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गुजरात सरकार ने की मनरेगा की तारीफ, प्रवासी मजदूरों का ‘संकटमोचक’ बताया


  • गांधीनगर. गुजरात (Gujarat) के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी (Vijay Rupani) ने बीते हफ्ते एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लायमेंट गारंटी एक्ट (MNREGA) की जमकर तारीफ की गई है. रिपोर्ट में दावा किया है कि बीते साल लॉकडाउन (Lockdown) में अपने गांव लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा ने ‘संकटमोचक’ का काम किया है. इसके अलावा मनरेगा को कोविड के प्रभावों से उबरने में मददगार बताया गया है.

यह रिपोर्ट राज्य के जलवायु परिवर्तन विभाग की तरफ से तैयार की गई थी. जिसका समर्थन IIM अहमदाबाद और IIT गांधीनगर ने किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को संकट से निपटने के लिए समाधान के रूप में ‘खेती को प्राथमिकता’ देनी चाहिए. रिपोर्ट में आदिवासी जिला दाहोद समेत कई इलाकों का हवाला देकर कहा कि राज्य सरकार को ग्रामीण इलाकों में कोविड के बाद नुकसान से उबरने के लिए ‘मनरेगा की नई रणनीति’ बनानी चाहिए.

रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल कोविड-19 के बाद ‘करीब एक लाख’ प्रवासी मजदूर दाहोद में अपने गांव के पास लौट आए हैं. रिपोर्ट में बताया गया है, ‘सरकार रोजगार के मौके तैयार करने के क्षेत्र में काम कर रही है.’ साथ ही कहा गया है, ‘घर लौटने पर मजबूर हुए मजदूरों के लिए मनरेगा संकटमोचक की तरह रहा है.’ मनरेगा की शुरुआत कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार में 2006 में हुई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि गुजरात में मनरेगा के तहत दाहोद में सबसे ज्यादा श्रमिक हैं. यहां इनकी संख्या 2.38 लाख है. इसके बाद भावनगर (77 हजार 659) और नर्मदा (59 हजार 208) का नंबर आता है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एक जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारी ने बताया, ‘ऐसा लग रहा है कि आत्म निर्भर अभियान के तहत मनरेगा को काफी प्रोत्साहन मिला है…महामारी के दौरान और खासतौर से लॉकडाउन में योजना में शामिल होने वालों की संख्या काफी बढ़ी है.’