सम्पादकीय

गर्मीका प्रकोप


कोरोना संक्रमणकी तेजीसे बढ़ती दूसरी लहरके बीच इस बार शुरूमें ही गर्मीने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। आनेवाले दिनोंमें तापमानमें और वृद्धिकी सम्भावना है। बंगालकी खाड़ीसे जिस तरहसे पूरवा हवा चल रही है उससे मौसमका मिजाज गरम है। मौसम विभागने सोमवारको बताया कि मासिक औसत अधिकतम तापमानके हिसाबसे पिछले १२१ वर्षोंमें इस सालका मार्च महीना तीसरा सबसे गर्म महीना रहा। इस वर्ष मार्चका अधिकतम तापमान ३२.६५ डिग्री सेल्सियस रहा जो पिछले ११ सालमें सबसे गर्म है। अगले २४ घण्टोंसे लेकर दो-तीन दिनोंके दौरान दक्षिण-पश्चिम राजस्थान, महाराष्टï्रके विदर्भ और मध्यप्रदेशके अलग-अलग इलाकोंमें लू चलनेकी सम्भावना है। राहतकी बात यह है कि नये बने पश्चिमी विक्षोभसे पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रके प्रभावित होनेकी सम्भावना है। इसके प्रभावसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, गिलगिट, बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद सहित उत्तराखण्डमें छिटपुटसे अच्छी बारिश और बर्फबारीकी सम्भावना है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रके मैदानी इलाकोंमें गरज-चमकके साथ बारिशके आसार हैं। इसी तरह एक-दो दिनमें पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेशमें बारिश हो सकती है। मौजूदा समयमें सूर्यकी आग बरसती किरणोंके चलते उत्तर भारतके सभी राज्योंमें तापलहर चल रही है जिससे अग्निकाण्डकी घटनाएं बढ़ी हैं। खेतोंमें कटाईके लिए तैयार खड़ी गेहूंकी फसलोंको आगसे भारी क्षति पहुंची है। अग्निकाण्डकी घटनाओंसे वन भी अछूते नहीं रहे। उत्तराखण्डमें भीषण तपिशसे बेकाबू हुई वनोंकी आगपर काबू पानेके लिए वायुसेनाने मोरचा सम्भाल लिया है। यहां पांच दिनोंके अन्दर अग्निकाण्डकी २८१ घटनाओंमें ४१३.५ हेक्टेयर वन क्षेत्र झुलस चुका है जो वायु प्रदूषणको बढ़ानेवाला है। अभी गर्मीका पूरा मौसम बाकी है। ग्रामीण अंचलोंमें पेयजल संकट गहरा गया है। हैण्डपम्पोंने पानी देना बंद कर दिया है। कुएंका जल निचले स्तरपर पहुंच गया है। ग्रामीण नदी, नालोंका पानी पीनेके लिए विवश हैं जो बीमारियोंको दावत देनेवाली है। विद्युत आपूर्ति व्यवस्था भी चरमरायी हुई है, जो कोढ़में खाज पैदा कर रही है। यह राज्य सरकारोंकी जिम्मेदारी है कि जलापूर्ति और विद्युत आपूर्तिको बरकरार रखें। ग्रामीण क्षेत्रोंकी सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखनेके लिए ठोस और सार्थक कदम उठानेकी जरूरत है।

भरोसा और चुनौती

कोरोना महामारीकी दूसरी लहरके बीच उत्पन्न स्थितियोंसे सफलतापूर्वक निबटनेका केन्द्रीय वित्त मंत्रालयका भरोसा अवश्य ही राहतकारी है लेकिन बैंकोंकी निरन्तर बढ़ती सकल गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियां बड़ी चुनौती और चिन्ताका विषय हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्थाके सुचारु संचालनमें बैंकोंका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वित्त मंत्रालयने अपनी मासिक रिपोर्टमें कहा है कि भारत अब कोरोनाकी दूसरी लहरसे मुकाबला करनेके लिए पूरी तरह तैयार है। आंकड़े इस बातकी ओर संकेत करते हैं कि भारत बेहतर और मजबूत बननेकी राहपर है। वित्त वर्ष २०२०-२१ में महामारीसे जूझनेके बाद अर्थव्यवस्था मजबूत और बेहतर होनेकी ओर अग्रसर है। इसमें आत्मनिर्भर भारत मिशनका विशेष योगदान है। बुनियादी ढांचे तथा पूंजीगत व्ययमें काफी मजबूती आयी है। वर्ष २०२१-२२ में आत्मनिर्भर भारतका परिणाम सामने आयगा। निश्चित रूपसे कोरोनाकी पहली लहरके दौरान देशको काफी कुछ देखने और सीखनेका अवसर मिला है। इसका लाभ दूसरी लहरके दौरान देखनेको मिलेगा। इसके साथ ही आर्थिक मोरचेपर कुछ बड़ी चुनौतियां भी हैं, जिनमें महंगी और बैंकोंकी बढ़ती गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियां (एनपीए) भी हैं। ऋणकी किस्त अदायगीमें छूट जैसे राहतके उपायोंके चलते २१ मार्च, २०२१ तक बैंकोंका एनपीए ९.७  प्रतिशत होनेका अनुमान है। २०२२ तक यह १०.२ प्रतिशततक पहुंच सकता है। यह अनुमान इंक्रा रेटिंग एजेंसीकी रिपोर्टमें व्यक्त किया गया है। महामारीके चलते कर्ज लेनेकी क्षमता प्रभावित होनेके बावजूद वर्ष २०२०-२१ के पहले नौ महीनोंमें एनपीए १.८ लाख करोड़ रुपये था। २०१९-२० में यह ३.६ लाख करोड़ रुपये था। एनपीए बढऩेकी जो प्रवृत्ति है वह बैंकोंके आर्थिक स्वास्थ्यके लिए हानिकारक है। इससे बैंकोंपर बोझ बढ़ा है। इसलिए एनपीएको कम करनेके लिए ठोस रणनीति बनानेकी जरूरत है। इससे बैंकोंके कामकाजपर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एक दूसरी चुनौती कोरोना महामारीकी दूसरी लहरके दौरान प्रवासी श्रमिकोंकी घरवापसीको लेकर है। इसपर भी सरकारको विशेष ध्यान देना होगा।