रणजीत सिंह
किसी भी कार्यके लिए मनुष्य जब सक्रिय होता है तो उसके पीछे उसकी बुद्धि होती है। बौद्धिक क्षमताके आधारपर ही दुनियाके किसी भी देशका कोई भी नागरिक कार्यका निष्पादन करता है और उसीके अनुसार विकास तथा सफलता प्राप्त करता है और इसीके अनुसार समस्याएं और असफलताएं भी दर्ज करता है। तात्पर्य यह है कि हमारे द्वारा किये जानेवाले तमाम कार्योंके पीछे हमारी बौद्धिक क्षमता और गुणोंका ही आधार है। यह जाननेके बाद यह तथ्य गौर करनेका है कि अलग-अलग लोगोंके बौद्धिक गुण और क्षमता भिन्न-भिन्न तथा सकारात्मक और नकारात्मक, सफल और असफल कार्योंको अंजाम देनेवाली क्यों होती है? इसका कारण है हमारी चेतनाका स्तर। किसी भी कार्यके क्रियान्वयनके लिए हमारी चेतना ही उत्तरदायी है। जैसी हमारी चेतनाका स्तर और गुण होंगे, वैसे ही हमारे कार्य भी होंगे। इसलिए दुनियाका कोई भी देश भौतिक स्तरपर किसी भी क्षेत्रमें चाहे कितनी ही तरक्की कर ले, लेकिन विकासका किसी भी क्षेत्रमें श्रेष्ठïताका स्तर पानेमें उस देशके नागरिकोंकी चेतनामें जागृत ज्ञानका ही सर्वाधिक महत्व है। क्योंकि चेतनाके जागृत होने अर्थात्ï उसमें ज्ञानके होनेपर ही हम किसी भी क्षेत्रमें सफलता और श्रेष्ठïता प्राप्त कर सकते हैं। भारतके पास यह ज्ञान परम्परासे ही है और हमारी वैदिक विद्या प्रणालीमें परम्परागत रूपसे ही यह माना गया है कि असली ज्ञानी होनेका अर्थ है ब्रह्मïाण्डको चलानेवाली परमशक्तिका हमारी मानवीय चेतनामें अवतरण। तब दैवी अनुकम्पा बनी रहती है। यही दैवी अनुकम्पा ज्ञानी बनाये रखती है। उसका आचरण प्राकृतिक नियमानुसारी हो जाता है। सृष्टिï द्वारा संचालित प्राकृतिक नियम विकासशील है, जीवन पोषक है, उनमें अनेकतामेें एकता कायम रखनेकी अद्ïभुत क्षमता है। इन प्राकृतिक नियमोंसे चेतना सतोगुण बनी रहती है। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति, समाज, राष्टï्र और विश्वकी सामूहिक चेतनामें प्रकृति साम्यता बनी रहे, सत्यका वर्चस्व बना रहे। अध्यात्मकी ओर लौटता विश्व समुदाय अब भारतीय ध्यान-योगके प्रभावोंसे परिचित हो चुका है। समय-समयपर इस दिशामें होनेवाले प्रयोगोंसे वैज्ञानिकताका आधार पानेके बाद मनुष्यको यह बात समझमें आने लगी है कि मानव चेतना और प्रकृतिका अनूठा रिश्ता है और भारतीय वैदिक तकनीकें हैं, जिनसे प्रकृतिकी इस पोषणकारी क्षमतासे मनुष्यका जुड़ाव बनाये रखती हैं। विभिन्न अवसरोंपर देवी-देवताओंकी शक्तिको जगानेवाले पर्व, त्यौहार, उत्सव, व्रत, पूजा, साधना, अनुष्ठान आदि ऐसी ही वैदिक तकनीकें हैं, जिसने चेतनामें प्रकृति साम्यता बनी रहती है।