आर.के. सिन्हा
हालके कुछ वर्षोंमें देखनेमें आ रहा है कि इसके कुछ कृत्योंसे इस महान सेनाकी छविपर बुरा असर तो पड़ता ही है। अब ताजा उदाहरण ले लें। महाराष्ट्रके पुणेमें सेना भर्ती परीक्षाका पर्चा लीक करनेके आरोपमें सेनाके एक ४७ वर्षीय मेजरको पुलिस हिरासतमें भेज दिया गया है। इस मामलेमें एक और मेजरकी भी गिरफ्तारी हुई है। इनपर आरोप है कि यह सेनाकी परीक्षाके पर्चे लीक करके पैसे बटोर रहे थे। साफ है कि ये चंद सिक्कोंके लिए देशके साथ घोर गद्दारी कर रहे थे। अब पुलिस इनके साथियोंको भी पकडऩे जा रही है। पुलिसको यह भी पता लगाना है कि इन्हें पेपर लीक करनेके बदलेमें कितनी राशि मिली। पर्चा लीक होनेका मामला २८ फरवरीको सामने आया था। अबतक इस संबंधमें सेनाके छह लोगोंको गिरफ्तार किया जा चुका है। सेनाके किसी भी अधिकारीका शत्रुको अहम जानकारी देना या सेनामें इस तरहके भ्रष्टाचार फैलानेवाले शख्सको माफ नहीं किया जा सकता है। इनकी सिर्फ एक ही सजा हो सकती है। वह है सजा-ए-मौत। सेनाका आतंरिक तंत्र अपने आपमें बहुत सशक्त है।
यदि आरोपियोंपर लगे आरोप साबित हो गये तो उन्हें कठोर दंड मिलेगा ही। परन्तु क्या इतना पर्याप्त है। सेनाको यह तो सुनिश्चित करना होगा कि सेनाके भीतर कुछ रुपयोंके लिए अपना जमीर बेचनेवाले अफसर आगेसे अपने मंसूबोंको अंजाम न दे सकें। बेशक इन नालीके कीड़ोंके कारण ही भारतीय सेनाके उन हजारों सैनिकोंकी आत्माएं भी आंसू बहा रही होंगी, जिन्होंने देशके लिए अपने प्राणोंकी आहुति दी। क्या पेपर लीक करनेमें फंसे अफसरोंने १९७१ की जंगके हीरो लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपालकी बहादुरीकी कथा नहीं सुनी थी। उन्होंने पंजाब-जम्मू सेक्टरके शकरगढ़में शत्रुके दस टैंक नष्ट किये थे। वे तब मात्र २१ वर्षके थे। इतनी कम आयुमें अबतक किसीको परमवीर चक्र नहीं मिला है। अरुण खेत्रपालने उसी पुणेकी नेशनल डिफेंस अकाडमी (एनडीए) से ट्रेनिंग ली थी जहां यह सारा घिनौना कृत्य हुआ। अरुण खेत्रपालकी स्क्वेड्रन १७ पुणे हार्स १६ दिसम्बर १९७१ को शकरगढ़में थी। वे टैंकपर सवार थे। टैंकोंसे दोनों पक्ष गोलाबारी कर रहे थे। वह शत्रुके टैंकोंको बर्बाद करते जा रहे थे। इसी क्रममें उनके टैंकमें भी आग लग गयी। वह शहीद हो गये। लेकिन उनकी टुकड़ी अपने अफसरकी पराक्रमको देखकर इतनी प्रेरित हुई कि वह दुश्मनकी सेनापर टूट पड़ी। युद्धमें भारतको सफलता मिली। अरुणको शकरगढ़का टाइगर कहा जाता है। जिस भारतीय सेनामें अरुण खेत्रपाल जैसे हजारों वीर रहे हों वहांपर कुछ देशके अन्दर ही सेनाके अंदरूनी सिस्टममें खासकर एनडीएमें दुश्मनोंका घुसना बेहद गम्भीर मामला है।
यदि जरा हटकर करें तो सेनाके ही कुछ अफसर महत्वपूर्ण सूचनाएं शत्रुओंको देते भी पकड़े गये हैं। इसी तरहके आरोपमें विगत वर्ष एक पत्रकारको भी गिरफ्तार किया गया था। यह गंभीर ही नहीं, भयानक स्थिति है। पिछले ही साल एक ग्रुप कैप्टनपर कुछ अति महत्वपूर्ण दस्तावेज पाकिस्तानको सौंपनेका आरोप लगा था। यह दस्तावेज भारतके सैन्य ठिकानोंसे संबंधित बताये जाते हैं। बेशर्म देशद्रोही गिरफ्तार अधिकारी वायुसेना मुख्यालयमें ही तैनात था। वायुसेनाकी काउंटर इंटेलीजेंस विंगने उससे गम्भीर पूछताछ की है। वायु सेना अधिकारीको पाकिस्तानकी खुफिया एजेंसी आईएसआईने दो फेसबुक अकाउंटके जरिये हनी ट्रैपके जालमें फंसाया था। अब चीनके लिए जासूसीके आरोपमें गिरफ्तार वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्माकी ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट (ओएसएस) के तहत गिरफ्तारी हुई थी। यतीश यादवने अपनी किताब रॉ: अ हिस्ट्री ऑफ इंडियाज कवर्ट ऑपरेशंसमें लिखा है, यह निर्विवाद तथ्य है कि साइबर जासूसीके मामलेमें चीन दुनियामें सबसे ज्यादा सक्रिय देश है। वह अपने जासूसी नेटवर्कका विस्तार करनेके लिए ठीक उसी तरह सॉफ्ट पावरका इस्तेमाल भी कर रहा है, जैसे कभी अमेरिका और रूसने किया था। वह भारतमें व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदानकी आड़में जासूसी गतिविधियोंको लगातार बढ़ा रहा है।
एक बात समझ ली जाय कि देशके साथ जयचंद बननेवालोंको किसी भी सूरतमें छोड़ा न जाय। इन्हें तो तोड़ा जाय। भले ही ये कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों। देशके गद्दारोंको चुल्लूभर पानीमें डूबके मर जाना चाहिए। यह उन हजारों रणभूमिके वीरोंकी शहादतका अपमान करते हैं, जिन्होंने दुश्मनके दांत खट्टे किये। यह अपमान करते हैं मेजर आशा राम त्यागी, फ्लाइंग आफिसर निर्मलजीत सिंह सेंखों, कैप्टन सौरभ कालिया, हवलदार अब्दुल हामिद, मेजर अश्वनी कान्वा जैसे हजारों योद्दाओंका। इन सबने देशके लिए अपने प्राणोंकी आहुति दे दी। यह पूरे देशके लिए आदरणीय इसलिए हुए क्योंकि इनमेंसे किसीने देशको बेचा नहीं। दुखद स्थिति यह है सेनाके लिए जासूसी और वहांपर गड़बड़ करनेवाले पीलासे ही मोटी पगार भी पा रहे हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर यह किस लालचमें आकर भारत माताके साथ धोखा करते हैं। आखिर इनकी नौकरी इन्हें क्या नहीं देती थी। यह शानदार सैलरी, घर, पेंशन और तमाम दूसरी तमाम सुविधाओंके मिलनेके बाद भी अपनी लालचसे बाज क्यों नहीं आते। लालचमें देशद्रोहकी हदतक जानेवालोंका देशमें कोई भी स्थान होना उचित नहीं है।