डा. भरत झुनझुनवाला
फ्रैंकफर्ट स्कूल आफ फाइनांसने एक अध्ययनमें बताया कि यदि लाकडाउन नहीं लगाया जाता है तो मृत्यु अधिक संख्यामें होती है, कार्य करनेवाले लोगोंकी संख्यामें गिरावट आती है और आर्थिक विकास प्रभावित होता है। इसके विपरीत यदि लाकडाउन लगाया जाता है तो सीधे आर्थिक गतिविधियोंपर ब्रेक लगता है और पुन: आर्थिक विकास प्रभावित होता है। फिर भी उनके अनुसार लाकडाउन लगाना उचित होता है चूंकि यदी लाकडाउन लगाया जाता है तो प्रभाव कम समयतक रहता है। लाकडाउनके हटनेके बाद अर्थव्यवस्था पुन: चालू हो जाती है। तुलनामें यदि मृत्यु अधिक संख्यामें होती है तो प्रभाव ज्यादा लम्बे समयतक रहता है।
इसी क्रममें वित्तीय संस्था जेफ्रीजने बताया है कि अमेरिकाके तीन राज्य एरिजोना, टेक्सास और यूटामें लाकडाउन लगभग नहीं लगाये गये। इन राज्योंमें संक्रमण ज्यादा फैला और अंतत: इनकी आर्थिक गतिविधियां ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इनकी तुलनामें जिन राज्योंने लाकडाउन लगाया उनमें अल्प समयके लिए प्रभाव पड़ा और वह पुन: रास्तेपर आ गये। जेफ्रीजने पुन: स्कैंडिनेवियाके दो देशों स्वीडन और डेनमार्कका तुलनात्मक अध्ययन किया। बताया कि स्वीडनमें लाकडाउन नहीं लगाया गया और लोगोंको स्वैक्षिक स्तरपर सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहननेके लिए प्रेरित किया गया जबकि डेनमार्कमें लाकडाउन लगाये गये। उन्होंने पाया कि स्वीडनमें मृत्यु पांच गुना अधिक हुई हैं।
आक्सफर्ड यूनिवर्सिटीने एक अध्ययनमें कहा है कि इंग्लैण्डमें देरसे लाकडाउन लगानेके कारण अधिक संख्यामें मृत्यु हुई है और विकास दरमें ज्यादा गिरावट आयी है। सुझाव दिया है कि लाकडाउन लगाना जरूरी होता है। इन अध्ययनोंसे स्पष्ट है कि लाकडाउन लगाना जरूरी होता है। इससे तत्काल एवं सीधे आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं लेकिन यह प्रभाव लम्बे समयतक नहीं रहता है। विशेषकर मृत्यु कम होनेसे जो मानव कष्ट है वह भी कम होता है। अत: प्रश्न लाकडाउन लगाने और न लगानेका नहीं है। लाकडाउन तो लगाना ही पड़ेगा। सही प्रश्न यह है कि लाकडाउन किस तरहसे लागाया जाय जिससे कि उसका तत्काल होनेवाला आर्थिक नुकसान कम हो।
दी इकोनामिक्स टुडे पत्रिकाने सुझाव दिया है कि कंस्ट्रक्शन और मैनिफेक्चरिंग गतिविधियोंके लिए श्रमिकोंको कंस्ट्रक्शन साईट अथवा फैक्टरीकी सरहदमें ही रखा जा सकता है। उनके रहने, सोने और खानेकी व्यवस्था वहीं कर दी जाय तो बाहरसे सम्पर्क कम हो जायगा साथ ही संक्रमण फैलनेकी संभावना भी कम हो जायेगी। उन्होंने दूसरा सुझाव दिया है कि श्रमिकोंको दो समूहोंमें विभाजित कर दिया जाय। उन्हें अलग-अलग शिफ्टमें कार्य स्थलपर बुलाया जाय जिससे यदि एक समूहके श्रमिक संक्रमित होते हैं तो दूसरे समूहके श्रमिकोंके जरिये आर्थिक गतिविधि बाधित नहीं होगी।
