सम्पादकीय

कोरोना टीकाकरण अनिवार्य


आशीष वशिष्ठ  

कोरोना वायरसने ऐसा कहर ढाया है कि आनेवाले कई वर्षोंतक इस संतापको भुलाया नहीं जा सकेगा। देशमें स्वास्थ्य सेवाओंकी स्थिति किसीसे छिपी नहीं है। सरकारने हर देशवासीको मुफ्तमें कोरोनासे बचावके लिए टीकाकरणकी घोषणा की है। बावजूद इसके टीकाकरण वह गति नहीं पकड़ पा रहा है, जितनी उसे पकडऩी चाहिए थी। वास्तवमें टीकाकरणकी शुरुआतसे ही इसे लेकर विपक्षी दलों और तथाकथित मीडियाने जो भ्रांतियां फैलायी थी, उन भ्रांतियोंका वायरस अभीतक जीवित है। गांवों और कस्बोंमें लोग टीकाकरण करवाना ही नहीं चाहते हैं। यह स्थिति तब है, जब देशमें अब भी ७० से ८० हजार लोग प्रतिदिन कोरोना वायरससे संक्रमित हो रहे हैं। पिछले दिनों प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदीने आगामी २१ जूनसे कोरोना टीकाकरण पहलेकी तरह केंद्र सरकारके नियन्त्रणमें लेनेकी घोषणाके साथ सभी आयु वर्गके लोगोंके मुफ्त टीकाकरणका ऐलान कर दिया। नयी व्यवस्थामें ७५ फीसदी टीके केंद्र सरकार खरीदेगी और बचे हुए २५ फीसदी निजी अस्पताल खरीदकर अधिकतम १५० रुपये सेवा शुल्कके साथ लगा सकेंगे। इस प्रकार राज्यों द्वारा अपने स्तरपर टीके खरीदनेपर रोक लग गयी।

प्रधान मन्त्रीकी घोषणासे एक बात और साफ हो गयी कि टीकाकरणकी व्यवस्थामें अब केंद्र और राज्यके बीच खींचातानी नहीं रहेगी जिससे अनिश्चितता भी समाप्त होगी। आयु सीमाकी बंदिश खत्म करनेके साथ ही सभीको मुफ्त सरकार टीका लगाये जानेसे जन-असंतोष भी कम होगा। राजनीतिक दलोंके साथ ही सर्वोच्च न्यायालयने भी मुफ्त टीकाकरणके लिए सरकारको निर्देशित किया। फिलहाल प्रधान मन्त्रीने इस बारेमें सब कुछ स्पष्टï कर दिया है। वैसे भी जुलाईसे देशमें टीकेकी उपलब्धतामें अच्छी-खासी वृद्धि होनेकी सम्भावना है। देशमें उत्पादन बढऩेके साथ ही विदेशी टीकेका आयात भी बड़ी मात्रामें होने जा रहा है। अभीतक देशमें २५.४८ करोड़से ज्यादा लोगोंको टीके लग चुके हैं। प्रतिदिनका औसत १५ लाखसे कुछ ज्यादा है। जहां अब भी देशकी एक बड़ी आबादीका टीकाकरण करना बड़ी चुनौती है, वहीं लगातार टीकेकी बर्बादी सरकारके लिए चिंताका कारण है। पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने टीकोंकी बर्बादी रोकनेके लिए राज्योंसे अपील भी की थी। वास्तवमें कोरोनाके खिलाफ जंगको मजबूत करनेके लिए वैक्सीनकी बर्बादी कम करना सबसे अहम है। यह पहला ऐसा अभियान है, जिसके तहत समूची वयस्क आबादीका टीकाकरण होना है। देशमें कोरोना टीकेकी औसतन ६.५ फीसदी खुराक बर्बाद हो रही है। एक तरफ तो यह शिकायत आम थी कि लोग टीकेके लिए भटक रहे हैं वहीं दूसरी तरफ यह देखनेमें आ रहा है कि टीका केन्द्र सूने हैं जिससे गांव तो दूर शहरोंतकमें उसका दैनिक लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा। यह जानकारी भी है कि युवा वर्गतकमें इस बारेमें उदासीनता देखी जा रही है। ऐसेमें अब जबकि टीकाकरणको लेकर एकीकृत सरकारी व्यवस्था बनायी जा रही है और आनेवाले समयमें टीकोंकी कमी भी नहीं रहनीवाली तब अधिकतम लोगोंको कोरोनाका टीका लगानेका काम पूरा करना राष्टï्रीय आवश्यकता है क्योंकि आनेवाले किसी भी लहरका सामना करनेमें यह सबसे ज्यादा सहायक होगा।

