सम्पादकीय

चीनकी कुटिल चाल


भारत और चीनके बीच लम्बे समयसे चली आ रही तनातनीपर विराम लगनेका कोई आसार नहीं दिख रहा है। चीन अपनी कुटिल चालोंसे बाज नहीं आ रहा है और लगातार भारतको घेरने और दबाव बनानेके प्रयासमें जुटा हुआ है। पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकोंकी वापसीके बावजूद चीनका भारतीय क्षेत्रके पास जमीनसे हवामें मार करनेवाली चीनी मिसाइल बैटरीकी तैनातीसे उसकी नीयत स्पष्टï है। हालांकि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इन मिसाइलोंकी हरकतपर पैनी नजर रख रही हैं और किसी भी स्थितिसे निबटनेके लिए पूरी तरह तैयार भी हैं। यह विचित्र विडम्बना है कि दोनों देशोंकी ११ दौरकी सैन्य वार्ता हो चुकी है और दोनों देशोंके बीच सहमति भी बनी है लेकिन अबतक उसका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहा है। आपसी सहमतिके चलते इतना जरूर हुआ है कि भारत और चीनकी सेनाएं लद्दाखके पैंगोंग झील इलाकेसे पीछे हट चुकी हैं लेकिन तनाववाले अन्य क्षेत्रों गोगरा, हाट स्प्रिंग, डेपसांग घाटी और डेमचोकके पास सीएनएन जंक्शनसे सैन्य वापसीमें चीन आनाकानी कर रहा है। चीनका यह रवैया निन्दनीय है। थल सेना प्रमुख एम.एम. नरवणेने इस ओर पहले ही संकेत किया था कि चीनकी ओरसे खतरा सिर्फ टला है, पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। दरअसल डोकलाम और लद्दाखमें भारतीय सेनाके अप्रत्याशित पराक्रमको चीन पचा नहीं पा रहा है। राष्टï्रपति शी जिनपिंग अपने ही देशमें हो रही किरकिरी और अपनी साख बचानेके लिए भारतके विरुद्ध नित नयी इस तरहकी कुटिल चालें चल रहे हैं जो उकसानेवाला कदम है। वास्तविक नियंत्रण रेखापर स्थिति बिगडऩेकी पूरी जिम्मेदारी चीनकी है। दोनों देशोंके बीच गतिरोध दूर करनेके मुद्देपर चीनकी मानसिकता तथा व्यवहारमें लचीलापन और सकारात्मकताका अभाव बना हुआ है। जबतक चीनकी मानसिकता नहीं बदलेगी तबतक गतिरोधकी स्थिति बनी रहेगी। चीनकी कथनी और करनीमें जमीन-आसमानका फर्क है। भारतसे उसकी वार्ता दिखावे और दुनियाकी आंखोंमें धूल झोंकनेकी उसकी बद्ïनीयतीका अंग है। विश्व समुदाय चीनकी हरकतोंसे वाकिफ है और भारतके साथ खड़ा है जिससे चीन बौखलाया हुआ है। उसने यह समझ लिया है कि भारतसे कटुता बढ़ाना उसके हितमें नहीं है। उसने खुद ही स्वीकार भी किया है कि भारतकी सैन्य शक्ति उससे अधिक है। इसलिए परोक्ष रूपसे भारतको घेरनेमें लगा हुआ है। भारतको चीनकी हरकतोंसे सतर्क रहते हुए मजबूत रणनीति बनानी होगी।

उत्पादकतामें गिरावट

कोरोना महामारीका प्रत्यक्ष प्रभाव औद्योगिक उत्पादनपर दिखने लगा है। इससे अर्थव्यवस्थामें सुस्तीके लक्षण फिर सामने आ गये हैं, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। इस वर्ष फरवरीमें लगातार दूसरे महीने औद्योगिक उत्पादनमें ३.६ प्रतिशतकी गिरावट आयी है। राष्टï्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) से सोमवारको जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) आधारित आंकड़ोंसे यह तथ्य उजागर हुआ है। इसमें विनिर्माण और खनन क्षेत्रोंने खराब प्रदर्शन किया है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांकमें विनिर्माण क्षेत्रको ७७.६३ प्रतिशत हिस्सेदारी है। फरवरी २०२१ में ३.७ प्रतिशतकी गिरावट आयी है। खनन क्षेत्रमें भी ५.५ प्रतिशत गिरावट दर्ज की गयी है। औद्योगिक उत्पादनमें पिछले वर्ष मार्चसे ही कोविड-१९ महामारीका प्रभाव है। आर्थिक गतिविधियां शुरू होनेके साथ सितम्बर २०२० औद्योगिक उत्पदनमें एक प्रतिशतकी वृद्धि हुई, जबकि नवम्बरमें इसमें १.६ प्रतिशतकी गिरावट आ गयी। इसके बाद दिसम्बरमें १.६ प्रतिशतकी वृद्धि दर्ज की गयी। देशकी अर्थव्यवस्था भले ही धीरे-धीरे पटरीपर आ रही हो लेकिन आर्थिक मोरचेपर चुनौतियां बनी हुई हैं। कोरोना कालमें सबसे अधिक दुष्प्रभाव भारतीय आटो मोबाइल क्षेत्रपर पड़ा है। कोरोनाने इसे एक दशक पीछे धकेल दिया है। कारोंकी बिक्रीमें २.२ प्रतिशत, दो पहिया वाहनोंमें १३ प्रतिशत और वाणिज्यिक वाहनोंमें २१ प्रतिशतकी गिरावट दर्ज की गयी है। तिपहिया वाहनोंकी बिक्री ६६ प्रतिशत कम हुई है। इसीके साथ ही कोरोना संक्रमणका रोजगारपर काफी असर दिखने लगा है। बेरोजगारी दर निरन्तर बढ़ रही है। ग्रामीण इलाकोंकी तुलनामें शहरी क्षेत्रोंमें बेरोजगारी बढ़ी है। वैसे ई-कामर्स क्षेत्रमें नये रोजगारकी सम्भावनाएं बढ़ी हैं। लेकिन इसमें समय लग सकता है। कोरोना महामारीके दौरमें सरकार जीवन और जीविका दोनोंके लिए प्रयास कर रही है लेकिन इसे गति देनेकी जरूरत है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव अर्थव्यवसथापर पड़ेगा।