राजेश माहेश्वरी
संसदमें पेगासस मामलेको लेकर गतिरोधके हालात बने हुए हैं। भारी शोरशराबे और हंगामेके चलते संसदकी कार्यवाही बार-बार बाधित हो रही है। इन हालातोंमें संसदका बहुमूल्य समय तो नष्टï हो ही रहा है, वहीं देशके आम आदमीसे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दोंको भी विपक्ष द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। कोरोना कालमें संसदका मानसून सत्रका आयोजन ही अपनेमें बड़ी बात है। लेकिन जिस तरह इस सत्रको बर्बाद किया जा रहा है, वह बड़ा अफसोसजनक है। यह चिंताका विषय भी है कि चंद लोगोंकी जासूसीके मामलेको ज्यादा तूल देकर करोड़ों देशवासियोंके उम्मीदों, आशाओं और सपनोंपर पानी फेरनेका काम हमारे माननीय कर रहे हैं। वहीं बड़ा सवाल यह भी है कि क्या कभी इस जासूसी मामलेकी सचाई सामने भी आ पायगी या फिर संसदका सत्र खत्म होते ही विपक्ष इस मुद्देको ठंडे बस्तेमें रख देगा। जासूसी करवानेको सही नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन सचाई यह भी है कि आजाद भारतकी राजनीतिमें तमाम ऐसे प्रकरण हैं जब विभिन्न सरकारोंने फोन टेप करवाये। सचाई यह भी है कि उन मामलोंका नतीजा क्या हुआ। चंद दिनोंके शोर-शराबेके बाद मामला रद्दीकी टोकरीके हवाले हो गया।
विपक्षका आरोप है कि इसरायली स्पायवेयर पेगाससके जरिये सरकार द्वारा राजनेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और न्यायाधीशों सहित उनसे जुड़े करीबी लोगोंकी जासूसी करवाये जानेका खुलासा नया नहीं है। दो साल पहले भी इसे लेकर हंगामा हुआ था किन्तु बात आयी-गयी होकर रह गयी। संसदके मानसून सत्रसे पहले अचानक विदेशी माध्यमोंसे यह खुलासा हुआ कि उक्त स्पायवेयरका उपयोग भारतमें भी हुआ। चूंकि स्पायवेयरकी निर्माता कंपनी अतीतमें यह स्वीकार कर चुकी है कि वह केवल सरकारको ही यह सुविधा प्रदान करती है इसलिए जैसे ही उक्त खबर आयी वैसे ही विपक्षके साथ समाचार माध्यमों एवं न्यायापालिकामें भी हडकम्प मचा। चूंकि ताजा खुलासा संसदके मानसून अधिवेशनके ठीक पहले हुआ इसलिए पहले दिन ही विपक्षने सदन नहीं चलने दिया। हालांकि केंद्रीय आईटीमंत्री अश्विनी वैष्णवने संसदमें किसी भी प्रकारकी जासूसीसे साफ इनकार कर दिया लेकिन बादमें उनका नाम भी उस सूचीमें आ गया जिनकी जासूसी किये जानेकी बात उछली है। केन्द्रीय स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहके साथ ही पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसादने भी सरकार प्रायोजित जासूसीकी खबरोंको आधारहीन बताते हुए, संसद सत्रके ठीक पहले उसे उजागर किये जानेपर सवालिया निशान लगा दिये।
सूचना प्रौद्योगिकीके इस युगमें व्यक्तिगत जानकारीके अलावा आर्थिक लेन-देन, व्यापारिक वार्तालाप, राजनीतिक चर्चाएं आदि गोपनीय नहीं रह गयी हैं। सोशल मीडियापर लिखी या दिखाई गयी किसी भी सामग्रीका विश्लेषण करते हुए व्यक्तिके बारेमें तैयार किया गया ब्यौरा (डेटा) आजकी दुनियामें सबसे ज्यादा बिकनेवाली चीज है। इंटरनेटपर किसी उपभोक्ता वस्तुके बारेमें जानकारी हासिल करते ही उससे जुड़े विज्ञापन आपके सोशल मीडिया माध्यमपर आने शुरू हो जाते हैं जिससे यह बात साबित हो जाती है कि इंटरनेटपर आपका हर व्यवहार सघन निगरानीमें है और उसका व्यापारिक उपयोग भी धडल्लेसे हो रहा है। लेकिन संदर्भित विवादमें जिस तरहकी निगरानी की गयी उसका उद्देश्य चूंकि व्यापारिक न होकर सरकारी जासूसी बताया गया है इसलिए विपक्षको सरकारकी घेराबंदी करनेका अच्छा अवसर हाथ लग गया। केंद्र सरकार और भाजपा तमाम आरोपोंको झुठला रही है लेकिन जानकारीका स्रोत विदेशोंमें है इसलिए उसकी सफाईसे विपक्षका संतुष्टï नहीं होना स्वाभाविक है। हालांकि वह भी जानता है कि ऐसे मामलोंमें सचाई कभी सामने नहीं आती किन्तु सरकारपर हमला करनेका मौका वह भी नहीं छोडऩा चाहेगा।
