पटना

नालंदा में बाढ़ का खतरा बढ़ा- प्रायः नदियों के खतरे के निशान के करीब होने के साथ ही बढ़ रहा है जलस्तर


    • जिलाधिकारी ने कहा सभी अंचलों और जल संसाधन के अभिंयताओं को रखा गया है हाई अलर्ट पर
    • दिन में तीन बार नापा जा रहा है नदी का जलस्तर साथ ही नवादा और झारखंड से भी ली जा रही है सूचना
    • जिले में जून में अब तक 72.3 फीसदी अधिक हुई है बारिश
    • मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार अगले तीन दिनों तक हल्की से भारी बारिश की संभावना

बिहारशरीफ (आससे)। मॉनसून के आगाज के साथ जिले में पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है। हालांकि गुरुवार को जिले में मॉनसून का रूख कुछ नरम जरूर दिखा। सुबह में हल्की बूंदाबांदी तो कहीं हल्की बारिश हुई। लेकिन दोपहर बाद कहीं-कहीं धूप भी दिखा, लेकिन फिर मौसम का हाल लगभग वैसा ही है।

जिले के लिये सबसे चिंता की बात है बरसाती नदियां जिसका जलग्रहण क्षेत्र झारखंड है, जहां पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है और वहां के बारिश का पानी जिले में बाढ़ बनकर आती है। हालांकि नालंदा के जिलाधिकारी ने इसके लिए जिले को हाई अलर्ट पर रखा है। सभी अंचलों के अंचलाधिकारी सहित बाढ़ निःस्सरण प्रमंडल तथा सिंचाई विभाग के अन्य अभियंताओं को भी हाई  अलर्ट में रखा है और प्रतिदिन नदियों का जलस्तर का रीडिंग करवाकर अवलोकन कर रहे है।

गुरुवार को जिले में औसतन 46.29 मिमि बारिश हुई और अभी तक इस महीने में 136.21 मिमि बारिश हो चुकी है, जबकि जून माह में औसतन 127.7 मिमि बारिश होनी चाहिए थी। औसतन अब तक 72.3 मिमि बारिश के विरुद्ध जिले में 136.21 मिमि बारिश हुई है जो सामान्य से 88.22 फीसदी अधिक है। गुरुवार को सबसे अधिक बारिश सिलाव और राजगीर में दर्ज किया गया है, जहां क्रमशः 77.2 और 64.8 मिमि बारिश हुई है। जबकि सबसे कम बारिश नगरनौसा में 13.3 मिमि हुई है। बीते कल यानी 16 जून को जिले में औसतन 28.53 मिमि बारिश हुई।

मौसम विभाग पटना ने पूर्वानुमान जारी कर कहा है कि जिले में मॉनसून की सक्रियता बरकरार है। आज साधारण वर्षा होगी। लेकिन झारखंड तथा उसके सटे इलाके में हवा का कम दबाव बना हुआ है, जो डेढ़ किलोमीटर की ऊंचाई तक है और यह चक्रवातीय परिसंचरण के रूप में परिलक्षित हो रहा है। मौसमी सिस्टम के अनुसार अगले तीन दिनों तक इसके बने रहने की संभावना है और इस कारण इन तीन दिनों तक मध्यम से भारी बारिश हो सकती है।

जिले के लगभग नदियों में पानी आ चुकी है। भले हीं पानी का जलस्तर इतना है कि वह अपने तल से होकर गुजर रही है, लेकिन जो पूर्वानुमान बता रहा है उसके अनुसार अगर बारिश हुई तो यह संभावना प्रबल है कि जिले में नदियां उफान पर हो सकती है जो बाढ़ का रूप भी अख्तियार कर सकती है।

जिला पदाधिकारी योगेंद्र सिंह ने बताया कि बाढ़ निःस्सरण प्रमंडल के अभियंताओं को निर्देश दिया गया है कि प्रतिदिन तीन बार नदियों के जलस्तर का रिपोर्टिंग करें। इसके अलावा नवादा तथा झारखंड यानी जिस रास्ते से नदी नालंदा पहुंचती है वहां के जलस्तर पर भी निगाह रखे। इस आलोक में अभियंताओं द्वारा नदियों के उद्गम स्थल की थी खोजखबर रखी जा रही है।

17 जून को सकरी नदी का जलस्तर 81.40 है जबकि खतरे के निशान पर पहुंचने के लिए इसे 81.70 पर आना होगा। यह कहा जा सकता है कि खतरा के निशान तक पहुंचने में इस नदी का जलस्तर लगभग पहुंचने वाला है। जबकि पैमार नदी डेंजर लेवल 68.96 है और जलस्तर 65.30 है। पंचाने नदी का डेजर लेवल 56.55 है जबकि जलस्तर 53.60 पर है। इसी प्रकार गाईठवा नदी का डेंजर लेवल 55.47 है जबकि जलस्तर 52.47 पर है। जिराईन नदी का डेंजर लेवल 60.50 है जबकि जलस्तर 59.72 पर है। सोइवा नदी का डेंजर लेवल 56.84 है जबकि जलस्तर 53.84 पर है। कुम्हरी नदी का डेंजर लेवल 59.15 है जबकि जलस्तर 56.87 पर है। फल्गु नदी का डेंजर लेवल 61.5 है जबकि जलस्तर 59.1 पर है। लोकाइन नदी का डेंजर लेवल 57.8 है जबकि जलस्तर 56.45 पर है।

इस प्रकार जिले की प्रायः नदियों का जलस्तर खतरे के निशान के करीब-करीब है। कई नदियों में तो खतरा का निशान तक पहुंचने में 30 मिमि नीचे रहा है। सकरी, पैमार, पंचाने, जिराईन, कुम्हरी तथा फल्गु नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जबकि गोईठवा, सोईवा का जलस्तर स्थिर है। वहीं लोकाइन के जलस्तर में गिरावट शुरू हुआ है। सुबह तक यह नदी खतरे के निशान से 80 सेमी नीचे था जबकि शाम 6 बजे तक जलस्तर घटकर अधिकतम से 0.70 मीटर नीचे चला गया है।

मौसम विभाग के पूर्वानुमान अगर सच हुआ और नदियों का जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो शायद हीं जिले को बाढ़ से बचाया जा सके। बताते चले कि जिले से गुजरने वाली प्रायः नदियों का जलग्रहण क्षेत्र झारखंड है और नालंदा के बाद प्रायः नदियां पटना जिले के इलाके से होकर गंगा में समाहित होती है और इस बीच जैसे-जैसे नदी नीचे की ओर जाती है पार्ट कम होता गया है और यही वजह है कि अधिक पानी होने की वजह से बहाव खेतों में होना शुरू हो जाता है।