प्रवीण गुगनानी
सर्वविदित है कि भारतीय अर्थव्यवस्थाके साथ भारतीय जनमानस भी कृषिपर ही निर्भर रहता है। यदि कृषि सफल, सुचारू एवं सार्थक हो रही है तो भारतीय ग्राम प्रसन्न रहते हैं अन्यथा अवसादग्रस्त हो जाते हैं और यह अवसाद समूचे राष्ट्रको दुष्प्रभावित करता है। यदि भारतीय कृषिको छोटे एवं निर्धन कृषकोंकी दृष्टिसे देखें तो खरीफकी फसल ही भारतकी महत्वपूर्ण फसल है क्योंकि इस मौसममें सिंचाईके साधनोंकी अनुपलब्धतावाले छोटे-छोटे करोड़ों कृषक भी फसल उपजानेमें सफल हो पाते हैं। लगभग राष्ट्रव्यापी लाकडाउनके इस कालखंडमें जबकि जूनके प्रथम सप्ताहसे देशभरमें अनलाकका क्रम प्रारंभ हो गया है तब बहुत कुछ ऐसा है जिसे खरीफकी फसल एवं छोटे, माध्यम एवं सीमान्त किसानोंकी दृष्टिसे समायोजित किया जाना चाहिए। छोटा किसान दूध, सब्जी, पशुपालन आदि छोटी कृषि आधारित इकाइयोंसे प्राप्त आयसे जीवनयापन भी करता है एवं खरीफ फसलको बोने-बिरोनेके खर्चे भी निकालता है। स्वाभाविक है कि दो माहके लाकडाउनके मध्य यह छोटे कृषक अत्यधिक प्रभावित हुए हैं एवं उनके पास न तो परिवारके भरण-पोषण हेतु समुचित नगदी है और न ही उसकी जीवन रेखा खरीफ फसलको बोने-बखारने हेतु नगदी है। यद्यपि मोदी सरकारने निर्धन परिवारोंको नि:शुल्क राशन, आयुष योजना एवं अन्य माध्यमोंसे सुरक्षित रखनेकी अनेक योजनाओंकी झड़ी लगा दी है तथापि निर्धन, छोटे एवं सीमान्त किसानोंका एक बड़ा वर्ग अब भी संकटमें है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ह। निस्संदेह कोरोनाने जब समूचे अर्थतंत्रको दुष्प्रभावित कर दिया है तब किसान भी इससे अछूता नहीं रहा है, बल्कि कृषक वर्ग तो इकोनामिक बैकअप न होनेके कारण बेहद असहाय, निर्बल एवं लाचार हो गया है। देशकी केंद्र एवं प्रदेश सरकारोंने यदि कृषि तंत्रको महंगी, बेरोजगारी एवं लाकडाउनके इस भीषण दौरमें अपना सहारा नहीं दिया तो केवल कृषक समाज नहीं, अपितु समूचे देशको इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
पिछले वर्ष जब कोरोना महामारीने भारतमें पांव पसारे थे तब सम्पूर्ण भारतका उत्पादन तंत्र सिमट गया था एवं बड़े ही निराशाजनक परिणाम मिले थे किंतु कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने जीवटतापूर्वक आशाओंसे कहीं बहुत अच्छा उत्पादन करके देशकी आर्थिक व्यवस्थाको संबल प्रदान किया था। बारिश अच्छी, समयपर एवं पर्याप्त होनेकी संभावनाओंके आ जानेके बाद स्वाभाविक ही है कि किसान खरीफ फसल बोने हेतु अत्यधिक उत्सुक एवं उत्साहित है। किंतु संकट भी है कि इस वर्ष बीज बहुत महंगा रहनेकी संभावना है। खरीफकी प्रमुख फसल धान, सोयाबीन एवं मक्काके बीज मूल्य तो किसानकी पहुंचसे बाहर होते जा रहे हैं। देशव्यापी लाकडाउनके कारण उर्वरकोंका उत्पादन एवं विपणन तंत्र गड़बड़ा गया है अत: उर्वरकोंके मूल्य भी बढ़ रहे हैं। अन्तराष्ट्रीय मूल्य तंत्रके कारणोंसे भी मोदी सरकार