आर.के. सिन्हा
प्रमुख अमेरिकी बैंक सिटी बैंकका भारतमें अपना कारोबार समेटनेका फैसला कुछ गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। आखिरकार क्यों विदेशी बैंकोंके भारतमें पैर उखड़ रहे हैं। इनके लिए भारत क्यों कठिन काम करनेका स्थान साबित हो रहा है कारोबार करनेके लिहाजसे। सिटी बैंकने कहा कि ग्लोबल स्ट्रैटजीके हिस्सेके रूपमें वह भारतमें अपना कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेस बंद करने जा रहा है। सिटी बैंकने भारतमें प्रवेश कर १९८५ में कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेस शुरू किया था। यदि पीछे मुड़कर देखें तो पता चलता है कि बैंक आफ अमेरिकाने १९९८ में, एएनजे ग्रिंडलेज बैंकने २००० में, एबीएन ऑमरो बैंकने २००७ में, ड्यूश बैंकने २०११ में, आईएनजीने २०१४, आबीएसने २०१५ में अपने भारतके कारोबारको या तो कम किया या बंद कर दिया। एचएसबीसीने २०१६ में अपने कामकाज बंद तो नहीं किया परन्तु अपनी शाखाओंकी तादादको बहुत ही कम कर दिया। विदेशी बैंकोंके साथ सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि यह सिर्फ मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरू, कोलकता,चैन्नई जैसे महानगरों और अहमदाबाद, गुरुग्राम, चंडीगढ़, इंदौर जैसे बड़े नगरों और शहरोंमें ही कार्यरत रहकर ही अपने लिए मोटे मुनाफेकी उम्मीद करते हैं। ये गिनतीभरकी शाखाएं ही खोलते हैं। ये सोचते हैं कि एटीएम खोलनेभरसे बात बन जायगी। ये एटीएमको शाखाके विकल्पके रूपमें देखते हैं। यह सोच बिल्कुल सही नहीं है। इन्हें समझ ही नहीं आता कि आम हिन्दुस्तानीको बैंकमें जाकर बैंककर्मीसे अपनी पास बुक या एफडी पॉलिसीको अपडेट करवानेमें ही आनन्द मिलता है। वहांपर उसे बैंककी नयी स्कीमोंके बारेमें भी पता चलता है।
बैंकिग सेक्टरको जाननेवाले जानते हैं कि जो बैंक जितनी नयी शाखाएं खोलता है वह उतना ही जनताके बीचमें या कहें कि अपने ग्राहकोंके पास पहुंच जाता है। स्टेट बैंक और एचडीएफसी बैंककी राजधानीके व्यावसायिक हब कनॉट प्लेस इलाकेमें ही लगभग दस-दस शाखाएं कार्यरत हैं। इसी तरहसे कई प्रमुख भारतीय बैंक भारतके छोटे-छोटे शहरों, कस्बो और गांवोंतकमें फैले हुये हैं। एचडीएफसी, कोटक महेंद्रा बैंक, आईसीआईसाई बैंक तो प्राइवेट बैंक हैं। फिर भी इन्हें पता है कि ये उसी स्थितिमें आगे जायंगे जब यह भारतके सभी हिस्सोमें अपनी शाखाएं या एटीएम खोलेंगे। यह इसी दिशामें आगे बढ़ रहे हैं।
आप बता दीजिए कि क्या किसी विदेशी बैंकने बिहारके किसानको ट्रैक्टर खरीदने या आंध्र प्रदेशके युवा उद्यमीको अपना कारोबार चालू करनेके लिए लोन दिया। क्या किसीको याद है कि एएनजे ग्रिंडलेज बैंक, एबीएन ऑमरो बैंक, ड्यूश बैंक, आईएनजी या आरबीएसने कभी झारखंडके ग्रामीण इलाकों, छतीसगढ़के नक्सल प्रभावित इलाकों या फिर उड़ीसाके सुदूर इलाकोंमें अपनी कोई शाखा खोली हो। यदि नहीं खोली तो क्यों नहीं खोली। क्या इनके लिए भारतका मतलब सिर्फ चंदेक गिनतीभरके शहर हैं। यह तो कोई बात नहीं हुई। इन्हें भारतमें अपना कारोबार करनेका अधिकार है। इन्हें यह भी अधिकार है कि यह भारतमें कारोबार करके मुनाफा भी