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कोरोना की पहली और दूसरी लहर में काफी बढ़ा मेडिकल कचरा,


नई दिल्ली, । कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर के लोगों ने तमाम शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दिक्कतों का सामना किया। इसने आम आदमी के जीवन को मुश्किल बना डाला। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की हालिया रिपोर्ट में सामने आया है कि कोरोना वायरस की वजह से मेडिकल कचरा काफी बढ़ा है। यह लोगों की सेहत के लिहाज से काफी खराब है। रिपोर्ट कहती है कि करीब एक तिहाई अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले संस्थान अपने मेडिकल वेस्ट का सुरक्षित तरीके से प्रबंधन नहीं कर रहे हैं। भारत में दिल्ली में सबसे अधिक मेडिकल कचरे का उत्पादन इस दौरान हुआ।

इतने खरीदे गई पीपीई

मार्च 2020 और नवंबर 2021 के बीच डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने 87 हजार टन पीपीई किट का ऑर्डर दिया था। अब इनमें से ज्यादातर सामान कचरे में तब्दील हो गए हैं। यूएन हेल्थ एजेंसी ने कहा कि अब यह मेडिकल कचरा मानव जाति और पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकता है। अब इसके निवारण के लिए बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट की जरूरत है। कई देशों ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट किट की अंधाधुंध खरीदी की। जिसके कारण अब यह मेडिकल कचरे में तब्दील हो गया है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, पीपीई किट की तुलना में गल्वज की मात्रा ज्यादा बढ़ी है।

डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य इकाई के तकनीकी अधिकारी डॉ. मार्गरेट मोंटगोमरी ने कहा कि जनता को जागरूक उपभोक्ता भी बनना चाहिए। मात्रा के लिहाज से यह बहुत अधिक वेस्ट है. मोंटगोमरी ने व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई किट) का जिक्र करते हुए कहा कि हमें लगता है लोग अत्यधिक पीपीई किट पहन रहे हैं।

मास्क, ग्लब्स, गाउन, रैपिड एंटीजन टेस्ट, पीसीआर टेस्टिंग कार्टेज, वैक्सीन वॉयल, वैक्सीन नीडल और प्लास्टिक पैकेजिंग और कंटेनर्स प्रमुख मेडिकल वेस्ट है। इनमें मास्क, ग्लब्स औऱ गाउन संक्रामक है। रैपिड एंटीजन टेस्ट के अधिकतर कंपोनेंट को रिसाइकिल किया जा सकता है।

ओलंपिक खेलों के स्विमिंग पूल का एक तिहाई हिस्सा भर जाता

इतना ही नहीं 14 करोड़ से अधिक परिक्षण किट जिनके चलते करीब 2,600 टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो सकता है जबकि 731,000 लीटर केमिकल भेजे गए थे जिनसे ओलिंपिक खेलों में प्रयोग किए जाने वाले स्विमिंग पूल के एक तिहाई हिस्से को भरा जा सकता है।

भारत में इतने मेडिकल वेस्ट का हुआ उत्पादन

भारत में कोरोना की पहली लहर के दौरान 101 टन कचरा पैदा हुआ जबकि रुटीन हेल्थ केयर सर्विस से 609 टन कचरा उत्पादित हुआ। इस तरह कुल 710 टन मेडिकल कचरा निकला। ऐसे में मेडिकल कचरे के उत्पादन में कुल 17 फीसद की बढ़ोतरी हुई।

दिल्ली में सबसे अधिक मेडिकल कचरा

दिल्ली की बात करें तो हर रोज भारत में जितना कोविड से जुड़ा मेडिकल कचरा पैदा हो रहा है उसका 11 फीसदी अकेले दिल्ली में पैदा हो रहा है। हालांकि दिल्ली में इसे जलाने के लिए केवल दो सुविधाएं मौजूद हैं। महामारी की पहली लहर में इनकी क्षमता का करीब 70 फीसदी उपयोग किया जा रहा था।