पुराने रोड का साठ फीसदी मैटेरियल दुबारा हो सकेगा इस्तेमाल
(आज समाचार सेवा)
पटना। अब पुराने शहरों में नयी सडक़ बनने के बाद भी घर सडक़ से नीचे नहीं होंगी। वहां पर घरों में पानी भरने की समस्या से लोगों को छुटकारा मिलेगा। काउंसिल ऑफ साइंटिफि क इंडस्ट्रियल रिसर्च और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने वाराणसी में रेजूपेव तकनीक का सफल प्रयोग किया है।
सीएसआईआर और सीआईआईआर के साथ मिलकर नयी तकनीक से सडक़ निर्माण में सहयोगी वर्मा इंडस्ट्रीज के अधिकारियों ने बताया है कि वाराणसी में रेजूपेव तकनीक से सडक़ निर्माण किया गया है। इस तकनीक से पुरानी रोड का 60 फीसदी मैटेरियल दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी और प्राकृतिक संसाधन भी बच सकेंगे। साथ ही सडक़ निर्माण में खर्च भी कम होगा। अधिकारियों ने बताया कि रोड टूटने पर उसके ऊपर दोबारा से सडक़ बनाने से लेबल ऊंचा हो जाता था।
वहां के घर, सीवर और नालों का लेबल नीचा हो जाता है जिससे पानी निकासी और घरों में पानी घुसने की समस्या आती थी। इस समस्या से बचने के लिए पुराने शहरों में सडक़ को उखाड़ कर दोबारा उसी सामग्री से नयी सडक़ बनायी जा सकेगी। इन सडक़ों के टूटने के बाद दो विकल्प होते हैं सडक़ों के ऊपर नई रोड बनाई जाए या फिर पुरानी सामग्री को उखाडक़र नई सामग्री से रोड बनाई जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए वाराणसी रिंग रोड एनएच 2 पर रेजूपेव तकनीक इस्तेमाल शुरू किया गया है।