मऊ

डीजीपी साहब! पुलिस की पीठ थपथपाना बंद कीजिये… गिरोह बनाकर भेज दिया जेल, जबकि गुनाह हुआ ही नहीं!


  1. (ऋषिकेश पाण्डेय)
    मऊ।तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त फर्जी पासपोर्ट बनाने के जिम्मेदार “असली सरदारों” को बचाने के लिए जिन तेरह निरीह बेगुनाहों को फर्जी पासपोर्ट गिरोह के नाम पर जेल भेज दिया,जिससे निर्दोष होते हुए भी वे नौ माह तक जेल की यातनाएं सहते रहे और किसी ने घर बेचकर तो किसी ने अपनी जमीर बेचकर हाईकोर्ट से जमानत करवायी।लेकिन,पंद्रह माह बाद पता चला कि जिस गुनाह में पुलिस ने उन्हें जेल भेजा और बङे अफसर ऐसी पुलिस की पीठ थपथपाते रहे,वह गुनाह तो हुआ ही नहीं है।क्योंकि अब तक की पुलिस विवेचना तो यही साबित करती है।मऊ जनपद के कोपागंज थाने में 5 दिसम्बर को रात्रि 23.34 बजे तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य द्वारा तत्कालीन एसओ विनय कुमार सिंह को धमकाकर दर्ज कराया गया मुकदमा अपराध संख्या 396/19 उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के माथे पर एक कलंक की तरह है।जिसे न पुलिस धो पा रही है,न मिटा ही पा रही है।अब तक चार विवेचनाधिकारी/क्षेत्राधिकारी बदले।मगर,किसी ने गुनाह का होना नहीं पाया।राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त बङे अफसरों को बचाने के लिए तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य द्वारा तैयार की गयी यह स्क्रिप्ट न सिर्फ़ बङे-बङे अफसरों के गले की फांस बनती जा रही है।बल्कि न्यायालय की कार्य प्रणाली पर भी एक प्रश्न चिन्ह खङा कर देती है।देखा यह भी जाता है कि बीस साल जेल में रहने वाला अदालत से ससम्मान बरी होने का प्रमाण पत्र तो पा जाता है।लेकिन,जेल में गुजरे हुए दिनों की यादों के बीच वह एक जिंदा लाश बनकर रह जाता है।दरअसल,जनपद मऊ में बङे पैमाने पर फर्जी पासपोर्ट बनाने का धंधा कर तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य के कार्यकाल में करोड़ों रूपये की धन उगाही की गयी।रूपयों के बटवारे को लेकर अधिकारियों के बीच आपस में जूतम-पैजार के बीच मुकदमा अपराध संख्या 396/19 की स्क्रिप्ट तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य द्वारा तैयार की गयी।अब यहाँ सवाल यह उठता है कि अगर एक भी फर्जी पासपोर्ट बरामद किया जाता है तो उसकी संस्तुति देने के लिए जिम्मेदार तत्कालीन एसओ विनय कुमार सिंह,एलआईयू इंस्पेक्टर भूपेन्द्र सिन्हा,रामधनी मौर्या,सीओ नंदलाल और पासपोर्ट के नोडल अधिकारी तत्कालीन अपर पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र श्रीवास्तव सहित पासपोर्ट अधिकारियों की गर्दन फंसनी तय है।यही वज़ह है कि निर्लज्ज पुलिस तेरह निरीह व्यक्तियों पर कहर बरपाने के बाद अब तरह-तरह के बहाने बनाकर फर्जी पासपोर्ट मामले को विवेचना प्रचलित होने के नाम पर पंद्रह महीनों से लटकाये हुई है।तेरह गरीब परिवारों के साथ किये गये इस सरकारी क्रूर मजाक को माननीय उच्चन्यायालय को स्वत: संज्ञान लेकर कङी काररवाई करनी चाहिए।ताकि भ्रष्ट अफसर भविष्य में किसी गरीब की इज्जत से खेलने की सोच भी विकसित न कर सकें और तेरह बेगुनाहों को फर्जी पासपोर्ट मामले से बरी होने का मार्ग प्रशस्त हो सके।