। वहीं शासन तंत्रके जल जीवन मिशनमें थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन यानी टीवीआई और कार्यके सुपर विजनमें ही घोटाले सामने आने लगे हैं। कार्यके रेट एवं नियम सभीकी घोर अनदेखी हो रही है। ऐसी स्थितिमें जल जीवन मिशन कैसे पूरा होगा, सोचनेका विषय है। देशमें वर्षोंतक कई स्थानोंपर पानीकी आपूर्ति ठप रहती है। जलभोक्ता परेशानीका सामना करते रहते हैं। शासन तंत्र अपना आंकड़ा प्रस्तुत करता रहता है और जलका मंत्र आम जनको देता रहता है। जल-सम्पदाकी दृष्टिïसे भारत वर्षकी गिनती सम्पन्न देशोंमें की जाती है, क्योंकि यहां प्रति वर्ष औसतन १७० मिलीमीटर वर्षा होती है, परन्तु जलके प्रति जागरूकताकी कमी, संचयनकी कमी, नदियों एवं तालाबोंके प्रदूषित होनेके कारण एवं औद्योगिक ई-कार्ड द्वारा बेलगाम भूगर्भ जलका शोषण विकासके नामपर वनोंकी कटाई आदि प्रमुख कारक है जलकी कमीका पानीके गैरबराबरीकी समीक्षा करनेकी जरूरत है, क्योंकि सवाल मानव जीवन एवं संस्कृतिका है। इसलिए पानीके मूल्यको स्वीकारना होगा। जगत एवं जीवनमें जलकी अनिवार्यताके प्रभावी रूपको समझना होगा, नहीं तो बिन पानी सब सून ही रहेगा।