सम्पादकीय

जीवनकी चुनौती


श्रीश्री रविशंकर

जब दुनिया आपको दोषी ठहराने लगे। जब आपके अपने ही आपको समझनेकी कोशिश न करें। ऐसी स्थितिमें आपको केवल आंतरिक मजबूती ही रास्ता दिखा सकती है। केवल आपकी आंतरिक मजबूती ही आपको खुश रहनेका अवसर दे सकती है। जब हालात आपके लिए प्रतिकूल हो जाते हैं, तब आपको सहनशक्ति, साहस और आगे बढऩेके लिए हौसला चाहिए होता है। गीतामें स्वयं श्रीकृष्णने कहा था संतुलन ही तुम्हारे योगका असल इम्तिहान है। महात्मा गांधीसे संबंधित एक घटनाका जिक्र यहां किया जा सकता है, जब गांधी जीकी जीवनसंगिनी कस्तूरबा गांधी मृत्युशैयापर थीं। सभी डाक्टरोंने उम्मीद छोड़ दी थी, उनका कहना था इनके जीवनके बस कुछ पल या कुछ मिनट और। तब गांधीजी अपनी कुटियासे बाहर आये और पंडित सुधाकर चतुर्वेदी जीसे बोले मेरे लिए गीताकी यह पंक्तियां पढ़ो। जब उन्होंने यह पंक्तियां पढ़ीं, तब बापू बोले, आज तुम्हारे बापूका इम्तिहान है, आज मेरा इम्तिहान है, आज मैं जान जाऊंगा कि क्या मैं कस्तूरबाके जानेका गम सह पाऊंगा या नहीं। जब वह ये बात बोल रह थे तब उनकी आंखोंसे आंसू साफ झलक रहे थे। आज इम्तिहानका दिन है, मैं स्थित प्रज्ञ हूं या नहीं। योग हमारे जीवनमें एक ऐसा संतुलन लाता है जिससे बड़ीसे बड़ी घटना हमें तोड़ नहीं पाती। बस यह अनुभव करें कि आपका मस्तिष्क किस ओर जा रहा है। कैसे यह हमारे चारों तरफ अव्यवस्थाका निर्माण करता है। एक क्षण हमारे लिए सुखद होता है। अगला ही क्षण हमें कोई दुख मिल जाता है। योग इन्हीं मनोवैज्ञानिक समस्याओंका उत्तर है। योग वह संतुलन है जो हमें भीतरी तौरपर जोड़ता है, यह हमरी चेतनाको स्थिरता प्रदान करता है। कुलतासे रहित मन ध्यान है। वर्तमान क्षणमें स्थित मन ध्यान है। दुविधा और प्रत्याशा रहित मन ध्यान है। वापस स्रोततक पहुंच चुका मन ध्यान है। विश्राम तभी संभव है जब आप अन्य सभी काम छोड़ दें। जब आप घूमना, काम करना, सोचना, देखना, सुनना यह सभी काम बंद कर देते हैं तो आपको विश्राम मिलता है। जब सभी ऐच्छिक क्रियाओंको रोकते हैं, तब आप विश्राम कर पाते हैं या नींद ले पाते हैं। ध्यानका अर्थ कुछ सोचनेका प्रयास करना नहीं है। ध्यान गहराईसे विश्राम करना है। यदि आप समस्यापर ध्यान दे रहे हैं तो आप विश्राम नहीं कर रहे हैं।