कोरोना कालमें ब्रिटेनमें आयोजित विश्वके सात विकसित देशोंके संघटन जी-७ की शिखर बैठकमें चीनकी चौतरफा घेरेबंदीका एक स्वरसे निर्णय किया गया है। इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी है, जो चीनसे ही पूरे विश्वमें फैली और इससे विश्वके प्राय: सभी देश आक्रान्त हैं। ३८ लाखसे अधिक लोगोंकी मौत हुई। शिखर बैठकमें स्पष्टï रूपसे कहा गया कि चीन कोरोना वायरसके स्रोतका पता लगानेमें सहायता करे। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिकाके इस संघटनमें चीनको इसके शिनजियांग प्रान्तमें मानवाधिकारोंके हननके लिए भी फटकार लगायी। साथ ही हांगकांगमें उच्च स्तरकी स्वायत्तताका भी आह्वïान किया गया। शिखर बैठकमें विशेष अतिथिके रूपमें शामिल भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीकाने भी जी-७ के निर्णयके साथ एकजुटतासे खड़ा रहनेका निर्णय किया। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने अपने सम्बोधनमें स्पष्टïत: कहा है कि विश्वका सबसे बड़ा लोकतंत्र होनेके कारण भारत जी-७ का स्वाभाविक मित्र है और वह सभी महत्वपूर्ण मुद्दोंपर जी-७ के साथ है। अमेरिकाके राष्टï्रपति जो बाइडेनने भी चीनपर दबाव बनाते हुए कहा है कि वह कोरोना वायरसकी उत्पत्ति स्थलके बारेमें तथ्योंसे अवगत कराये। वस्तुत: पूरा विश्व कोरोना वायरसके स्रोतके बारेमें जानना चाहता है। इसलिए पूरे विश्वका मजबूत दबाव चीनपर पडऩा चाहिए। जी-७ की शिखर बैठकमें इसपर विस्तारसे चर्चा हुई कि चीनके खिलाफ किस प्रकार एकीकृत रुख अपनाया जाय। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि चीनके रवैयेसे विश्वके ज्यादातर राष्टï्र आक्रोशित हैं। इस दिशामें पहल हो चुकी है। जी-७ ने चीनकी विस्तारवादी नीतियोंके खिलाफ अमेरिकाके नेतृत्वमें चीनके ‘वन बेल्ट-वन रोडÓ (ओबीओआर) अभियानपर बड़ा जवाबी हमला करनेका निर्णय किया है और इसके लिए जी-७ ने सैकड़ों लाख करोड़ रुपये खर्च करके एक परियोजना ‘बिल्ड बैक बेटर वल्र्डÓ (बी ३ डब्ल्यू) का प्रारूप सामने रखा है। ह्वïाइट हाउसका कहना है कि विकासशील देशोंमें २०३५ तक ४० ट्रिलियन डालरकी राशि खर्च की जायगी। इसके साथ यह भी कहा गया है कि हम अपने मूल्यों, गुणवत्ता और कारोबारके तरीकेको लेकर आगे बढ़ेंगे। चीनने २०१३ में अपनी परियोजना शुरू की और इसके लिए उसने सौसे अधिक देशोंके साथ समझौता किया है। इसमें भारत शामिल नहीं है। जो भी हो, चीनकी परियोजनामें उसका विस्तारवादी स्वार्थ निहित है और इसके जवाबमें जी-७ ने जो कदम बढ़ाया है उससे चीनकी परेशानी बढ़ेगी।
सेना और सक्षम होगी
भारतीय सेनाको और मजबूती देनेके लिए रक्षा मंत्रालयने कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। इसके तहत रक्षा क्षेत्रमें देशको आत्मनिर्भर बनानेके लिए स्वदेशी तकनीकोंको बढ़ावा देनेके उद्देश्यसे ४९९ कररोड़ रुपयेका बजट देनेका निर्णय सकारात्मक पहल है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंहने अगले पांच वर्षोंके लिए रक्षा क्षेत्रमें अनुसन्धान और नवोन्मेषके लिए ४९८.८ करोड़ रुपयेके बजटको मंजूरी दी है। इस योजनाका मुख्य उद्देश्य रक्षा क्षेत्रमें आत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण है। स्वीकृत धनके उपयोगको रेखांकित करते हुए रक्षा मंत्रालयने रविवारको कहा कि करीब ३०० स्टार्टअप, लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) और व्यक्तिगत अन्वेषकोंको इससे वित्तीय मदद उपलब्ध करायी जायगी। माना जा रहा है कि इस योजनासे सैन्य उपकरणों और हथियारोंके आयातमें न सिर्फ कमी आयगी, बल्कि भारतको रक्षा विनिर्माणका केन्द्र बनानेकी दिशामें भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसी क्रममें समुद्रमें अपनी ताकत बढ़ानेके लिए रक्षा मंत्रालय तेजीसे अग्रसर है। इसके तहत शीघ्र ही भारतको तीन परमाणु हमलावर पनडुब्बियां मिलेंगी। ये तीनों पनडुब्बियां ९५ प्रतिशत स्वदेशी होंगी। इसके लिए पचास हजार करोड़के प्रस्ताव सुरक्षापर बनी मंत्रिमण्डल समिति विचार कर रही है जिसे मंजूरी मिलना तय है। ये तीनों पनडुब्बियां रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संघटन (डीआरडीओ) विशाखापत्तनम बनायेगा। यह परियोजना अरिहन्त श्रेणीकी परियोजनासे अलग होगी जिसके तहत छह परमाणु पनडुब्बियां बनायी जा रही हैं। मौजूदा दौरमें वैश्विक स्तरपर जो परिस्थितियां बन रही है, वह विकासकी नहीं विनाशकी ओर संकेत कर रही है। पूरी दुनिया बारूदकी ढेरपर बैठी है। विश्वयुद्धका खतरा मंडरा रहा है जिसकी आहट पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाखमें भारतीय और चीनी सेनाओंके बीच हुए हिंसक संघर्षसे लग चुका है। चीनका कुचक्र कभी भी किसी अनहोनीको मूर्तरूप दे सकता है। ऐसी स्थितिमें देशकी सैन्य शक्तिको बढ़ाना और भारतीय सेनाको सक्षम बनाना समयकी मांग है।