पटना

पटना: बौराया हुआ है कोरोनिआया शहर


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। फागुन के चरम पर पहुंचते ही कोरोनिआया हुआ शहर बौरा गया है। बौराये लोगों के चेहरे पर लगे मास्क गुलाल की परतों से ढके हुए हैं। चेहरे पर लगे मास्क को ढके गुलाल की परतों के रंग भी एक जैसे नहीं हैं। इससे लोगों के चेहरे के रंग अलग-अलग दिख रहे हैं। लाल, गुलाबी, हरे, नीले, पीले रंगों के गुलाल से ढके चेहरे वाले लोग भागमभाग की स्थिति में हैं। ऐसे चेहरों से रेलवे स्टेशन एवं बस अड्डे पटे हैं। रंग, गुलाल, पिचकारियां, सूखे मेवे, फल एवं पायजामे-कुरते के लिए बाजार और उसकी गलियां भी फागुन के रंग में रंग गयी हैं।

शहर पर कोरोना का खौफ है। यह खौफ फगुनाहट पर भारी पड़ गया। इसीलिए, शहर कोरोनिआया हुआ रहा। न तो लोगों के चेहरे से मास्क उतरे और न ही सेनिटाइजर का उपयोग बंद हुआ। मूर्खों के सम्मेलन भी नहीं हुए। हंसाने वाले कवियों के जमावड़े नहीं लगे। होली मिलन समारोह भी नहीं हुए। जब ऐसे आयोजन हुए ही नहीं, तो भला भंग वाली ठंडई पर ठुमके कैसे लगते। अबीर-गुलाल कैसे उड़ते। और, मालपुये कैसे चलते। सो, होली के हफ्ता भर पहले से चलने वाले आयोजन कोरोनाकाल में इतिहास बन गये। ऐसे में बाजार और उसकी गलियों में सिर्फ धूल उड़ाती फागुनी हवा सांय-सांय करती रही।

लेकिन, होली के दो दिन पहले कोरोनिआये शहर में जान आ गयी। बाहर से लोग यहां घरों को आने शुरू हो गये। जहां कोरोना ने अपने पांव फिर से कुछ ज्यादा ही पसार लिये हैं, उन शहरों से भी लोग आने शुरू हो गये। दूसरे राज्यों के उन शहरों के लोग जब यहां हवाईअड्डा, रेलवे स्टेशनों एवं अंतरराज्यीय बस अड्डों पर उतरते, तो उनके हाथों में ‘निगेटिव’ होने के सर्टिफिकेट होते। ऐसी ही स्थिति हवाईअड्डा, रेलवे स्टेशनों एवं अंतरराज्यीय बस अड्डों पर उन लोगों की भी है, जो होली में अपनों के पास लौट रहे हैं।

रेलवे स्टेशनों एवं बस अड्डों पर शनिवार को तो ट्रेनों और बसों पर चढ़ते-उतरते हर लोग भागमभाग की स्थिति में नजर आ रहे थे। ऐसे लोग अपने राज्य के अंदर ही आने-जाने वाले थे। जाते-आते लोगों में ऐसे लोग भी थे, जिनके चेहरे पर लगे मास्क गुलाल से इस कदर ढके थे कि वह दिख ही नहीं रहा था।

दफ्तर चाहे सरकारी हों या प्राइवेट, उसके बंद होने के बाद शनिवार को काम करने वाले जब विदा हुए, ते वे भी इस एक-दूसरे को गुलाल का तिलक लगाने से खुद को रोक नहीं पाये। कुछ ऐसा ही दृश्य एक दिन पहले स्कूल-कॉलेज-कोचिंग और राज्य सचिवालय के विभागों में भी दिखा था। जब बच्चे निकले थे, तो चेहरे पर लगे उनके मास्क गुलाल से पुते हुए थे।

खैर, शनिवार को फागुन की हवा के तेज के झोंके में उड़ते पत्तों की खडख़ड़ाहट के बीच बाजारों और उसकी गलियां खीरदारों से मस्त रहीं। ऐसे में दुकानदार फागुन की मस्ती के एहसास से भर उठे।

गली-मुहल्लों के किशोरों पर तो मास्क में भी कुछ अलग किस्म की ही मस्ती छायी हुई है। उनकी मस्ती चौक-चौराहों पर रविवार की रात जलने वाली होलिका दहन की तैयारी को लेकर है। सो, वे भी कम बौराये हुए नहीं हैं। ऐसे में भला बौराये हुए लोग सोमवार को मास्क में ही सही, लेकिन रंग तो खेलेंगे ही। सो, ऐसे बौराये दिख रहे लोगों से शहर पूरी तरह से बौराया हुआ लग रहा है। इसे कहते हैं वसंत के चरमोत्कर्ष का असर।