कमायें। आखिर इन्होंने निवेश भी किया होता है। परन्तु इन्हें सिर्फ और सिर्फ मुनाफेको लेकर नहीं सोचना चाहिए। कहने दें कि यह विदेशी बैंक तो मोटी जेबोंवालोंके लिए ही अपनी आकर्षक सेवाएं लेकर आते हैं। इनके टारगेट वह ग्राहक पढ़े-लिखे आधुनिक नौजवान भी होते हैं जो मोटी सैलरीपर नौकरी कर रहे होते हैं। सिटी बैंक कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेसमें क्रेडिट काड्र्स, रीटेल बैंकिंग, होम लोन जैसी सेवाएं दे रहा था। इस समय भारतमें सिटी बैंककी ३५ शाखाएं हैं। गौर करें कि सिर्फ ३५ शाखाओंके साथ चल रहे सिटी बैंकको वित्त वर्ष २०१९-२० में ४९१२ करोड़ रुपयेका शुद्ध लाभ हुआ था जो इससे पूर्वके वित्त वर्षमें ४१८५ करोड़ रुपये था।
भारतमें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) सर्वोच्च बैंकिंग नियामक अथॉरिटी है। आरबीआई देशमें बैंकिंग व्यवस्थाके लिए नियम बनाता है और देशकी मौद्रिक नीतिके बारेमें फैसले लेता है। भारतके बैंकिंग क्षेत्रमें पांच तरहके बैंक काम करते हैं। यद्द हैं निजी क्षेत्रके बैंक, सार्वजनिक क्षेत्रके बैंक, विदेशी बैंक, ग्रामीण बैंक और कोपरेटिव बैंकके रूपमें जाने जाते हैं।
यदि बात प्राइवेट क्षेत्रके बैंकोंसे शुरू करें तो हमारे प्रमुख प्राइवेट बैंक हैं। एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, इंडसइंड बैंक और एक्सिस बैंक आदि। सार्वजनिक क्षेत्रके बैंक उन्हें कहा जाता है जिनमें मेजोरिटी हिस्सेदारी (५१ प्रतिशत) सरकारके पास होती है। इनमें पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया आदि आते हैं। अब बात करते हैं विदेशी बैंकोंकी। भारतके लिए विदेशी बैंक दो प्रकारके होते हैं। पहले, वह बैंक जो भारतमें अपनी ब्रांच खोलते हैं और दूसरे वह बैंक जो भारतमें अपनी प्रतिनिधि बैंकोंकी शाखाके माध्यमसे बिजनेस करते हैं। इन बैंकोंमें स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस और सिटी बैंक आदि आते हैं। इनके अलावा भारतमें विभिन्न ग्रामीण बैंक और कारपोटिव बैंक भी सक्रिय हैं। इनकी ग्राहक संख्या भी लाखोंमें है।
एक बिन्दुपर साफ राय रखनेकी जरूरत है कि उन सार्वजनिक क्षेत्रके बैंकोंमें कामकाजके स्तरको बहुत बेहतर करनेकी जरूरत है, जिन्हें हम सार्वजनिक क्षेत्रके बैंक कहते हैं। इनकी स्थितिसे तो सारा देश वाकिफ है। बैंकिंग अपने आपमें आम जनतासे जुड़े हुए सेवाका क्षेत्र है। यह सेवा क्षेत्रमें ही आता है। यहांपर तो वही बैंक आगे जायगा जो अपने ग्राहकोंको बेहतर सुविधाएं देगा, जिसकी अधिकसे अधिक शाखाएं होंगी, उसके अफसर और बाकी स्टाफ अपने ग्राहकोंके हितोंका ध्यान रखेंगे। कुछ सार्वजनिक क्षेत्रके बैंक तो इसलिए ही जनताके बीच जमे हुए हैं, क्योंकि उन्हें भारत सरकारसे भी मोटा बिजनेस मिल जाता है। यदि सरकार उन्हें अपने रहमोकरमपर छोड़ दे तो ये पानी भी न मांगे। भारतका बाजार अपने आपमें अनंत सागरकी तरह है। इसमें सबके लिए काम करके जगह बनाने और कमानेके पर्याप्त अवसर हैं। परन्तु भारतके बाजारमें वहीं बैंक टिकेंगे जो ग्राहकोंको बेहतर सुविधाएं और जिनकी उपस्थिति महानगरोंसे लेकर गांवों-कस्बोंतकमें होगी।