सम्पादकीय

उपलब्धि


ओशो
जीवनमें हम कोई भी काम तभी करते हैं जब कुछ मिलना हो। ऐसा कोई काम करनेके लिए कोई राजी नहीं होगा जिसमें कहा जाय कि कुछ मिलेगा नहीं और करो। वह कहेगा, फिर मैं पागल हूं क्या कि जब कुछ मिलेगा नहीं और मैं करूं। लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूं, जीवनमें वे ही क्षण महत्वपूर्ण हैं जब आप कुछ ऐसा करते हैं जिसमें कुछ भी मिलता नहीं। जब कुछ मिलनेके लिए आप करते हैं तब बहुत क्षुद्र हाथमें आता है। विराटको पानेके लिए कुछ पानेकी आकांक्षा नहीं होनी चाहिए, हो तो फिर बाधा हो जायगी। ध्यान किसलिए करते हैं। यदि कोई आपसे पूछे, प्रेम किसलिए करते हैं तो क्या कहेंगे। कहेंगे प्रेम स्वयं अपने आप आनन्द है। वह किसीके लिए नहीं, कोई परपज नहीं है और आगे। प्रेम अपनेमें ही आनन्द है। उसके बाहर और कोई कारण नहीं जिसके लिए प्रेम करते हों और यदि कोई किसी कारणसे प्रेम करता हो तो हम फौरन समझ जायंगे कि गड़बड़ है, यह प्रेम सच्चा नहीं है। मैं आपको इसलिए प्रेम करता हूं कि आपके पास पैसा है, वह मिल जायगा। तो फिर प्रेम झूठा हो गया। मैं इसलिए प्रेम करता हूं कि मैं परेशानीमें हूं, अकेला हूं, आप साथी हो जायंगे। वह प्रेम झूठा हो गया। वह प्रेम न रहा। जहां कोई कारण है वहां प्रेम न रहा, जहां कुछ पानेकी इच्छा है वहां प्रेम न रहा। प्रेम तो अपने आपमें पूरा है। ठीक वैसे ही, ध्यानके आगे कुछ पानेको जब हम पूछते हैं क्या मिलेगा। वह हमारा लोभ पूछ रहा है। मोक्ष मिलेगा कि नहीं, आत्मा मिलेगी कि नहीं। वह पूछ रहा है हमारा लोभ। वही जो हमारी हमेशा लाभ, लोभकी जो चिंतना है, वह काम कर रही है। नहीं मैं आपसे कहता हूं, कुछ भी नहीं मिलेगा और जहां कुछ भी नहीं मिलता वहीं वह मिल जाता है, सब कुछ जिसे हम कहें। जिसे हमने कभी खोया नहीं, जिसे हम कभी खो नहीं सकते, जो हमारे भीतर मौजूद है। यदि उसको पाना हो जो हमारे भीतर मौजूद है तो कुछ और पानेकी चेष्टा सार्थक नहीं हो सकती है। सब पानेकी चेष्टा छोड़कर जब हम मौन, चुप रह जायंगे तो उसके दर्शन होंगे जो हमारे भीतर निरन्तर मौजूद है। कुछ वहां मौजूद है, उसे पानेके लिए निष्क्रिय हो जाना जरूरी है। यदि मुझे आपके पास आना हो तो दौडऩा पड़ेगा, चलना पड़ेगा और यदि मुझे मेरे ही पास आना हो तो फिर कैसे दौडूंगा और कैसे चलूंगा। यदि कोई आदमी कहे कि मैं स्वयंको ही पानेके लिए दौड़ रहा हूं तो हम उससे कहेंगे, तुम पागल हो, दौडऩेमें तुम समय खराब कर रहे हो। दौडऩेसे क्या होगा। दौड़ते हैं दूसरेतक पहुंचनेके लिए, अपनेतक पहुंचनेके लिए कोई दौडऩा नहीं होता। फिर अपनेतक पहुंचनेके लिए सब दौड़ छोडऩा होता है। क्रिया होती है कुछ पानेके लिए, लेकिन जिसे स्वयंको पाना है उसके लिए कोई क्रिया नहीं होती, सारी क्रिया छोड़ देनी होती है। जो क्रिया छोड़कर दौड़ छोड़कर रुक जाता, ठहर जाता, वह स्वयंको उपलब्ध हो जाता है और यह स्वयंको उपलब्ध कर लेना सब उपलब्ध कर लेना है और जो इसे खो देता है वह सब पा ले तो भी उसके पानेका कोई मूल्य नहीं। एक दिन वह पायगा, वह खाली हाथ था और खाली हाथ है।