पटना

जितिया की तैयारी में जुटीं माताएं, सुबह से शाम तक बाजारों में हुई खरीदारी


मिथिला पंचांग के अनुसार 28 और बनारसी पंचांग के मुताबिक 29 सितम्बर को मनाया जायेगा व्रत

पटना (आससे)। संतान की दीर्घायु के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला व्रत जिउतिया में अब सिर्फ दो दिन रह गये हैं। इसकी तैयारियों में माताएं अभी से ही जुट गयी हैं। इसको लेकर बाजारों में चहल-पहल बढ़ गयी है। माताएं पूजन सामग्री और उस अवसर पर बनने वाले विशेष व्यंजन के लिए कुसही केराव और मडुआ का आटा की खरीदारी करती दिखीं। दुकानदार भी पर्व के निमित्त अपनी क्षमता से बढक़र सामान का स्टॉक कर लिये हैं, ताकि दुकान से कोई न लौटे।

इस वर्ष यह व्रत मिथिला पंचांग के अनुसार 28 और बनारसी पंचांग के मुताबिक 29 सितम्बर को मनाया जायेगा। वहीं 28 तारीख को व्रत करने वाली माताएं अधिक समय तक निर्जला रहेंगी,जबकि 29 तारीख को व्रत करने वाली उनकी बनिस्पत कम घंटे निर्जपा रहेंगी। हमारे देश में भक्ति एवं उपासना का एक रूप उपवास है, जो मनुष्य में संयम, त्याग, प्रेम एवं श्रद्धा की भावना को बढ़ाते हैं। उन्ही में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। यह व्रत माताएं रखती हैं। इसमें पूरा दिन एवं रात पानी भी नहीं लिया जाता है। इसे तीन दिन तक मनाया जाता हैं। तीनों दिन व्रत की विधि अलग-अलग होती है। संतान की सुरक्षा के लिए इस व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। पौराणिक समय से इसकी प्रथा चली आ रही है। हिन्दू पंचाग के अनुसार यह व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता है। खास तौर पर यह व्रत उत्तरप्रदेश, बिहार एवं नेपाल में मनाया जाता है।

नहाय खाय व्रत का पहला दिन कहलाता है। इस दिन से व्रत शुरू होता है। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन लेती हैं। फिर दिन भर कुछ नहीं खातीं। खर जितिया व्रत का दूसरा दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं। यह दिन विशेष होता है। पारण व्रत का अंतिम दिन होता है। इस दिन कई लोग बहुत सी चीजें खाते हैं। खास तौर पर इस दिन झोर भात, नोनी का साग एवं मडुआ की रोटी दिन के पहले भोजन में ली जाती हैं।

व्रत कथा

यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वथामा बहुत ही नाराज था। उसके अंदर बदले की आग तीव्र थी, जिस कारण उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था, लेकिन वे सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली, जिसके फलस्वरूप अश्वथामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, जिसे निष्फल करना नामुमकिन था। उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक था, जिस कारण भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुन: जीवित किया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही राजा परीक्षित बना। उसी समय से इस व्रत को किया जाता है।