उर्वरकोंके मूल्य तंत्रको संभालनेमें असफल रही किंतु आभार है इस संवेदनशील सरकारका कि उसने उर्वरकोंपर सरकारी सहायता (सब्सिडी) बढ़ाकर उर्वरकोंकी मूल्यवृद्धिको निष्प्रभावी कर दिया है। केंद्र सरकारने डीएपी खादपर सब्सिडी १४० प्रतिशत बढ़ा दी है, इस हेतु १४७५ करोड़ रुपयेकी अतिरिक्त सब्सिडी जारी कर देशभरके कृषकोंको एक बड़ी समस्यासे बचा लिया है। निस्संदेह यदि केंद्रकी संवेदनशील मोदी सरकार समयपर डीएपीके संदर्भमें यह सटीक निर्णय नहीं लेती तो देशमें बुआईका रकबा और खरीफ उपज अवश्य ही प्रभावित हो जाती। प्रधान मंत्री मोदीने किसान सम्माननिधिकी आठवीं किश्तके रूपमें अक्षय तृतीयाके शुभ दिनको १९ हजार करोड़ रुपये दस करोड़ किसानोंके खाते सीधे ट्रांसफर करके भी एक बड़ा आर्थिक संबलका वातावरण बना दिया है। महामारीके कठिन समयमें यह राशि इन किसान परिवारोंके बहुत काम आ रही है। इस योजनासे अबतक एक लाख ३५ हजार करोड़ रुपये कृषकोंके खातेमें सीधे पहुंच चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस राशिमेंसे सिर्फ कोरोना कालमें ही ६० हजार करोड़ रुपयेसे अधिक किसानोंको मिल गये हैं। मोदी सरकारने कोरोना कालको देखते हुए, केसीसी ऋणके भुगतान या फिर नवीनीकरणकी समय-सीमाको बढ़ा दिया गया है। ऐसे सभी किसान जिनका ऋण बकाया है, वह अब ३० जूनतक ऋणका नवीनीकरण कर सकते हैं। इस बढ़ी हुई अवधिमें भी किसानोंको चार प्रतिशत ब्याजपर जो ऋण मिलता है, जो लाभ मिलता है वह यथावत रहेगा।
भारतकी केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे सतत कृषि उन्नयनके प्रयासोंका ही परिणाम है कि इतनी विपरीत परिस्थितियोंके बाद भी गत वर्षकी अपेक्षा खरीफका रकबा १६.४ प्रतिशत बढऩेकी सम्भावना बतायी जा रही है। कृषि मंत्रालयने आशा जतायी है कि पिछले साल अच्छी बारिश होनेकी वजहसे इस बार जमीनमें नमी मौजूद है और यह फसलोंके लिए बेहतर स्थिति है। पिछले दस सालके औसतकी तुलनामें इस बार देशके जलाशय २१ प्रतिशततक भरे हुए हैं। उम्मीद है कि इस बार देशमें बंपर कृषि उपज हो सकती है। गतवर्षकी अच्छी वर्षा, जलस्त्रोतोंमें जलकी उपलब्धि एवं भूमिमें उपलब्ध नमीका लाभ उठाने हेतु शासन कृषि क्षेत्रको पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराये ईटीओ किसान भी देशके गोदामोंको अनाजसे लबालब भरनेमें सक्षम हो सकता है। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच सॉल्यूशंसने भारतीय अर्थव्यवस्थाके लिए नये संकट आनेके संकेत दिये हैं। इसका असर आर्थिक विकास दरपर पड़ेगा और वित्त वर्ष २०२१-२२ में भारतका वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद ९.५ प्रतिशत हो सकता है। ऐसी स्थितिमें निश्चित ही जीवटता एवं जिजीविषासे लबालब किसान वर्ग ही भारतीय अर्थव्यवस्थाको अपने उत्पादनसे एक बड़ा संबल प्रदान कर सकता है। आवश्यकता है कि भारतका शासन प्रशासन भारतीय कृषकके प्रति संवेदनशील रहे।