सम्पादकीय

पंचतत्वका सम्मान 


अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू धर्मके अनुसार हमारा ब्रह्मांड, धरती, जीव, जंतु, प्राणी और मनुष्य सभीका निर्माण आठ तत्वोंसे हुआ है। इन आठ तत्वोंमेंसे पांच तत्वको हम सभी जानते हैं। हिन्दू धर्मके अनुसार इस ब्रह्मांडकी उत्पत्ति क्रम इस प्रकार है। अनंत, महत्, अंधकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी। अनन्त जिसे आत्मा कहते हैं। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृतिके आठ तत्व हैं। उक्त सभीकी उत्पत्ति आत्मा या ब्रह्मïकी उपस्थितिसे है। आकाशके पश्चात वायु, वायुके पश्चात अग्नि, अग्निके पश्चात जल, जलके पश्चात पृथ्वी, पृथ्वीसे औषधि, औषधियोंसे अन्न, अन्नसे वीर्य, वीर्यसे पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है। पृथ्वी तत्वको जड़ जगतका हिस्सा कहते हैं। हमारी देह जो दिखाई देती है वह भी जड़ जगतका हिस्सा है। इसीसे हमारा भौतिक शरीर बना है, लेकिन उसमें तबतक जान नहीं आ सकती जबतक कि अन्य तत्व उसका हिस्सा न बने। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओंसे पृथ्वी बनी है उन्हींसे यह हमारा शरीर भी बना है। जलसे ही जड़ जगतकी उत्पत्ति हुई है। हमारे शरीरमें लगभग ७० प्रतिशत जल विद्यमान है उसी तरह जिस तरहकी धरतीपर जल विद्यमान है। जितने भी तरल तत्व जो शरीर और इस धरतीमें बह रहे हैं वह सब जल तत्व ही है। अग्निसे जलकी उत्पत्ति मानी गयी है। हमारे शरीरमें अग्नि ऊर्जाके रूपमें विद्यमान है। इस अग्निके कारण ही हमारा शरीर चलायमान है। अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और तापका प्रतीक है। हमारे शरीरमें जितनी भी गर्माहट है वह सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजनको पचाकर शरीरको निरोगी रखता है। वायुके कारण ही अग्निकी उत्पत्ति मानी गयी है। हमारे शरीरमें वायु प्राणवायुके रूपमें विद्यमान है। शरीरसे वायुके बाहर निकल जानेसे प्राण भी निकल जाते हैं। जितना भी प्राण है वह सब वायु तत्व है। वायु ही हमारी आयु भी है। जिससे हमारा जीवन है। वही वायु तत्व है। आकाश एक ऐसा तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान है। यह आकाश ही हमारे भीतर आत्माका वाहक है। इस तत्वको महसूस करनेके लिए साधनाकी जरूरत होती है। यह आकाश तत्व अभौतिक रूपमें मन है। इन पंच तत्वसे ऊपर एक तत्व है जो आत्मा (ú) है। इससे ही यह तत्व अपना काम करते हैं। इन्ही पांच तत्वोंको सामूहिक रूपसे पंचतत्व कहा जाता है। इनमेंसे शरीरमें एक भी न हो तो बाकी चारों भी नहीं रहते हैं। किसी एकका बाहर निकल जानेसे ही मृत्यु है। जो इन पंचतत्वोंके महत्वको समझकर इनका सम्मान और इनको पोषित करता है वह निरोगी रहकर दीर्घजीवी होता है।