कोरोनाके बढ़ते प्रकोपके साथ देशभरमें टीकाकरणकी प्रक्रिया भी तेजीसे आगे बढ़ रही है। विज्ञानियोंने कयास लगाया है कि कोरोना संक्रमणकी दूसरी लहर अपने अवसानके समीप है और तीसरी लहरकी शुरुआत होनेवाली है, जिसमें बच्चोंके अत्यधिक संक्रमित होनेकी चिंता जतायी गयी है। इसी आशंकासे सरकार टीकाकरणको गति देनेपर जोर दे रही है। इसके देखते हुए देशमें बच्चोंके लिए कोरोना वैक्सीनके ट्रायलकी मंजूरी सरकार दे चुकी है। विशेषज्ञोंका यह भी कहना है कि जबतक ज्यादातार किशोरों और बच्चोंका टीकाकरण नहीं हो जाता तबतक आबादीके स्तरपर कोरोनासे पूर्ण सुरक्षा प्राप्त करना संभव नहीं होगा। हालांकि टीकाकरणसे हिचक और बच्चोंके लिए कोरोनाके जोखिमोंके बारेमें गलत विश्वास जैसे कारक इसे चुनौतीपूर्ण लक्ष्य बना सकते हैं। टीकाकरणको अनिवार्य बनाना लोगोंको टीकाकरणके लिए प्रोत्साहित करनेमें मदद कर सकता है। सीनियर चिकित्सकोंका कहना है कि कोरोनासे हम सबको काफी ज्यादा खतरा है। दूसरी लहरमें हम कोरोनाका विनाशकारी रूप देख चुके हैं। टीकाकरण नहीं करानेवाले बच्चे बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं। बच्चे समाजमें, प्राय: बड़े समूहोंमें उदाहरणके लिए स्कूलकी कक्षाओंमें शामिल होकर वायरसके प्रसारका बड़े वाहक बन सकते हैं। इसके अलावा, बच्चोंको लम्बे समयतक टीका न लगवानेकी वजहसे कोरोना वायरसको नये और अधिक खतरनाक स्वरूप विकसित करने और हम सबके लिए खतरा पैदा करनेके मौके मिल जाते हैं। सुरक्षित, प्रभावी कोरोना टीकाकरण माता-पिता और अभिभावकोंको दूसरे लोगोंको कोरोनासे संबद्ध नुकसान या मृत्युके बड़े जोखिमसे बचनेका एक आसान और किफायती तरीका उपलब्ध करायगा।

महामारीको खत्म करने और टीकाकरणको अनिवार्य बनानेके लिए हमारे पास एक बहुत ही ठोस कारण बच्चोंकी कुशलक्षेमका है। हमें बच्चोंको लाकडाउनके मानसिक एवं शारीरिक प्रभावों या अपर्याप्त प्रतिबंधोंके प्रभावोंसे या संक्रमणके प्रसारकी वजहसे स्कूलोंके बंद होनेके प्रभावोंसे बचाना ही होगा। प्रतिबंधों और संक्रमणके प्रसारके प्रभावोंका परिणाम इस रूपमें सामने आता है कि कल्याण और कुशलक्षेमके अवसर घटते चले जाते हैं। अकेले शिक्षापर पड़ रहे प्रभाव ही काफी चिंताजनक हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम बच्चोंको हंसते खेलते और फलते-फूलते देखना चाहते हैं। अभीतक सरकारने इसके लिए किसी भी प्रकारका दबाव नहीं बनाया किन्तु अब ऐसा लगता है कि टीकाकरण मुफ्त किये जानेके साथ ही अनिवार्य भी किया जायेे। आधार कार्डकी तरह टीकाकरण प्रमाणपत्रको शासकीय योजनाओंका लाभ लेनेके अलावा यात्रा सहित प्रत्येक कामके लिए जरूरी बना दिया जाना चाहिए। ऐसा करनेसे ही लोग टीका लगवानेके लिए बाध्य होंगे। इस फैसलेसे कुछ लोग नाराज होंगे। लेकिन देशके नागरिकोंके स्वास्थ्यके मद्देनजर इस प्रकारके कड़े निर्णय लेना समयकी आवश्यकता बन गया है। वास्तवमें मास्क और शारीरिक दूरीके लिए दबाव बनाये जानेके साथ ही टीकाकरणके प्रति भी सख्ती दिखानी होगी। लोगोंकी उदासीनताकी वजहसे हजारों टीके रोज बर्बाद होना राष्टï्रीय क्षति है। वहीं कोरोनाकी पहली और दूसरी लहरमें देश और देशवासियोंने जान और मालकी जो क्षति उठायी है, उसे पूरा करनेमें कई वर्षका समय लगेगा। समझदारी इसीमें है कि टीकाकरण करवाया जाय और दूसरोंको इसके लिए प्रेरित किया जाय।