हमें समझना चाहिए कि कोरोनाका वर्तमान संकट तत्काल समाप्त होनेवाला नहीं है। यह लम्बे समयतक चल सकता है। हालमें ही इंग्लैण्डके एक अर्थशास्त्रीने वार्तालापके दौरान कहा कि उनके आकलनके अनुसार कोरोनाके संकटसे उबरनेके लिए विश्वको तीनसे पांच वर्ष लग जायेंगे क्योंकि एक, सम्पूर्ण विश्वका टीकाकरण होनेमें समय लगेगा। दो, इस दौरान वायरसके नये म्यूटेशन उत्पन्न हो सकते हैं। तीन, मृत्यु होनेसे तकनीकी विशेषज्ञोंकी कमी होगी इत्यादि। इसलिए हमें दीर्घ अवधिके लिए सोचना चाहिए और इस गलतफहमीसे उबरना चाहिए कि यदि हमने १५ दिनके लिए लाकडाउन आरोपित कर दिया तो इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जायगा। जरूरत यह है कि किन कार्योंपर और किस प्रकारसे लाकडाउन लगया जाय इसपर विचार किया जाये। इसके हर कार्यका अलग-अलग आर्थिक आकलन किया जाये कि उस कार्यपर लाकडाउन लगानेसे कितनी हानि होगी और संक्रमणके बढऩेमें कितना खतरा है। तब लाकडाउनका निर्णय लिया जाय। जैसे विद्यालय, बस यात्रा, रेल यात्रा, हवाई यात्रा, अंतरराष्ट्रीय यात्रा, रेस्टोरेंट, सिनेमा, नुक्कड़के बाजार, कंस्ट्रक्शनकी साईट और मैन्युफैक्चरिंग इन सबका अलग-अलग लाभ हानिका ब्यौरा बनाया जा सकता है। गणना की जाय कि यदि बस यात्रापर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तो उससे आर्थिक विकासमें कितनी कमी आयगी और संक्रमणमें कितनी कमी आयगी। इसी प्रकार हर गतिविधिका लाभ हानिका आंकड़ा बनाया जा सकता है। उन विशेष गतिविधियोंपर लाकडाउन लगाया जा सकता है, जिन्हें प्रतिबंधित करनेसे संक्रमणमें गिरावट कम और आर्थिक नुकसान ज्यादा हो। जैसे सिनेमा घरोंमें अधिक संख्यामें लोग आस-पास बैठते हैं अत: सिनेमा घरपर प्रतिबंध लगानेसे संक्रमणमें गिरावट ज्यादा होगी है जबकि आर्थिक नुकसान कम होगा। इसी प्रकार नुक्कड़ बाजारमें संक्रमणकी संभावना एयरकंडिशन मालकी तुलनामें कम होती है क्योंकि खुलापन होता है और संक्रमण हो भी जाय तो वह एक सीमित क्षेत्रमें होता है जबकि आर्थिक गतिविधिपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार हर गतिविधिका अलग-अलग लाभ हानिका मूल्यांकन किया जाना चाहिए और तब तय करना चाहिए कि किन गतिविधियोंको लाकडाउनमें शामिल किया जाय।
प्रत्येक गतिविधिकी भी अनेक श्रेणियां हैं। जैसे स्कूलमें पहली श्रेणी हुई सम्पूर्ण लाकडाउन, दूसरी श्रेणी हुई लाकडाउनके साथ ई-लर्निंग, तीसरी श्रेणी हुई लाकडाउन न लगाया जाय, लेकिन टेस्टिंग और ट्रेसिंग की जाय। चौथी श्रेणी हुई कि लाकडाउन लगाया ही न जाय। इन चारों श्रेणियोंका भी अलग-अलग लाभ हानिका आकलन करना चाहिए। जैसे पूर्ण लाकडाउनमें पढ़ाईमें ज्यादा गिरावट आयगी और संक्रमण भी कम होगा। ई-लर्निंगके साथ लाकडाउन लगाया जायेगा तो पढ़ाईमें कम गिरावट आयगी लेकिन खर्च बढ़ेगा और संक्रमणमें ज्यादा गिरावट आयगी। लाकडाउनके साथ यदि टेस्टिंग-ट्रेसिंग की जाय तो पढ़ाई ज्यादा चलेगी लेकिन संक्रमण भी बढ़ेगा। यदि लाकडाउन नहीं लगायेंगे तो पढ़ाई अच्छी होगी लेकिन संक्रमण भी तीव्र होगा। इस प्रकार चारों श्रेणियोंका अलग-अलग लाभ हानिका आकलन करके लाकडाउन लगानेका निर्णय लेना चाहिए।
टीका लगानेका भी इसी प्रकार अलग-अलग आकलन करना चाहिए। मैन्युफैक्चरिंगक्षेत्रमें कार्यरत श्रमिकोंको प्राथमिकता देते हुए टीका लगाया जाय ताकि संक्रमणकी संभावना कम हो जाय और श्रमिकोंका नैतिक मनोबल ऊंचा बना रहे। वह निडर होकर कार्यस्थलपर रहें। इसी प्रकार सेवा क्षेत्र जैसे सोफ्टवेयर, पर्यटन आदिके आर्थिक योगदानके अनुसार टीका लगानेकी प्राथमिकता तय करनी चाहिए। ध्यान रहे कि आर्थिक गतिविधि चलेगी तो सभीको अंतत: लाभ होगा। सरकारको इस दिशामें तत्काल कदम उठाने चाहिए और उन क्षेत्रोंको टीकेमें प्राथमिकता देनी चाहिए जिनका आर्थिक योगदान ज्यादा है। लाकडाउन और टीकेकी दीर्घकालीन तैयारी करनी चाहिए।