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चुनाव में तेजस्वी के सामने क्या है बड़ी चुनौती? इतिहास दोहराने की फिराक में जुटी RJD


पटना। Bihar Political News In Hindi बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर वे दिन-रात रणनीति बना रहे हैं। उनका मंसूबा 2024 में 2004 का इतिहास दोहराने का है।

 

पार्टी ने भी तेजस्वी के युवा कंधों पर जीत की बड़ी जिम्मेदारी डाल दी है, लेकिन यह कड़वा सच है कि 2024 का चुनाव बेहद अहम होने जा रहा है। तेजस्वी पर चुनौतियां के बीच से नई राह निकालने की बड़ी जवाबदेही होगी।

बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद बाद राजद 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Polls) में अधिक से अधिक सीटों पर दांव लगाने की कोशिश में जुटा है। लेकिन सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे से लेकर जीत का परचम बुलंद करने तक के लिए कड़ी मेहनत और अनुशासन की जरूरत होगी।

15 साल में गिरा ग्राफ

पार्टी यह भी आकलन कर रही है कि यह काम इतना आसान नहीं होगा। बीते 15 सालों में उसके ग्राफ में काफी गिरावट आई है। लोकसभा में पार्टी का फिलहाल कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

इतिहास बताता है कि 1998 से लोकसभा चुनाव का सफर शुरू करने वाले दल राजद ने पहली ही बार में 17 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। पार्टी का वोट प्रतिशत भी करीब 26.6 प्रतिशत था। लेकिन अगले ही साल 1999 में चुनाव की नौबत पड़ गई और इस चुनाव राजद को बड़ा झटका लगा।

पहली बार में 17 सीट जीतने वाली पार्टी सात सीटों पर सिमट गई। लेकिन 2004 के चुनाव में राजद ने शानदार सफलता हासिल की। इस चुनाव पार्टी ने 24 लोकसभा सीटें जीती। पार्टी का वोट प्रतिशत भी करीब-करीब 31 प्रतिशत हो चुका था।

वोट प्रतिशत भी पांच प्रतिशत के करीब गिर गया

इसके बाद राजद का ग्राफ साल-दर-साल गिरता गया। 2009 के चुनाव में राजद की झोली में लोकसभा की सिर्फ चार सीटें आई। वोट प्रतिशत भी पांच प्रतिशत के करीब गिर गया। यही स्थिति 2014 में भी रही। पार्टी ने सिर्फ चार सीटें ही जीती। जबकि चुनाव लड़ा था 27 सीटों पर।

इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में राजद लोकसभा चुनाव में शून्य पर बोल्ड हो गया। हालात इस बार भी बदले हुए हैं। राजद आइएनडीआइए का सहयोगी है। परंतु ऐसी चर्चा है कि जदयू से अलग होने के बाद राजद बिहार में लगभग 25 से 27 सीटों पर किस्मत आजमाने की जुगत में है।

पार्टी बीते 17 महीने के काम को आधार बनाकर विरोधियों को पटकने की रणनीति बना रही है। जेहन में पुरानी मुश्किलें और राह की बाधाएं भी है। उन्हें भी दूर करने के प्रयास हो रहे हैं। चुनाव की घोषणा में अभी विलंब है, लेकिन जिलों में प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं।

पोस्टर और इंटरनेट मीडिया पर भी तेजस्वी के काम को आधार बनाकर विरोधियों पर हमले शुरू हो चुके हैं। विश्लेषकों की नजर भी राजद की रणनीतियों पर है। सवाल उठ रहे हैं कि तेजस्वी 2004 का इतिहास दोहराने में सफल होते हैं या फिर मोदी लहर का शिकार होकर रह जाते हैं।