सम्पादकीय

बाइडेनसे बेहतर रिश्तेकी उम्मीद


जी. पार्थसारथी
अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन लीकसे हटकर चीनके साथ संबंध सुधारनेको आतुर थे वहीं जम्मू-कश्मीरकी हालतको बहाना बनाकर भारतके अंदरूनी मामलोंमें दखल देनेसे नहीं हिचक रहे थे। जबकि क्लिंटनके बाद आये जॉर्ज बुश (जूनियर) भारतके साथ सबसे ज्यादा दोस्ताना संबंध रखनेवाले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बुशने भारतपर लगे वैश्विक परमाणु प्रतिबंध हटवानेमें मदद की थी। उनके बाद राष्ट्रपति बने बराक ओबामाने हिंद-प्रशांत सुरक्षा स्थापना परिदृश्यके मद्देनजर भारतके साथ मित्रतावाली राह कायम रखी। निवर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्पने बेशक भारतसे आनेवाले कृषि उत्पादोंपर अतिरिक्त आयात शुल्क लगाया था, किंतु सुरक्षा संबंधी मामलोंमें वह भी सहकार करते रहे। जो बाइडेनको बतौर संयुक्त राज्य अमेरिकाका अगला राष्ट्रपति चुने जानेका दुनियाभरके लोगों और सरकारोंने स्वागत किया है। यह चुनाव कोरोना महामारीके बावजूद संपन्न हुए हैं, जिसकी वजहसे अकेले अमेरिकामें ही १.७ करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बाइडेन और उनके मुख्य सहयोगी भारतको किस निगाहसे देखते हैं। राष्ट्रपति ओबामाके साथ बतौर उपराष्ट्रपति रहते हुए बाइडेन स्वयं भारतकी यात्रापर आ चुके हैं लेकिन भारतके साथ संबंधोंमें उनकी सोचका सबसे उल्लेखनीय पहलू राष्ट्रपति बुशको लिखा वह पत्र है, जो उन्होंने सीनेटकी विदेश मामलोंपर कमेटीका अध्यक्ष रहते हुए लिखा था। इसमें उन्होंने भारतपर लगे परमाणु प्रतिबंधोंको उठा लेनेकी सिफारिश की थी। बतौर उपराष्ट्रपति बाइडेन जुलाई २०१३ में भारतकी यात्रापर आये थे। इसमें उन्होंने पर्यावरण बदलावपर होनेवाली संधिमें भारतका सहयोग हासिल करनेवाले अभियानका सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था। लिहाजा भारतने पेरिसमें सपन्न हुए विश्व पर्यावरण शिखर सम्मेलन २०१५ में अमेरिकाका साथ दिया था। पेरिसमें जिस उत्साह और संजीदगीसे प्रधान मंत्री मोदीने भाग लिया, उससे अमेरिका प्रभावित हुआ है।
बाइडेन प्रशासनमें तीन वरिष्ठ शख्सियतोंका शामिल होना तय है, जिनके पास रक्षा और विदेश मामलों जैसे मुख्य विभाग होंगे। भारतीय परराष्टï्रमंत्री एस. जयशंकरको भावी विदेशमंत्री एंथनी ब्लिंकनसे बरतना होगा जो लंबे समयतक बाइडेनके सहायक रहे हैं। ९ जुलाईको भारतके साथ संबंधोंको लेकर वाशिंगटनमें अपनी बात रखते हुए ब्लिंकनने कहा था, भारतके साथ संबंधोंको मजबूत और प्रगाढ़ बनाना हमारी तरजीहोंमें काफी ऊपर है। दुनियाको दरपेश बड़ी चुनौतियोंसे निबटनेके लिए यह होना बहुत जरूरी है। ब्लिंकनने भारतके साथ रक्षा एवं औद्योगिक सहयोग बनानेकी वकालत करते हुए यह भी कहा कि यदि समुचित ढंगसे समझौता सिरे चढ़ पाया और क्रियान्वित हुआ तो यह भारतके रक्षा उत्पादनका रूपांतरण कर देगा। राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियोंके क्रियान्वयनके लिए भी बाइडेनने अपनी टीममें पूरी तरह व्यावसायिक दक्षतासे परिपूर्ण अधिकारी लिये हैं। ४३ वर्षीय युवा जेक सलीवान बाइडेनके सुरक्षा सलाहकार बनेंगे। इससे पहले वह उपराष्ट्रपति रहते हुए बाइडेन और विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटनके साथ काम कर चुके हैं। एक अन्य रोचक नियुक्ति जनरल लॉयड ऑस्टिनकी बतौर रक्षामंत्री होगी। इस पदपर पहुंचनेवाले वह अफ्रीकी मूलके