चंदौली

चंदौली। गुरु शिष्य परम्परा पर आधारित बाबा अघोरेश्वर भगवान राम जी के उद्घोष


चंदौली। परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कहा कि हमारी और इनके साथ हमारा अलग अलग धर्म तो कहते है, व्यवस्था को व्यवस्था मतलब हमारी आचरण से व्यवस्था बनेगा। हम कहॉ पर किस आदर्श को साथ किस के साथ कैसा व्यवहार करूं ऐसे रखना होगा, वह किताबी ज्ञान से भी जो है बुद्धि पर लादने से काम नहीं चल सकता, बुद्धि तब भ्रमित हो जायेगी और जब बुद्धि भ्रमित हो जायेगी तो निराश्रय जीवन जीने को बाध्य करेगा और अपने में हीनता का जन्म होगा, बन्धु और यह जो हम लोग जो अपने आराधना या प्रार्थना या चिन्तन के नाम पर बहुत से धूप, दीप, नैवेध इत्यादिक करते है, दूसरे को धक्का मुक्की करके उस देव मंदिर को ईश्वर द्वारा प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा किया हुआ प्राणियों को धक्का-मुक्की कर हम पत्थरों के विग्रहो के पास जो पहुुचने का होड़ लगाते है, यह भी तो दुष्कर्म ही तो है, बन्धु जिसमें ईश्वर ने प्राण प्रतिष्ठा किया है उसे हमे केहुनियो से मारकर उसको टारकर उसके भार को टारता हूं कि उसके बीच में निकल जाउ और वह विग्रह को पूजा करके लौट जाउ उससे मुझे बहुत पूर्ण प्राप्त होगा या उसकी हमें बहुत बड़ी आशीर्वाद प्राप्त होगा। यही तो उसमें दिखाया गया है, बन्धु वो सिर्फ कुठिंत है, वह सिर्फ आप को देख रहा है, आप उसे नहीं देख रहे है, आप जिस दिन उसमें दिखेंगे की मैं ही यह हूं और मेरे द्वारा यह है, जिन दिन यह जानेंगे उस दिन आप से भिन्न नहीं होगा, बन्धु वह कही भी कैद में पड़ी हुई एक फकीर थी फकीर एक ईशिष्ट थी वह चाईना का बना हुआ शीशा उसकी जेल में बड़े राज दरबार की शाहजहां की वह बेटी भी नूरजहां ने उसका नाम नहीं मुझे याद आ रहा है, वह भी दाराशीकोह नाम था दारा के साथ वह भी जेल में बंद थी। जब उसका शीशा फूट गया तो वह फकीर के शीशे के साथ बैठी थी, वह आई भी तो उसने कहां था, कदा चीनी शिकस्त यह चीन का बना हुआ शीशा शिकस्त खा गया। उसकी जब लौंडी से ऐसी बात कही तो उसने कहां बहुत अच्छा हुआ खूब जो अपने आप में हमें देखता था, टूट गया फिर होता है, जिसके पास आप बार-बार पत्थर पैर नवाते ह, न आप में ही दिखाई पड़ेगा जिस दिन आप में वह दिखाई पड़ेगा उस दिन आप पूजना छोड़ देंगे। आप स्वयं हमारे लिये किसी को अपमान का पात्र हो मैं उस लोगों से मिलबई ही न करू, हमारे लिये जिसके पास कोई जगह ही नहीं हम क्यों न उन्ही के पास जांउ जहां पर मेरे लिये भी कोई जगह हो मेरी भी कोई सुन सके और वह वही हो सकता है, जो आप का अपना होगा और के अपना अपनी बीबी-बच्चों और परिवार परिजनों को समझते है तो यह बिल्कुल नहीं है, कितना बार आप पर गुस्साये होंगे कितना बार आप को प्रताडऩा देने की सोचे होंगे। वह भी मन से भी, कर्म से भी, वचन से भी इसलिये हम लोगों का अपने इस जीवन में हर क्षण अपनी हीनभावनाओं से उठना चाहिए। विचार छोटी नहीं रखना चाहिये बहुत बड़े रखना चाहिए और जिस तरह से उस बादशाह ने अपने बूत बनाकर प्रचार किया कि मेरा इसमें मूर्ति लगा हुआ है कोई ना खोले कोई न देखे कोई और उसमें पर्दा लगाकर बैठा दिया था। दस पांच पुजारियों की तरह की इसका पूजा अर्चना हुआ करें कोई न खोले कोई न देखे इसको और एक भारतीय साधु गया उसके देश में सोचता रहा कि आखिर यह है। क्या यह प्रचार कराया है कि मेरा मूर्ति है इसको क्यो खोलोगे क्यो देखोंगे इसमें। सौजन्य से बाबा कीनाराम स्थल खण्ड-९