सम्पादकीय

आंकड़ोंमें विसंगतियां


कोरोना महामारीके दौरमें संक्रमितोंके आंकड़ोंमें भले ही विशेष विसंगति नहीं रही हो लेकिन मृतकोंकी संख्याको लेकर विसंगतियां अवश्य सामने आयी। इससे वास्तविक्ताके प्रति भ्रमकी स्थिति बनी रही। देशके छहसे अधिक राज्योंमें इसकी शिकायतें मिली और इसे लेकर राजनीति भी शुरू हो गयी। ऐसी विसंगतियां क्यों और किन परिस्थितियोंमें उत्पन्न हुई, इसपर सवाल उठना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकारने इसे गंभीरतासे लिया जिससे कि वास्तविक आंकड़े देशके समक्ष प्रस्तुत किये जा सकें। सर्वोच्च न्यायालयमें शनिवारको रात्रिमें केन्द्र सरकारने एक शपथपत्रके माध्यमसे स्पष्टï किया है कि कोरोना वायरससे हुई सभी मौतोंको कोविडसे हुई मौतोंके रूपमें दर्ज किया जाना चाहिए। इसके साथ ही केन्द्र सरकारने यह भी कहा है कि इस नियमका पालन नहीं करने वाले चिकित्सकोंके खिलाफ काररवाई भी की जायगी। अब तक केवल अस्पतालोंमें हुई कोविड रोगियोंकी मृत्युको ही कोविडसे हुई मृत्यु माना जाता था। घरपर आइसोलेशन या अस्पतालके पार्किंग स्थलों अथवा द्वारपर हुई मौतोंको कोविड से हुई मौत नहीं गिना जाता था। इसी वजहसे मृत्यु आंकड़ोंमें विसंगतियोंको दूर करनेकी दिशामें महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इससे मौतके आंकड़ोंमें वास्तविकता उजागर होगी और देशकी जनतामें उत्पन्न भ्रांतियां भी दूर होंगी। अब एक बड़ा प्रश्न कोरोनासे हुई मौतमें मृतकोंके आश्रितों या परिजनोंको मुआवजा देनेसे सम्बन्धित है। यह मुआवजा पीडि़त परिवारोंको मिलना भी चाहिए लेकिन इसकी संभावनाएं क्षीण हो गयी हंै। केन्द्र सरकारने सर्वोच्च न्यायालयमें स्पष्टï कर दिया है कि यह पूरी तरहसे राज्योंकी आर्थिक स्थितिपर निर्भर करता है। कोरोनाकालमें लाकडाउनके कारण राज्योंकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रही, कर राजस्वमें कमी आयी है और अर्थव्यवस्था नकदीके संकट से जूझ रही है इसलिए कोविड से हुई मौतोंके लिए चार लाख रुपयेका मुआवजा नहीं दिया जा सकता है। राज्योंपर इससे असहनीय वित्तीय बोझ पड़ेगा। वस्तुत: विभिन्न राज्योंकी आर्थिक स्थितियां भी अलग-अलग हैं। इसलिए जो राज्य मुआवजा देनेकी स्थितिमें हैं, उन्हें पीडि़त परिवारोंको अवश्य मुआवजा देना चाहिए भले ही राशिमें कुछ कमी कर दी जाय। जो राज्य इसमें सक्षम नहीं हैं, उनके लिए केन्द्र सरकारके सहयोगसे वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए। जिन परिवारोंमें कोरोनासे मौत हुई हैं उनकी आर्थिक स्थितिका भी अध्ययन किया जाना चाहिए। ऐसे परिवारोंकी बड़ी संख्या है जहां भरण-पोषण अत्यन्त जटिल हो गया है। ऐसे परिवारोंको मानवताके आधारपर अवश्य मुआवजा मिलना चाहिए जिससे कि उनका भरण-पोषण हो सके।

चिकित्सकोंको सुरक्षा

कोरोना महामारी संकटकालके दौरान देशके अलग-अलग हिस्सोंमें चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियोंपर हुए हमलोंके दोषियोंके विरुद्ध राज्योंको सख्त काररवाई करनेका निर्देश केन्द्र सरकारकी अच्छी पहल है। सरकारने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियोंसे मारपीट करने वालोंके विरुद्ध महामारी एक्टमें प्राथमिकी दर्ज करें। इसके तहत हमलेमें शामिल व्यक्तिको पांच वर्षतक कैद और दो लाख रुपयेतक जुर्मानेका प्रावधान है। चिकित्सकोंको हिंसामें गंभीर नुकसान संज्ञेय अपराधकी श्रेणीमें आयगा जो गैर जमानती होगा। अपराधीको सात सालतक की सजा और पांच लाख रुपयेतकके जुर्मानेकी सजा हो सकती है। इस तरहकी घटनाओंके लिए चिकित्साकर्मियों का भी अनुचित व्यवहार हो सकता है, क्योंकि कुछ चिकित्सक ऐसे है जिनका आचरण ठीक नहीं है, लेकिन यह सभीपर लागू नहीं हो सकती है। कोरोनासे जंगमें अग्रिम पंक्तिके योद्धाकी भूमिका निभा रहे चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियोंको धमकी अथवा उनपर हमला उनका मनोबल गिरा सकती है। उनमें असुरक्षाकी भावना पैदा होगी जिसका स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थापर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। महामारीके दौरमें चिकित्साकर्मियोंने जान हथेलीपर रखकर रात-दिन जिस लगन और निष्ठïासे महामारीसे ग्रसित लोगोंकी सेवा की है और कर रहे हैं, वह प्रंशसनीय है। उनके साथ अशोभनीय व्यवहार किसी रूपमें उचित नहीं है। बहुत से स्वास्थ्यकर्मी मरीजोंकी जान बचानेमें खुद संक्रमित हुए और जीवनकी आहुति दे दी। उनके त्याग और कत्र्तव्यके प्रति समर्पणकी भावनाको भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे कत्र्तव्यनिष्ठï सेवकोंके प्रति दुव्र्यवहार बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और निन्दनीय है। कोरोनासे निबटनेमें चिकित्सकोंके योगदानको पोस्टर और सोशल मीडियाके माध्यमसे प्रसारित और प्रचारित करनेका प्रयास किया जाना चाहिए। इसके साथ हिंसक घटनाओंको अंजाम देनेवालोंके विरुद्ध केन्द्र सरकारकी सख्त काररवाईकी पहल स्वागतयोग्य है। इसपर तेजीसे अमल करनेकी जरूरत है, ताकि अराजक तत्वोंको सबक मिले।