पहले अमेरिकी होंगे। इससे पहले जनरल ऑस्टिन संयुक्त राष्ट्र केंद्रीय कमानके मुख्य रह चुके हैं, जिनके निर्देशनमें अफगानिस्तानमें अमेरिकी सैन्य अभियान चला करते हैं। जाहिर है अफगानिस्तानमें तालिबानके पीछे आईएसआईकी क्या भूमिका है और ओसामा बिन लादेनको एबटाबादके छावनी शहरमें किसने छिपनेमें मदद की थी, यह सब उन्हें तफ्सीलसे बताया जायगा। मेरी भारत सरकारको नेक सलाह है कि वह अमेरिकाको पाकिस्तानके परमाणु हथियार और मिसाइल क्षमता बनवानेमें चीनकी लंबी समयसे चली आ रही भूमिकासे पूरी तरह अवगत करवाये। अलबत्ता जम्मू-कश्मीरकी स्थिति और नागरिकता संशोधन कानूनका संदर्भ देते हुए ब्लिंकनने कहा, भारत सरकारके कुछ काम जम्मू-कश्मीरमें विचरणकी आजादी और बोलनेकी स्वतंत्रतापर पाबंदी लगाते हैं। उन्होंने भारतमें नये नागरिकता कानूनके बारेमें भी बात की है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जब कभी अमेरिकाने मतभेदवाले विषयोंपर बेबाक होकर सीधी राय जाहिर की है तब-तब भारतने इन मुद्दोंपर बेहतर ढंगसे कारगुजारी कर दिखाई है, बेशक भारत अमेरिकाके साथ मिलकर ज्यादा सहयोग करनेकी दिशामें काम कर रहा है, ताकि रिश्तोंको आगे ले जा जाया सके। आगे बहुत कुछ इस बातपर निर्भर करता है कि समूची नियंत्रण सीमा रेखापर पाकिस्तान सीमापारीय आतंकवादको किस हदतक बढ़ावा देगा। भारत अपेक्षा करता है कि अमेरिका पाकिस्तानपर अपने प्रभावका इस्तेमाल करते हुए उससे यह सुनिश्चित करवाये कि वह भारत और अफगानिस्तानमें आतंकवादको मदद देना बंद करे। यहां भारतको सनद रहे कि मनोनीत उपराष्ट्रपति कमला हैरिस जम्मू-कश्मीरपर अलहदा विचार रखती हैं।
संभवत: चीन और रूसके साथ अमेरिकी रिश्तोंमें बड़ा बदलाव होगा। प्रशांत और हिंद महासागरमें अमेरिकी नौसैन्य उपस्थिति कायम रखनेके साथ चीनके खिलाफ तीखी भंगिमा रखनेमें कमी आ सकती है। हालांकि राष्ट्रपति पुतिनके नेतृत्ववाले रूसके साथ वही रवैया रहेगा जो ट्रम्प प्रशासनके समय अपनाया गया था। बाइडेन प्रशासन ट्रम्प द्वारा ईरानपर लगाये प्रतिबंधोंको भी हटाना चाहेगा। यह स्वागतयोग्य होगा क्योंकि अफगानिस्तानमें तालिबान प्रायोजित आतंकवादका मुकाबला करनेमें ईरान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत अमेरिकाको यह स्पष्ट कर दे कि आनेवाले महीनोंमें जम्मू-कश्मीरमें एक चुनी हुई सरकार स्थापित करवानेको भारत कृतसंकल्प है। इसी बीच भारतको उम्मीद है कि बाइडेन प्रशासन ऐसा कुछ नहीं कहेगा या करेगा, जिससे कि पाकिस्तानको सीमापारीय आतंकवाद जारी रखनेमें मदद मिले। जम्मू-कश्मीरके नागरिक भी ठीक वैसी आजादी और जिम्मेदारीका आनन्द लेते हैं जैसा कि शेष भारतके लोगोंको मिली हुई है। उम्मीद है कि चीनकी सीमा विस्तार संबंधी महत्वाकांक्षा और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादपर अमेरिकाकी नीतियां सुस्पष्ट होंगी। हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्रमें क्षेत्रीय सुरक्षाको बढ़ावा देनेमें क्वाड नामक गठजोड़ एक महत्वपूर्ण संस्था बन गयी है। सूचनाओंके अनुसार ऐसे संकेत हैं कि ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन अपने देशमें होनेवाली आगामी जी-७ की बैठकमें भाग लेनेको क्वाड सदस्यों भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरियाको निमंत्रण देने जा रहे हैं। जी-७ विश्वके उन्नत औद्योगिक देश यानी यूके, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडाका समूह है।