राकेश जैन
देशमें धर्मके नामपर बंटवारा चाहे स्वतन्त्रताप्राप्तिके समय हुआ, परन्तु कहते हैं कि विभाजनका बीज उसी दिन बोया गया जब किसी पहले भारतीयने धर्म परिवर्तन किया। चाहे इस्लामका भारतमें प्रादुर्भाव काफी समय पहले हो चुका था परन्तु जिहादी कासिमके सिन्धपर हमलेके बाद इस्लाम और हमारे बीच लगभग हमलावर एवं संघर्षशील समाजका ही रिश्ता रहा। आक्रान्ता पहले लूटपाटके लिए आते और चले जाते थे परन्तु बादमें इन्होंने देशपर शासन शुरू कर दिया। भारतपर इस्लामके प्रतिनिधि बनकर शासन करना आसान नहीं था तो हमलावरोंने कहीं तलवार तो कहीं अन्य साधनोंसे दीन पढ़ाना शुरू कर दिया। धर्मांतरणका दुष्चक्र इतनी तेज गतिसे चला कि इस्लाम धर्मावलम्बियोंकी अच्छी-खासी संख्या हो गयी जो बादमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश सहित अनेक इलाकोंके विभाजनके रूपमें सामने आयी।
इस्लाम इस द्विराष्ट्रका सिद्धान्त अपने साथ लाया क्योंकि हमलावर अपनेको स्थानीय संस्कृतिसे श्रेष्ठ मानकर चलते थे। लम्बे शासनके बाद इनके मनमें यह भावना घर कर गयी कि वह हिन्दुओंपर शासन करनेके लिए पैदा हुए हैं परन्तु विभिन्न महापुरुषों एवं शूरवीरों द्वारा लड़े गये स्वतन्त्रता संग्रामने इस्लामकी श्रेष्ठताको मजबूत चुनौती दी। अंग्रेजोंके आनेके बाद भारतपर इस्लामी शासनका एकाधिकार स्वत: समाप्त हो गया। अंग्रेजोंके भारत छोडऩेकी पैदा हुई सम्भावनाओंके बीच देशके इस्लामिक समाजमें आशंका पैदा हो गयी कि वे हिन्दू बहुसंख्यक देशपर दोबारा शासन नहीं कर पायंगे और इसीके चलते मुस्लिम नेताओंने द्विराष्ट्रके सिद्धान्तको मजबूतीके साथ सामने रखा।
भारतीय इतिहासमें मोहम्मद अली जिन्नाको मुख्य रूपसे इस अलगाववादी सिद्धांतका पुरोधा माना जाता है। उन्होंने कहा था, हिन्दू मुस्लिम एक नहीं, बल्कि दो राष्ट्र हैं। द्विराष्ट्र सिद्धान्त भारतीय उपमहाद्वीपके मुसलमानोंके हिन्दुओंसे अलग पहचानका सिद्धान्त है, जिसकी बेलको धर्मांतरणके विषसे पाला-पोसा गया है। १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्रामके दस साल बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालयके मुख्य संस्थापक सैय्यद अहमद खानने हिन्दी-उर्दू विवादके कारण १८६७ में इस सिद्धान्तको पेश किया। इस सिद्धान्तके अनुसार न केवल भारतकी सांझीवालतापर कुठाराघात किया गया, बल्कि हिन्दुओं-मुसलमानोंको दो विभिन्न राष्ट्र करार दिया गया। सारे जहांसे अच्छा, गानेवाले मुहम्मद इकबालने व्यावहारिक राजनीतिमें सक्रिय रूपसे भाग लेना शुरू किया तो यह राजनीतिक विचारधारा खुलकर सामने आयी। १९३० में इलाहाबादमें ऑल इण्डिया मुस्लिम लीगकी बैठककी अध्यक्षता करते हुए उन्होंने न केवल द्विराष्ट्र सिद्धान्तको खुलकर समझाया, बल्कि इसी आधारपर भारतमें एक मुस्लिम राज्यकी स्थापनाकी भविष्यवाणी भी की।
