सम्पादकीय

जीवन और आजीविका


कोरोना महामारीकी भयावह स्थितिसे जूझ रहे देशके हर नागरिकके समक्ष जीवन और आजीविकाका बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है और दोनोंकी रक्षा बड़ी चुनौतीके रूपमें सामने आयी है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने मंगलवारको देशको सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया कि दूसरी लहर तूफानकी तरह आयी है, चुनौती बड़ी है लेकिन हम अपने संकल्प, हौसले और मजबूत इरादोंके साथ जन-भागीदारीसे इस लड़ाईसे भी पार पा लेंगे। जरूरत है धैर्य और अनुशासनकी। लगभग २० मिनटके अपने सम्बोधनमें प्रधान मंत्रीने कोरोनासे उत्पन्न सभी स्थितियों और इस जंगसे लडऩेके लिए मजबूत तैयारीके सभी पहलुओंकी चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोनासे जंग जीतनेके लिए अनुशासन बहुत जरूरी है। यह भी भरोसा दिलाया कि लाकडाउनसे बचनेकी भरपूर कोशिश करनी है। लाकडाउनको अन्तिम विकल्प मानकर चलें। आर्थिक गतिविधियोंका पहिया भी चलते रहना चाहिए। घबरानेकी जरूरत नहीं है। देश महामारीके खिलाफ बड़ी लड़ाईके लिए तैयार है। दवाओंका उत्पादन बढ़ा है। आक्सीजनकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। विश्वका सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है। अस्पतालोंमें बेडकी उपलब्धता बढ़ायी जा रही है। हर जरूरतमंदको दवा मिलेगी। देशको लाकडाउनकी जरूरत ही नहीं होगी। प्रधान मंत्रीके सम्बोधनका निहितार्थ भी स्पष्टï है। जीवन और आजीविका दोनोंकी रक्षा करनी है। दोनों ही एक-दूसरेके पूरक हैं। जीवनके लिए आजीविका जरूरी है और आजीविकासे ही जीवनकी गाड़ी चलती है। दोनोंको अलग नहीं किया जा सकता है। इसीलिए लाकडाउनको अन्तिम विकल्पके रूपमें स्वीकार किया गया है, क्योंकि लाकडाउनसे आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ जाती है और आजीविकाका संकट उत्पन्न हो जाता है। पहली लहरमें आजीविकाके समक्ष संकट आ गया था और यह लाकडाउनके कारण ही हुआ। इस बार जो कामगार घरवापसीके रास्तेपर हैं, वह कोई समाधान नहीं है। पिछली बार उन्हें फिर अपने कामके स्थानपर लौटना पड़ा था। इसलिए यह भी आवश्यक है कि कामगार जिन स्थानोंपर काम कर रहे थे, वहीं बने रहें। राज्योंका यह दायित्व है कि वे प्रवासी कामगारोंके दुख और पीड़ाको समझें और उनकी सहायताके लिए हरसम्भव कदम भी उठायें जिससे कि उनकी आजीविकापर कोई संकट नहीं आने पाये। जीवनकी रक्षाके साथ ही आजीविकाकी भी रक्षा बहुत जरूरी है।

टीकेकी सुरक्षा जरूरी

कोरोनाके खिलाफ जंगमें सुरक्षाकी दृष्टिïसे टीकाकरण जितना जरूरी है उससे कहीं ज्यादा जरूरी है टीकेकी सुरक्षा। कोरोनाकी कहर बरपाती दूसरी लहरसे जहां एक ओर वैक्सीन और दवाओंकी अनुपलब्धतासे दिक्कतें बढ़ी हैं वहीं दूसरी ओर देशके कई राज्योंमें कोरोना टीकेकी बड़े पैमानेपर हो रही बर्बादी गम्भीर चिन्ताका विषय है। आरटीआईके माध्यमसे पूछे गये एक प्रश्नके जवाबमें सरकारने जो आंकड़े उपलब्ध कराये हैं वह विचलित कर देनेवाला है। सरकारी आंकड़ेके अनुसार विगत ११ अप्रैलतक राज्योंको टीकेकी करीब दस करोड़से अधिक डोज जारी की गयी जिसमें ४४ लाखसे अधिक टीके विभिन्न कारणोंसे बर्बाद हो चुके हैं। टीकेकी सबसे अधिक बर्बादी तमिलनाडुमें हुई है। टीकोंकी बर्बादीपर दिल्ली हाईकोर्टने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्टने केन्द्र सरकारसे कहा कि वह जिसे टीके लगाना चाहती है लगाये ताकि बड़े पैमानेपर इसकी बर्बादी न हो। यदि दिनके अंतमें शीशीमें खुराकें बाकी रह जाती हैं तो उन्हें जरूरतमंदोंको दिया जाय, भले ही वे टीकाकरणके लिए निर्धारित श्रेणीमें नहीं आते हों। सरकारने पहली मईसे १८ सालसे ऊपरके सभी लोगोंको कोरोना टीका लगानेकी अनुमति दी है जिससे देशमें टीकाकरण अभियानको गति मिलना स्वाभाविक है। ऐसेमें यदि टीकेकी कमी आड़े आती है तो इससे दिक्कतें बढ़ेंगी और टीकाकरण अभियानको भी झटका लगेगा। आबादीके लिहाजसे भारत दुनियाका दूसरा सबसे बड़ा देश है। टीका अभियानकी सफलताके लिए टीकाकी सुरक्षा प्राथमिकता होनी चाहिए। देशको सीमित संसाधनोंके सहारे कोरोनाके विरुद्ध लम्बी लड़ाई लडऩी है। इसलिए फूंक-फूंककर कदम रखनेकी जरूरत है। टीकेकी बड़े पैमानेपर बर्बादी सरकारका कुप्रबन्धन है। इसमें व्यापक सुधारकी जरूरत है। राज्योंकी भी यह महती जिम्मेदारी बनती है कि वे टीकेकी बर्बादी रोकनेके लिए आवश्यक और सकारात्मक कदम उठाये, तभी कोरोनासे जंग जीती जा सकती है।