सम्पादकीय

जहरीली शराबका जानलेवा धंधा


अरविंद जयतिलक

कोरोना महसंकटके बीच उत्तर प्रदेश राज्यके अलीगढ़ जिलेमें जहरीली शराबसे दो दर्जनसे अधिक लोगोंकी मौत रेखांकित करनेके लिए पर्याप्त है कि राज्यमें अवैध शराब निर्माणका धंधा जोरोंपर है। यह ठीक है कि जिला प्रशासनने तत्परता दिखाते हुए दोषियोंके खिलाफ काररवाई और धरपकड़ शुरू कर दी है और कई लोगोंको निलंबित किया गया है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। ऐसा इसलिए कि अवैध नशेका कारोबार रोकनेके लिए जब तब इस तरहकी असरहीन काररवाई होती रहती है लेकिन उसका रंचमात्र भी असर देखनेको नहीं मिल रहा है। उल्टे शराबके अवैध कारोबारका धंधा फल-फूल रहा है। अभी चंद दिनों पहले ही आजमगढ़ और अंबेडकर नगरमें जहरीली शराबके सेवनसे डेढ़ दर्जनसे अधिक लोगोंकी मौत हुई। दोषियोंके खिलाफ काररवाई भी हुई। लेकिन अलीगढ़की घटनासे साफ है कि जहरीली शराबके कारोबारसे जुड़े लोगोंके मनमें कानून और दंडका तनिक भी भय नहीं है। राज्य सरकारको समझना होगा कि जबतक अवैध शराब निर्माणसे जुड़े माफियाओं और उन्हें प्रश्रय देनेवाले लोगोंके खिलाफ कठोर काररवाई नहीं होगी तबतक जहरीली शराबसे लोगोंकी जिन्दगी मौतकी भेंट चढ़ती रहेगी।

अकसर जिन गांवोंमें जहरीली शराबसे लोगोंकी मौत होती है वहां लोग कहते सुने जाते हैं कि अवैध शराब निर्माणका काला कारोबार लंबे अरसेसे चल रहा है। लेकिन काररवाई नहीं होती है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि इस कारोबारसे जुड़े लोगोंको संरक्षण हासिल है। गौर करें तो जहरीली अवैध शराबके कारोबारी देशी शराबको असरदार बनानेके लिए इसमें मिथेनॉल मिलाते हैं जो कि सेहतके लिए बेहद खतरनाक होता है। इसके पीछेका उद्देश्य भारी मुनाफा कमाना होता है। लेकिन तमाशा कहा जायगा कि इस सचाईसे अवगत होनेके बाद भी शराब माफियाओंके खिलाफ उचित काररवाई नहीं होती है। यह तभी संभव है जब शराब माफियाओंको स्थानीय प्रशासनसे संरक्षण मिलता हो और वह इसके एवजमें पैसा देते हों। फिलहाल जांचके बाद ही पता चलेगा कि अवैध शराब निर्माणके पीछे किन लोगोंका हाथ है और उनके संरक्षणदाता कौन हैं। लेकिन इतना अवश्य है कि इन मौतोंके लिए जितना जिम्मेदार शराब माफिया हैं उतना ही स्थानीय प्रशासन और आबकारी विभाग भी। यह कहना मुश्किल है कि इस दर्दनाक घटनाके बाद इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पहले भी शराब माफियाओंके खिलाफ कड़े कदम उठानेके दावे किये जाते रहे हैं, लेकिन यह काला कारोबार थमा नहीं है। आज भी जहर उगलती शराब भठ्ठियोंका मुंह खुला है।