आज कश्मीरी सिख बच्चियों सहित देशके विभिन्न हिस्सोंमें हो रहे लव जिहाद, धर्मांतरणकी घटनाओंने देशकी चिन्ता बढ़ा दी है। चाहे उदारवादी इन घटनाओंपर आंखें मून्द कर खतरा टालनेवाली नीतिपर चलकर इन्हें धर्मकी स्वतन्त्रताके दायरेमें समेटनेका प्रयास कर रहे हैं, परन्तु ऐसा करके वह ऐतिहासिक गलती दोहरानेका मार्ग प्रशस्त रहे हैं। हम संविधानमें प्रदत्त धर्मकी स्वतन्त्रताके प्रबल पक्षधर हैं। हमारा यह गुण केवल संविधानके दायरेतक सीमित नहीं, बल्कि सदियोंसे चले आ रहे, एकमसद् विप्ररू बहुदा वदन्ति। के सिद्धान्तसे विकसित हुआ है, परन्तु स्वेच्छासे किसी धर्मको स्वीकार करने एवं षड्यन्त्रपूर्ण धर्मांतरणमें अन्तर तो करना पड़ेगा। उदारवादी पूछते हैं कि धर्म बदलनेसे आखिर क्या फर्क पड़ता है तो उनसे प्रतिप्रश्न पूछा जा सकता है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेशके रूपमें वे ही इलाके हमसे अलग क्यों हुए जहां कभी इतिहासमें जबरदस्त तरीकेसे इस्लामिक धर्मांतरण हुआ। आज भी जिन इलाकोंमें एक धर्मविशेषको माननेवालोंकी संख्या बढ़ जाती है तो वहां हिन्दू-सिख समाजका रहना मुश्किल क्यों हो जाता है। बहुसंख्यक होनेपर एक समाज शरीयत कानूनोंकी बात क्यों करने लगता है। धृतराष्ट्रकी पत्नी गन्धारीका जन्मस्थान कन्धार, बुद्ध धर्मके केन्द्रके रूपमें दुनियाको शान्ति एवं अहिंसाका पाठ पढ़ानेवाला काबुल आज अशान्त एवं भारतसे अलग क्यों है। गुरु नानक देवजीका तीर्थ ननकाना साहिब, भगवान श्रीरामके पुत्र लवकी नगरी लाहौर, सन्त झूलेलालकी धरती सिन्धको अलग किसने किया। उत्तर है कि यहां समय-समयपर हुए धर्मांतरणने।
असलमें इस्लाममें राष्ट्रवादके लिए कोई स्थान नहीं और मजहबको हर चीजसे ऊपर रखा जाता है। इस्लाम एवं ईसाईयतके आस्था केन्द्र विदेशोंमें होनेके कारण धर्मांतरित लोगोंकी आस्थाके साथ निष्ठाके केन्द्र भी बदल जाते हैं। इसीलिए धर्मांतरणको राष्ट्रांतरण भी कहा गया है। स्वामी विवेकानन्द जीने कहा था कि एक हिन्दू धर्मांतरित होनेसे केवल एक हिन्दू कम नहीं होता, बल्कि हिन्दू धर्मका एक दुश्मन पैदा होता है। जैसे पाकिस्तानके जनक जिन्ना भी हिन्दू ही पैदा हुए थे, परन्तु धर्मांतरणके बाद वह हिन्दुओंके सबसे बड़़े दुश्मन साबित हुए। उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गाजियाबादमें गिरफ्तार धर्मांतरण गैंगका मुख्य आरोपी मोहम्मद उमर गौतम भी जन्मसे हिन्दू था और नाम था श्याम प्रसाद सिंह गौतम, परन्तु धर्म बदलनेके बाद वह इतना कट्टर हो गया कि उसने हिन्दुओंका धर्मांतरण शुरू कर दिया। धर्मांतरणके बाद मूल धर्मके प्रति पैदा हुई यही घृणा समय पडऩेके बाद देशके प्रति नफरतमें तबदील होती है और आगे जाकर देश विभाजनका कारण बनती है। आज समयकी जरूरत है कि अपने समाजको इतना उर्वर बनाया जाये कि भविष्यमें कोई नफरतका बीजारोपण न कर पाये। हमें अपने बच्चोंको सम्भालना है ताकि वह भविष्यके जिन्ना एवं उमर गौतम न बन जायं।