संसदमें मुख्य विपक्ष विपक्षी दल कांग्रेस भी दशकोंतक केन्द्रीय सत्तामें रही है इसलिए उसे पता है कि सरकारका खुफिया विभाग (इंटेलीजेंस ब्यूरो) न सिर्फ राजनीतिक व्यक्तियों वरन उनके स्टाफ और संपर्कोंके बारेमें जानकारी एकत्र करता रहता है। जजोंकी नियुक्तिके पूर्व उनकी भी निगरानी खुफिया तौरपर करवायी जाती है। लेकिन मौजूदा विवादमें चूंकि विदेशी स्पायवेयरसे जासूसी करवानेका आरोप है इसलिए वह सतही तौरपर तो गम्भीर लगता है। लेकिन उसका खुलासा भी विदेशी माध्यमोंसे हुआ है इसलिए पटाक्षेप भी विकीलीक्स प्रकरण जैसा ही होगा। इस सबके बावजूद भारत सरकारको इस बारेमें स्पष्टï करना चाहिए कि उसके द्वारा पेगाससके जरिये जासूसी करवायी गयी या नहीं? हालांकि ऐसे मामलोंमें हर सरकार गोपनीयता बनाये रखती है। सारे खुफिया विभाग स्वराष्टï्र मंत्रालयके अधीन होनेके बाद भी पुरानी सरकारके समय एकत्र की गयी जानकारी इसीलिए सार्वजनिक नहीं होती।
ज्ञातव्य है कि वर्ष २०१९ में भी ह्वïाट्सएपने अपने उपयोगकर्ताओंको स्पाइवेयरसे जुड़ी चिंताओंके बाबत अवगत कराया था। इतना ही नहीं, अपने प्लेटफॉर्मके दुरुपयोगका आरोप लगाते हुए इसराइली फर्मके खिलाफ मामला भी दर्ज कराया था। ऐसा भी नहीं है कि सरकारों द्वारा अपने विरोधी राजनीतिक दलोंके नेताओंकी जासूसी करनेके आरोप पहली बार सामने आये हों। जासूसी यूं भी शासन तंत्रका अभिन्न हिस्सा होता है। मनमोहन सिंहकी सरकारके समय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जीकी टेबिलपर जासूसी उपकरण लगाये जानेका मामला उठा था। प्रणब मुखर्जीकी शिकायतपर मनमोहन सिंहने खुफिया विभागसे जांच करवाकर यह सफाई भी दी थी कि वैसा कुछ भी नहीं हुआ। उस कारण स्वराष्टï्रमंत्री पी. चिदम्बरम और प्रणब मुखर्जीके बीच तनातनी भी हुई थी। रही बात आरोप-प्रत्यारोपकी तो राजस्थानमें पायलट समर्थक विधायक भी मुख्य मंत्री अशोक गहलोतपर उनके फोन टेप करवानेका आरोप लगा चुके हैं। इस बीच ट्विटरपर छत्तीसगढ़में सत्तापरिवर्तनके बाद कांग्रेसकी सरकार बनते ही सामने आया अवैध फोन टेपिंगका मामला वायरल होने लगा है। एक यूजर आलोक भट्टने वर्ष, २०१९ में विवादोंमें आये छत्तीसगढ़के फोन टेपिंग मामलेपर ट्विट करते हुए सोनिया और राहुल गांधीपर तंज कसा है।
छत्तीसगढ़में सत्तापरिवर्तनके बाद कांग्रेस सरकारने नागरिक आपूर्ति निगममें हुए करोड़ोंके घोटालेमें जांचके आदेश दिये थे। इसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रहा था। तब आरोप लगे थे कि आईपीएस मुकेश गुप्त यानी तत्कालीन डीजी ईओडब्ल्यू आरोपियोंके फोन टेप करा रहे हैं। इस मामलेमें उनके खिलाफ जांच शुरू हो गयी थी। तब गुप्तने तर्क दिया था कि फोन टेपिंग सीएस और एसीएसके आदेशपर हुई, इसलिए उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है। गुप्तपर आरोप था कि उन्होंने महत्वपूर्ण पदोंपर रहते हुए गैरकानूनी तरीकेसे आम लोगोंके फोन टेप करवाये। अपने निजी स्वार्थके लिए मोबाइलपर होनेवाली बातें सुनी। चूंकि अभी संसद चल रही है इसलिए विपक्ष भी सरकारपर हावी होनेका अवसर नहीं गंवाना चाहेगा परन्तु जैसा होता आया है इस मामलेपर भी कुछ दिनके हल्लेके बाद परदा पड़ जाय तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि जासूसी करने और करवानेवाले अक्सर सुबूत नहीं छोड़ते। तमाम दूसरे मामलोंकी तरह इस मामलेकी सचाई सामने नहीं पायगी। हां इस बीच संसदका मूल्यवान समय जरूर नष्टï हो जायगा।