पिछले दो दशककी घटनाओंपर नजर डालें तो गत वर्ष पहले आजमगढ़ जिलेके रौनापारमें जहरीली शराबसे १४ लोगोंकी मौत हुई। इसी जिलेमें वर्ष २००९ में २३ लोगोंकी मौत हुई। जहरीली शराबसे सहारनपुर एवं कुशीनगर तथा उत्तराखंड राज्यके हरिद्वारमें पांच दर्जनसे अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। अभी गत वर्ष पहले ही कानपुर नगर एवं देहात क्षेत्रमें जहरीली शराबके सेवनसे दर्जनभरसे अधिक लोगोंकी मौत हुई। गौर करें तो उत्तर प्रदेश ही नहीं देशके अन्य राज्योंमें भी जहरीली शराबका कारोबार चरमपर है। अभी गत वर्ष देशकी आर्थिक राजधानी मुंबईमें जहरीली शराबसे ५० से अधिक लोगोंकी मौत हुई। पश्चिम बंगालके दक्षिण चौबीस परगना जिलेमें जहरीली शराब पीनेसे पौने दो सौसे अधिक लोगोंकी मौत हो चुकी है। इसी तरह बिहारमें सैकड़ों लोग जहरीली शराबकी भेंट चढ़ चुके हैं। शराबबंदीके बावजूद भी गुजरात राज्यके अहमदाबादमें ७ जुलाई, २०१० को १५७ लोग जहरीली शराबकी भेंट चढ़ गये। २००८ में कनार्टकमें १८० लोग जानसे हाथ धो बैठे। देशके अन्य राज्योंमें भी इस तरहकी घटनाएं विचलित करती रही हैं। अब मौंजू सवाल यह है कि जहरीली शराबसे होनेवाली मौतोंका सिलसिला कब थमेगा और अवैध शराबके सौदागरोंपर निर्णायक काररवाई कब होगी? सवाल यह भी है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें दोनों मिलकर इसे रोकनेकी दिशामें ठोस पहल क्यों नहीं कर रही हैं? जबकि २००६ में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें संविधानके ४७वें अनुच्छेदपर अमल करें यानी शराबकी खपत घटायें। लेकिन गौर करें तो राज्य सरकारोंका रवैया ठीक इसके उलट है। वह शराबपर पाबंदी लगानेके बजाय उसे बढ़ावा दे रही हैं। उत्तर प्रदेशकी मौजूदा सरकार गायोंके कल्याणके लिए शराबपर सेस लगा रखी है। सवाल लाजिमी है कि इस तरहकी नीतिसे नशामुक्त समाजका निर्माण कैसे होगा? क्या इस राजनीतिक प्रवृत्तिसे अवैध शराबके कारोबारियोंका हौसला बुलंद नहीं होगा? बेहतर होगा कि केंद्र एवं राज्य सरकारें अवैध शराबके निर्माण और उसकी बिक्रीकी रोकथामके लिए कड़े कानून बनायें। अन्यथा जहरीली शराबसे दम तोडऩेवालोंका सिलसिला थमनेवाला नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रोंमें हर रोज शराबकी अवैध भ_ियां हजारों लीटर जहर उगलती हैं। स्थानीय शासन-प्रशासन और आबकारी विभाग इससे अच्छी तरह अवगत होनेके बाद भी उन्हें रोकनेकी पहल नहीं करता है। ऐसा इसलिए कि उनपर राजनीतिक दबाव तो होता ही है और साथ ही वह धनउगाहीके धंधेमें भी लिप्त होते हैं।

चूंकि अवैध शराबकी कीमत कम और नशा ज्यादा होता है इसलिए इसे पीनेवालोंकी तादाद लगातार बढ़ रही है। इसका सेवन करनेवालोंमें अधिकांश गरीब, मजदूर और कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं जो नशाके नामपर भूल जाते हैं कि वह शराब पी रहे हैं या जहर गटक रहे हैं।  शराबकी जहरीली होनेका मुख्य कारण घातक मिथाइल एल्कोहल होता है जो ऊंचे तापमानपर उबालनेपर हानिरहित इथाइल एल्कोहलमें बदलता है। लेकिन शराब निर्माणकी प्रक्रियाकी अधूरी जानकारी और लापरवाहीके कारण इसमें घातक रसायनोंका प्रयोग जहरका काम कर जाता है। लिहाजा पीते ही लोग उल्टियां करने लगते हैं और यकृत क्षतिग्रस्त हो जाता है और लोग मौतके मुंहमें चले जाते हैं। लेकिन इससे भी अवैध शराब माफियाओंकी संवेदना प्रभावित नहीं होती है और न ही शासन-प्रशासन विचलित होता है। हद तो तब होती है जब स्थानीय पुलिस-प्रशासन अवैध शराब माफियाओंके खिलाफ कठोर काररवाईके बजाय उनके बचावमें उतर आता है। परिणाम यह होता है कि सैकड़ोंकी जान लेनेवाला गुनाहगार दंडसे बच निकलता है। उचित होगा कि देशकी सभी राज्य सरकारें ऐसे अवैध शराब माफियाओं और इन्हें संरक्षण देनेवाले अधिकारियों और कर्मचारियोंके खिलाफ कठोर काररवाई करे।